33.6 C
New Delhi
Monday, June 9, 2025

मोदी सरकार की अस्थिरता: मध्यावधि लोकसभा आमचुनाव की आहट

आज (24.06.2024) आठ्ठारहवीं लोकसभा की शुरुआत हो रही है। यह बसपा की सूझबूझ और रणनीति का परिणाम कि किसी दल पूर्ण बहुमत नहीं मिला। केन्द्र में एक मजबूर सरकार चल रही है। अकेले उत्तर प्रदेश में बसपा ने भाजपा एंड कंपनी को 31 सीटों पर नुक्सान पहुंचाया और कांग्रेस एंड कंपनी को 16 सीटों पर। इस प्रकार खुद का नुक्सान जरूर हुआ लेकिन देशहित व जनहित में बसपा ने देश को कांग्रेस की क्रूरता और भाजपा की तानाशाही से बचा लिया

आज से एक दिन पहले यानि कि कल दिनाँक 23.06.2024 को लखनऊ में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। ये बैठक बसपा कार्यालय लखनऊ पर लोकसभा आमचुनाव-2024 के समीक्षार्थ राष्ट्रीय समीक्षा मीटिंग के तौर पर आहुत हुई। इस बैठक में पार्टी के नकारात्मक परिणाम के संदर्भ में चर्चा हुई। साथ ही, सबसे महत्वपूर्ण खबर यह रही कि परम आदरणीया बहनजी ने माननीय आकाश आनन्द जी को राष्ट्रीय समन्वयक एवं उत्तराधिकारी पर ना सिर्फ बहाल किया है बल्कि उनकी जिम्मेदारी में भी अहम इजाफा करते हुए पूरे देश में पार्टी की समीक्षा का जिम्मा सौंप दिया है। इसके साथ ही बहनजी ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि सभी छोटे-बड़े पदाधिकारी आगे से अपनी रिपोर्ट लोकनायक माननीय आकाश आनन्द जी को सौंपेंगे। अपने युवा नेता को पाकर देश के युवाओं में उत्साह व नवीन ऊर्जा का संचार हुआ है। लोगों को बदलते राजनैतिक समीकरण में लोकनायक माननीय आकाश आनन्द जी से बहुत उम्मीद है। लोगों की उम्मीदों के मद्देनजर यह कहना न्यायोचित है कि –

आकाश नहीं, आगाज़ है।
देश की आवाज है।।

फिलहाल, इन सबसे अलग दिनाँक – 23.06.2024 की अपनी प्रेस विज्ञप्ति के पांचवे पैराग्राफ में बहनजी लिखतीं हैं कि – ‘केन्द्र की भाजपा व इसके NDA की सरकार पूरे तौर पर स्थिर नहीं है। इनकी कभी भी अस्थिर होने की स्थिति बन सकती है। ऐसे में पार्टी के लोगों को पूरे देश में पार्टी के संगठन में मिशनरी लोगों को आगे करके पार्टी के जनाधार को युद्ध स्तर पर आगे बढ़ाना है। ताकि हर स्तर पर पार्टी मजबूत हो सके।

बहनजी ने अपने जीवन संघर्ष में राजनीति, इसके बदलते स्वरूप और इसके उतार-चढ़ाव को बडे़ करीब से देखा है। इस समय पूरे देश में बहनजी के बराबर ना तो किसी का तजुर्बा है और ना दूरदृष्टि। इसलिए अपनी राष्ट्रीय समीक्षा बैठक में बहनजी द्वारा दिया कथन महत्वपूर्ण हो जाता है। राजनीति में अनिश्चितता और अस्थिरता निहित होती है। इसलिए राजनीति के विषय में सौ फीसदी का दावा कोई नहीं कर सकता है, परिस्थितियों के मुताबिक आकलन जरूर किया जाता है। यदि इन सबके मद्देनजर बहनजी की प्रेस विज्ञप्ति को देखा जाय तो बहनजी का उपरोक्त कथन ‘कहीं समय से पूर्व लोकसभा चुनाव की आहट तो नहीं है।’

आज के समय में यह सत्य है कि एनडीए की सरकार में श्री नरेंद्र मोदी जी ही एकमात्र चेहरा है। यह भी सच है कि इस समय श्री नरेन्द्र मोदी जी आरएसएस के नियंत्रण से बाहर हैं। इसलिए आरएसएस वाले मोदी जी को पसन्द नहीं कर रहे हैं। यदि किसी कारणवश एनडीए गठबंधन में टूट पड़ती है, श्री नरेंद्र मोदी जी को एनडीए वाले नकारते हैं तो एनडीए इस स्थिति में नहीं है कि वह किसी और चेहरे के नेतृत्व में सरकार बना सके। ऐसे में आरएसएस के सामने एक बेहतरीन विकल्प है – इंडी गठबंधन।

आरएसएस के लिए इंडी गठबंधन बेहतर विकल्प कैसे है?

