अमरावती की सांसद नवनीत राणा ने दलित कार्ड खेला है और कहा कि मुझको दलित होने के कारण थाने में पानी भी नहीं दिया गया. नवनीत राणा सुरक्षित सीट से अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र लगाकर चुनी गई हैं. हाई कोर्ट ने इसको फर्जी पाया और एक साल पहले ही इसको रद्द कर दिया था. इसको लेकर सांसद महोदया सुप्रीम कोर्ट गयीं और सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैंसले पर रोक लगा दी.
माननीय न्यायालय से मुझको बहुत उम्मीदें हैं. न्याय की बहुत आशा है और मई 2024 तक इस पर फैंसला आ ही जायेगा. तब तक सांसद महोदया अपना कार्यकाल भी पूरा कर चुकी होंगी और देश एक उपचुनाव के खर्चे से बच जाएगा.
लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए इतना काम तो बनता ही है. इसी कारण इनके साथ ही यूपी से फर्जी अनुसूचित जाति के प्रमाणपत्र पर 2019 में ही चुने गए केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल भी अपना कार्यकाल निष्कंटक पूरा कर लेंगे. वैसे भी अनुसूचित जातियों का हक मारा जा रहा है तो जाए. क्या फर्क पड़ता है? आखिर लोकतंत्र बचाना है!
2003 में बसपा के विधायकों को मुलायम सिंह ने अवैध तरीके से तोड़ा था. उसके खिलाफ बसपा ने याचिका दी और उन विधायकों की टूट को अवैध करार देते हुए उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गई. ये निर्णय 2007 में तब आया था जब मुलायम सिंह सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर चुकी थी और नए चुनाव होकर नई सरकार बन चुकी थी. ये बात दूसरी है कि कुछ बड़े दलों की याचिका पर सुनवाई करने के लिए रातों को भी कोर्ट खुल जाती है और रातों को फैंसले भी आ जाते हैं. खैर मुझको माननीय कोर्ट से न्याय की पूरी उम्मीद है.
(लेखक- सुधीर कुमार जाटव: ये लेखक के निजी विचार हैं)