14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना होने के बाद से ही बसपा को मिशन कहकर सम्बोधित किया जाता रहा हैं जिसको हर बहुजन मिशनरी कार्यकर्ता ने अपने जीवन का सामाजिक उद्देश्य समझ कर आगे बढ़ाया. बसपा सामान्य अर्थो में राजनीतिक पार्टी कम सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्ति का मिशन अधिक रही है. जो भी व्यक्ति कांशीराम साहब के संपर्क में आकर उनके त्याग, बलिदान, संघर्ष एवं रणनीति से प्रभावित होकर बसपा से जुड़ा, बहुजन आंदोलन का क्रांतिकारी वाहक बनता गया.
सामूहिक साहस, समझ, शक्ति के अदभुत प्रतीक के रूप ने बसपा ने सदियों से दबे कुचले बहुजन समाज और खास तौर से भारत के अछूत वर्गो में जबरदस्त क्षमता व ऊर्जा का संचार किया.
उनकी सदियों से दबी हुई सांगठनिक और सामाजिक परिवर्तन की चेतना को यथार्थ के पंख लगा दिए. एक जबरदस्त बदलाव की आंधी चली और एक-एक कर के मनुवादी संस्थाएं व उनका वर्चस्व ध्वस्त होता गया. बाबासाहब, जोतिबा फुले, सवित्रीबाई फुले, बिरसा मुंडा, साहूजी महाराज, पेरियार, नारायणा गुरु जैसे अनेकों सामाजिक क्रांतिकारियों को राष्ट्रीय पहचान व मान्यता मिली.
यही वह दौर था जब कांशीराम साहब के कालजयी मार्गदर्शन में भारत का इतिहास, संस्कृति तथा पहचान और समकालीन राजनीति हमेशा-हमेशा के लिए बदल गई. वे कहते थे कि बाबासाहब की संतानों के बिना भारत की शासन व्यवस्था में पत्ता भी नही हिलने दूंगा. जातिवादी वर्चस्व के दौर में अपनी इन्हीं प्रतिस्थापनाओं के कारण छितरे हुए बहुजन समाज को राष्ट्रीय राजनीति के केन्द्र में लाकर बहुजन नायक कांशीराम एक महान सामाजिक परिवर्तक व राजनीति के बेजोड़ खिलाड़ी के रूप स्थापित में हो गये.
बसपा के पहले दस साल बहुजन समाज के लिए किसी हसीन सपने से कम न थे. इस दौर में बसपा के साथ, बाबासाहब के संविधान पर चलते हुए भारत सफल लोकतान्त्रिक क्रांति की और मजबूती से बढ़ा, बहुजन समाज अपनी सांगठनिक क्षमता व लोकतांत्रिक वैचारिक प्रखरता के साथ असमानता, अपमान व अत्याचार की बुनियाद पर टिके मनुवाद का अंतिम संस्कार करने की तैयारी करने लगा एक व्यक्ति एक मूल्य की अवधारणा को मजबूती देते हुए भारत में सामाजिक लोकतंत्र का उदय होने लगा. धीरे- धीरे बहुजन समाज समय के अनुसार अपनी ऐतिहासिक भूमिका और ज़िम्मेदारी को समझ कर उसका सम्यक निर्वाह करने के लिए तैयार हो रहा था. अपनी विस्मयकारी संगठन क्षमता तथा योग्यता से ऊँचे महलों की चारदीवारियों में कैद, ब्राह्मणवादी नेतृत्व की आराम परस्त राजनीति को बहुजन नायक कांशीराम ने हमेशा के लिए जमीनोंदाज कर दिया.
3 जून, 1995 को इन सपनों को अमली जामा पहना दिया गया और बहुजन समाज की आकांक्षओं की प्रतीक, बहन कुमारी मायावती (बहनजी) देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की मुख्यमन्त्री बनी. यह पिछ्ले सैंकड़ों साल की अभूतपूर्व तथा विलक्षण सामाजिक घटना थी जब बहुजन समाज ने राजसत्ता को पुनः अपने हाथों में लिया. पूरे देश में ख़ुशी व उत्सव के माहौल में बहुजन समाज अब कभी न मुड़कर देखने के लिए अपनी ऐतिहासिक मंजिल की तरफ कदम बढ़ा चुका था.
बाबासाहब ने 29 नवम्बर, 1949 को नानकचन्द रत्तू से जो कहा था कि अब रानी के पेट से नही बल्कि बैलट बॉक्स से शासक पैदा होंगे और महलों वाले सड़कों पर तथा सड़कों वाले महलों में नजर आयेंगे. 3 जून, 1995 को बाबासाहब की बात सही सिद्ध हुई, जब एक चमार (जाटव) महिला (जाति व्यवस्था की दो सबसे अधिक बड़ी शिकार पहचान) ने सभी जातिवादी मनुवादिओं के मंसूबो को कांशीराम जी के नेतृत्व में नेस्तनाबूद करते हुए पुरे बहुजन समाज को सम्मान और सत्ता के शिखर पर पहुँचा दिया.
पूरे देश में सामाजिक परिवर्तन की बयार चलने लगी. राजाओं का तिलक अपने उलटे पाँव की अंगुली से करने वाले सनातनी दुर्बुद्धि, बहन जी के पैरों की धूल अपने माथे पर लगाकर अपने जीवन को सफल बनाने के लिए दण्डवत हुए जाते थे, मानो लोकतान्त्रिक संविधान अपना पहला सार्वजानिक और सार्थक उत्सव मना रहा था.
इसके बाद तीन बार और बसपा ने बहनजी के नेतृत्त्व में उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बना कर सदियों से चले आ रहे सामाजिक गुलामी के दुष्चक्र को तोड़ दिया. आज, जो आंदोलन बहुजन समाज को सम्मान दिलाने के लिए शुरू हुआ था केंद्र में बहनजी के नेतृत्व में सरकार बना कर उसको इसकी तार्किक मंजिल तक पहुचाना चाहता हैं. जिस समाज को शिक्षा, सम्मान, संपत्ति और शस्त्रों से वंचित होकर हजारों साल तक युद्ध बंदी के रूप में तमाम यातनाएं व आमानवीय अत्याचारों को सहना पड़ा लेकिन इन सब के बावजूद उसने जातिवादी सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के प्रदुषण की गुलामी को स्वीकार नही किया और अपनी स्वतंत्र मानवतावादी बौद्धिक पहचान को अक्षुण बनाये रखा, बहुजन समाज अपने इसी लोकतान्त्रिक नेतृत्व में भारत को प्रबुद्द लोकतंत्र बनाने के लिए द्रढ़ता से आगे बढ़ रहा है. यही सामाजिक परिवर्तन समतामूलक समाज, लोकतान्त्रिक सरकार व् मजबूत राष्ट्र की बुनियाद को पक्का कर रहा हैं.
सही मायने में 3 जून, सामाजिक परिवर्तन दिवस हैं आप सभी देशवासिओ को इस अवसर पर हार्दिक बधाई. बहनजी को बहुजन समाज को इस ऐतिहासिक गौरव व उपलब्धि को प्राप्त करवाने के लिए बहुत-बहुत साधुवाद.
(लेखक: प्रो राज कुमार; ये लेखक के निजी विचार है)