सनद रहे, आरएसएस हिन्दुत्व का आन्दोलन है। इस आन्दोलन को शुरुआत से कांग्रेस, कम्युनिस्ट व समाजवादियों ने सींचा है। श्री मोहनदास करमचंद गांधी खुद भी हिंदुत्व के कट्टर समर्थक रहे हैं। ये जगजाहिर है कि लोहिया एक जातिवादी एवं गांधीवादी नेता रहे हैं। नेहरू, इंदिरा ने मुस्लिम समाज को अपने से बांधकर रखने के लिए थोड़ा नरम जरूर रहे हैं लेकिन फिर भी ये विषमतावादी हिन्दू धर्म के समर्थन में सदा खड़े रहें हैं।

राजीव गाँधी ने राममंदिर का ताला खुलवा कर हिन्दुत्व की राजनीति को नयी ऊँचाइयों से नवाज़ा है। इसके बाद के दौर में भाजपा प्रबल हुई तो कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय को आकर्षित करने का सफल प्रयत्न जरूर किया लेकिन हिन्दुत्व का कभी विरोध नहीं किया बल्कि हमेशा अप्रत्यक्ष समर्थन ही किया है।

श्री राहुल गाँधी जी ने भी खुलेआम अपनी जनेऊ का प्रदर्शन करके कट्टर हिंदुत्व को समर्थन दिया। कांग्रेस के नेतृत्व वाली इंडी गठबंधन में शामिल दलों ने भी हिन्दुत्व का समर्थन किया है। मुस्लिम समुदाय को छलने के लिए लोकसभा आमचुनाव-2024 में भले ही इंडी गठबंधन के घटक दल अयोध्या दर्शन को नहीं गये, बाबासाहेब की तश्वीर सर पर रखकर घूमें लेकिन चुनाव परिणाम के बाद इंडी गठबंधन के सभी घटक दलों ने बारी-बारी अयोध्या दर्शन करके आरएसएस के हिन्दुत्व को खुला समर्थन दिया है।

सपा हमेशा से है आरएसएस की सहयोगी

तारीख गवाह है कि कांग्रेस के साथ-साथ राममंदिर निर्माण हेतु अप्रत्यक्ष तौर सबसे ज्यादा सहयोग यदि किसी ने किया है तो वह मुलायम सिंह यादव थे। ‘परिंदा भी पर नहीं मार सकता है‘ कह कर बाबरी मस्जिद विध्वंस की तकदीर लिखने वाले उत्तर प्रदेश के तात्कालिक मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ही थी जिसे मुस्लिम समुदाय आज तक नहीं समझ पाया है। फरवरी 2019 में आरएसएस के एजेंडे पर चलने वाले मोदी जी के दुबारा प्रधानमंत्री बनने की कामना मुलायम सिंह यादव लोकसभा में कर चुके हैं। इसी का पालन करते हुए मुलायम सिंह यादव की बिरादरी ने बसपा-सपा गठबंधन-2019 के बावजूद जहाँ-जहाँ बसपा के उम्मीदवार खड़े थे वहाँ-वहाँ पर बसपा के उम्मीदवार को वोट करने के बजाय भाजपा को खुलेआम वोट किया था। आरएसएस के हिन्दुत्व के आन्दोलन, इसके एजेंडे को साकार करने में आरएसएस पर मुलायम सिंह यादव के बहुत एहसान हैं।

यही वजह रही है कि हिन्दुत्व, राममंदिर निर्माण और बाबरी मस्जिद विध्वंस में मुलायम सिंह यादव ने अतुलनीय योगदान के कारण ही 12 मार्च 2023 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की अहम बैठक में समाजवादी पार्टी के दिवंगत नेता मुलायम सिंह यादव को याद किया गया। उनको श्रद्धांजलि दी गई। ये आरएसएस ही महत्वपूर्ण वजह थी कि मुलायम सिंह यादव की मृत्यु के तुरंत बाद आरएसएस ने भाजपा की केन्द्र सरकार से मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण से सम्मानित कराया।

