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Sunday, June 8, 2025

ओबीसी की वास्तविक स्थिति और उनकी राजनीतिक दिशा

ओबीसी समाज में लंबे समय से यह गलतफहमी फैलाई गई है कि वे समाज में ऊंचा स्थान रखते हैं, जबकि ऐतिहासिक और सामाजिक वास्तविकता कुछ और ही है। अहीर, लोधी, कुर्मी, गुर्जर, जाट जैसे कई ओबीसी समुदाय खुद को ऊंची जातियों के करीब मानते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि ब्राह्मण, बनिया और तथाकथित क्षत्रिय उन्हें कभी भी अपने बराबर नहीं मानते। मनुस्मृति और अन्य ब्राह्मणवादी ग्रंथों में ओबीसी को शूद्र बताया गया है, जिसका अर्थ होता है—सेवक, नौकर और गुलाम।

ब्राह्मणवादी विचारधारा के प्रमुख समर्थक बाल गंगाधर तिलक ने भी 1895 में अपनी पत्रिका केसरी में स्पष्ट लिखा था कि शूद्रों (ओबीसी, अछूत) का एकमात्र कर्तव्य ऊपर के तीन वर्णों की सेवा करना है। इसी सोच के चलते शूद्रों को किसी भी प्रकार के अधिकारों से वंचित रखा गया। यदि आज ओबीसी समाज को शिक्षा, नौकरी और अन्य अधिकार प्राप्त हैं, तो यह बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान की देन है, न कि किसी ब्राह्मणवादी व्यवस्था की कृपा।

ओबीसी का राजनीतिक भविष्य: मनुवादियों की साजिश को समझना जरूरी

आज भी आरएसएस और बीजेपी जैसी संगठन ओबीसी को हिंदू राष्ट्रवाद और सांप्रदायिकता की राजनीति में उलझाकर उन्हें फिर से शूद्र बनाए रखने की योजना पर काम कर रहे हैं। कभी धर्म के नाम पर, कभी मुस्लिम विरोध के नाम पर, तो कभी मंदिर-मस्जिद विवादों के जरिए ओबीसी समाज को अपनी असली पहचान से भटकाया जा रहा है।

इतिहास गवाह है कि ब्राह्मणवादी शक्तियों ने हमेशा शूद्रों को उनके अधिकारों से वंचित रखा और जब भी उन्होंने अपने अधिकार मांगे, तो उन्हें दबाने के लिए हरसंभव षड्यंत्र रचा गया। तुलसीदास ने भी रामचरितमानस में शूद्रों को दंडनीय और ताड़ना के योग्य बताया है। ऐसे में ओबीसी समाज को यह समझने की जरूरत है कि वे केवल हिंदू कहलाने से समाज में सम्मानित स्थान नहीं पा सकते।

संविधान के रक्षक बनें, शोषकों का समर्थन न करें

ओबीसी समाज को अपनी वास्तविकता को समझकर अपने राजनीतिक निर्णय लेने चाहिए। एससी-एसटी समाज के साथ मिलकर सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई लड़नी चाहिए, न कि उन ताकतों का समर्थन करना चाहिए जिन्होंने हमेशा उनका दमन किया।

आरएसएस और बीजेपी का असली एजेंडा ओबीसी समाज को फिर से शूद्र बनाकर उनकी स्वतंत्रता छीनना है। ओबीसी समाज को मनुस्मृति और अन्य ब्राह्मणवादी ग्रंथों का अध्ययन करके यह जानना चाहिए कि उनका स्थान कहां निर्धारित किया गया है और किस तरह से उन्हें सिर्फ सेवक बनाए रखने की योजना बनाई गई थी।

अब समय आ गया है कि ओबीसी समाज अपनी ऐतिहासिक और सामाजिक सच्चाई को पहचाने, अपनी राजनीतिक दिशा को सही करे और सामाजिक न्याय के पक्ष में खड़ा हो। उन्हें उन शक्तियों का समर्थन नहीं करना चाहिए जो उनकी स्वतंत्रता और अधिकारों के खिलाफ हैं। संविधान ने जो अधिकार उन्हें दिए हैं, उन्हें बचाने और मजबूत करने की जरूरत है, न कि उन्हें मनुवादियों के हाथों सौंपने की।

(लेखक: डॉ लाला बौद्ध; ये लेखक के अपने विचार हैं)

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