मेरा मानना है कि हिन्दु धर्म अनेकों कुरीतियों और पाखण्ड़ों का संग्रह रहा है, ये पितृसत्तात्मक और पुरूषप्रधान धर्म जिसमे ना औरत को बराबरी का स्थान दिया गया है और ना ही आज के दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गो को यानि जिनको इस धर्म की महान वर्ण व्यवस्था मे शुद्र वर्ण माना गया था उनको बराबरी का स्थान मिल पाया था. हम जिस संस्कृति और धर्म के नाम पर ये नफरत पाले पड़े है, क्या आपको मालुम है कि इस सामाजिक और मानसिक बिमारी के भी समय-समय पर महापुरुषों के रूप में अनेक डॉक्टर इस देश मे जन्मे हैं जिनमे बाबासाहब डॉ अम्बेड़कर सबसे ज्यादा चर्चित महापुरूष रहे हैं.
डॉ अम्बेड़कर सिर्फ एक आदमी का नाम नही है बल्कि ये एक आधुनिक विचार है, एक सोच है जो गली सड़ी हिन्दु धर्म की परम्पराओं को तोड़कर तुम्हारे भी घरो मे घुस चुका है. ये विचार तो घर-घर मे जगह बना चुका है चाहे वो घर ब्राह्मण का हो, क्षत्रिय का हो, बनिये का हो, मराठे का हो, जाट का हो, पटेल का हो, यादव का हो, जाटव का हो, चमार का हो, महार का हो, लुहार का हो, खाती का हो या सुनार का हो. जिस धर्म ने औरतों को बराबरी का अधिकार देने से रोका, लड़कियों के पढ़ने के अधिकार छीने, बहुविवाह और बालविवाह जैसी कुरीतियों का साथ दिया – लेकिन अम्बेड़कर नाम का ये विचार जब से लोगों के घरो मे घुसा है, तब से लड़कियों की पढ़ाई की बात होने लगी है, इनकी नौकरी की बात होने लगी है, इनकी तरक्की की बात होने लगी है. वरना धर्म ने तो हमेशा इनको गैर बराबरी पर ही रखा था और वो भी इस हद तक की औरतों के स्वतंत्र वजूद की कल्पना भी आदमी की आँखो मे चुभती रही है – क्या औरतों की बदली हुई स्थिति के पीछे तुम्हे आज भी डॉ अम्बेड़कर नही दिखता, या इसमे भी धर्म की महानता ही दिखती है.
सच्चाई तो ये है कि जातियों को अपने दिलो-दिमाग से ना निकाल पाने की मजबुरी तुमको डॉ अम्बेड़कर की जाति से आगे सोचने ही नही देती और आपको उनसे घृणा तक करने को उकसाती है . बहुत से लोग कहते है कि ये घृणा आरक्षण के कारण है जिनके पीछे डॉ अम्बेड़कर का हाथ है. लेकिन ऐसा नही है अगर ये घृणा सिर्फ आरक्षण के कारण होती तो 10% EWS आरक्षण के जन्मदाता से भी होती जो संसद मे आपके चुने हुए लगभग सभी सांसदो ने बिना फाइनल ड्राफ्ट पढ़े एक ही दिन मे पास करवा दिया था .
तुम लोग शातिर लोग हो जो जातिवाद नाम के आतंकवाद की नीचता की बात करने वाले को तुरन्त जाति के नाम नफरत फैलाने वाला कहकर खुद को उच्च विचारों का महान आदमी साबित कर लेते हो लेकिन खुद जातियों के कुचक्र से बाहर आना ही नही चाहते . तुम जाति और जातिवाद के addicted हो चुके हो, तुम बिना जाति के खुद को अस्तित्वहीन समझते हो, क्योकि इन अस्तित्वहीन जातियों के अलावा कुछ खास उपलब्धियाँ तुम गिना भी नही पा रहे क्योकि ज्यादातर इतिहास भी गुलामी और गद्दारीयों से भरा पड़ा है.
(लेखक: एन दिलबाग सिंह; ये लेखक के निजी विचार हैं)