सपाइयों पर हिन्दुत्व का इतना गहरा प्रभाव है कि जातिवाद के समर्थक श्री अखिलेश यादव सैफई में महादेव मंदिर निर्माण करा रहे हैं। इस प्रकार अखिलेश यादव हो, प्रियंका गाँधी, अरविंद केजरीवाल या ममता बनर्जी हो ये सभी माथे पर कट्टर हिन्दू की तरह चंदन-टीका लगाकर कट्टर हिन्दुत्व का खुला समर्थन कर रहे हैं। इन सभी की जीवनशैली, वैचारिकी, लक्ष्य और संगठन के लिए पूंजीपतियों के घरों से आने वाला सहयोग सब कुछ एक ही है। ये सभी मनुवाद और पूंजीपतियों के कट्टर जातिवादी समर्थक हैं। यही सब वजह है कि ये, इनके पदाधिकारी व समर्थक लगातार इस बात पर जोर देते हैं कि ‘अयोध्या तो झांकी है, मथुरा-काशी बाकी है। आरएसएस यह सब जानती है। आरएसएस यह भी जानती है कि जब-जब हिन्दू-मुस्लिम दंगे होते हैं तो हिन्दुत्व की रक्षा में अखिलेश यादव के बिरादरी सबसे आगे रहते हैं। आज की तारीख में यादव समाज ब्रह्मणों से बड़ा ब्रहाम्ण व हिन्दुत्व, हिन्दू राष्ट्र का कट्टर समर्थक है। इसलिए आरएसएस को इंडी गठबंधन के किसी भी घटक से कोई समस्या नहीं है बल्कि वे सभी आरएसएस के एजेंडे और विचारधारा का अप्रत्यक्ष तौर पर खुला समर्थन करते हैं।

मोदी गुट एंव आरएसएस में तनाव, आरएसएस के लिए इंडी है विकल्प

पहली बार मोदी जी भले आरएसएस की बदौलत प्रधानमंत्री बने थे, इसलिए आरएसएस के मुताबिक काम किया, लेकिन दूसरी और तीसरी बार मोदी जी अपनी रणनीति से प्रधानमंत्री बने हैं। यही वजह है कि आरएसएस मोदी जी से नाराज है। यह नाराजगी मोहन भागवत और तात्कालिक भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के बयानों से स्पष्ट हो चुका है। इसलिए आरएसएस के मोदी अब गैर-जरूरी हो चुके हैं। ऐसे में जो हिन्दुत्व, हिन्दू राष्ट्र का अप्रत्यक्ष समर्थक है, आरएसएस के एजेंडे का अप्रत्यक्ष समर्थक है, आरएसएस उसे सहयोग करने में बिलकुल नही हिचेकेगी। ऐसे में आरएसएस के पास इंडी गठबंधन एक बेहतर विकल्प है।

इसके अलावा आज के इंडी एवं एनडीए गठबंधन के तमाम दल और नेता आरएसएस के नेतृत्व वाली अटल सरकार में सहयोगी रहे हैं। इसलिए इंडी गठबंधन से आरएसएस को और आरएसएस से इंडी गठबंधन को कोई तकलीफ नही है। इंडी गठबंधन, एनडीए और आरएसएस की विचारधारा, इनका लक्ष्य और एजेंडा एक है। इसलिए आरएसएस को नकार चुके श्री नरेन्द्र मोदी जी से किनारा करके यदि आरएसएस इंडी गठबंधन की सरकार बनाने में मदद करती है तो किसी को आश्चर्य नही होना चाहिए।

इसलिए श्री नरेन्द्र मोदी से नाराज आरएसएस अपने संघी सांसदों को कांग्रेस के खेमे में भेज दे तो अचंभित होने की जरूरत है। आरएसएस के आन्दोलन को इंडी गठबंधन वालों से कोई दिक्कत नहीं है बल्कि पूरा इंडी गठबंधन प्रत्यक्ष ना सही, अप्रत्यक्ष तौर पर पूरी तरह से आरएसएस के एजेंडे का समर्थक है। उसके एजेण्डे के साथ है। हाँ, समर्थन का तरीका, शब्द और लहजा अलग हो सकता है। साथ ही, आज के परिप्रेक्ष्य में यह भी सत्य है कि इंडी ठगबंधन कितना भी दावा कर ले, जो ‘भाजपा हराओं’ वोटर्स को रोकने के लिए जरूरी है, लेकिन किसी भी एक चेहरे पर एक मत बड़ा मुश्किल है, भले ही उसे आरएसएस समर्थन कर दे।

मोदी गुट, आरएसएस-इंडी की मंशा आसानी से कामयाब नहीं होने देगा

यदि श्री नरेन्द्र मोदी जी से नाराज आरएसएस मोदी गुट से इतर कांग्रेस के इंडी गठबंधन को समर्थन करना चाहें तो श्री नरेन्द्र मोदी जी यह सब इतनी आसानी से होने नहीं देंगे। यदि अस्थिरता होती है, सरकार खतरे में आती है तो श्री नरेंद्र मोदी जी इतनी आसानी से विपक्ष में बैठने को तैयार नहीं है। विपक्ष में बैठने के बजाय श्री नरेन्द्र मोदी जी लोकसभा भंग करने की सिफारिश कर मध्यावधि चुनाव करा सकते हैं। यह संभव है।

बसपा ही एकमात्र विकल्प है

इन सबके बीच भाजपा एंड कम्पनी और इंडी ठगबंधन ने देश के साथ नाइंसाफी की है। जनता में इंडी ठगबंधन को लेकर घोर निराशा है कि सबने एकमुश्त वोट किया फिर भी असफलता ही हाथ लगी है। अब जनता जान चुकी है कि यह बसपा ही है जिसने खुद नुकसान उठाकर देश को कांग्रेस की क्रूरता और भाजपा की तानाशाही से बचा लिया है। ऐसे में देश की एकमात्र उम्मीद बसपा ही है।

इसलिए बसपा समर्थको, पदाधिकारी संग सभी जिम्मेदार लोगों एक नये सिरे से शुरूआत करते हुए संगठन को मजबूत कर लोगों को जोड़ने की जरूरत है क्योंकि यदि निकट भविष्य में जल्द ही मध्यावधि लोकसभा चुनाव की घोषणा हो जाय आश्चर्य नही होना चाहिए। ऐसे चुनाव पूंजीपतियों की दौलत से चलने वाली पार्टियों के लिए भले ही नुकसानदायक हो लेकिन आम जनता के हित में होती है। हालांकि चुनाव पर खर्च होने वाले राजस्व, विकास में बाधा आदि, जो कुछ हद सही भी है, का हवाला देकर पूंजीपतियों की दौलत से चलने वाली पार्टियां विरोध करती है, लेकिन इसके बावजूद मजबूर सरकार और ऐसे चुनाव जनता में संविधान के प्रति जागरूकता का प्रसार करते हैं, लोगों को लोकतंत्र की ताकत का एहसास कराते हुए देश में लोकतांत्रिक जड़ो को मजबूत करते हुए भारत राष्ट्र निर्माण में योगदान करते हैं। इसलिए शोषित वंचित जनता के सहयोग से चलने वाली ‘सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्ति‘ के लक्ष्य को समर्पित बसपा के सभी कार्यकर्ताओं, समर्थकों व सभी छोटे-बड़े पदाधिकारियों को आने वाले भविष्य में किसी भी बडे़ बदलाव व राजनीतिक उथल-पुथल के लिए तैयार रहना चाहिए। देशहित में बसपा व इसकी वैचारिकी से लोगों को जोड़ते हुए अपने नेतृत्व के मार्गदर्शन में पूर्ण अनुशासन के साथ काम करते रहना चाहिए।


— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)


Buy Now LEF Book by Indra Saheb

(ये लेखक के अपने विचार हैं)


Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

सामाजिक परिवर्तन दिवस: न्याय – समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का युगप्रवर्तक प्रभात

भारतीय समाज की विषमतावादी व्यवस्था, जो सदियों से अन्याय और उत्पीड़न की गहन अंधकारमयी खाइयों में जकड़ी रही, उसमें दलित समाज की करुण पुकार...

धर्मांतरण का संनाद: दलित समाज की सुरक्षा और शक्ति

भारतीय समाज की गहन खोज एक मार्मिक सत्य को उद्घाटित करती है, मानो समय की गहराइयों से एक करुण पुकार उभरती हो—दलित समुदाय, जो...

‘Pay Back to Society’ के नाम पर छले जाते लोग: सामाजिक सेवा या सुनियोजित छल?

“Pay Back to Society” — यह नारा सुनने में जितना प्रेरणादायक लगता है, व्यवहार में उतना ही विवादास्पद होता जा रहा है। मूलतः यह...

प्रतिभा और शून्यता: चालबाज़ी का अभाव

प्रतिभा का वास्तविक स्वरूप क्या है? क्या वह किसी आडंबर या छल-कपट में लिपटी होती है? क्या उसे अपने अस्तित्व को सिद्ध करने के...

सतीश चंद्र मिश्रा: बहुजन आंदोलन का एक निष्ठावान सिपाही

बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कानूनी सलाहकार सतीश चंद्र मिश्रा पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। कुछ लोग उनके बीएसपी के प्रति...

राजर्षि शाहूजी महाराज से मायावती तक: सामाजिक परिवर्तन की विरासत और बहुजन चेतना का संघर्ष

आज का दिन हम सबको उस महानायक की याद दिलाता है, जिन्होंने सामाजिक न्याय, समता और बहुजन उन्नति की नींव रखी — राजर्षि छत्रपति...

मान्यवर श्री कांशीराम इको गार्डन: बहनजी का पर्यावरण के लिए अतुलनीय कार्य

बहनजी ने पर्यावरण के लिये Start Today Save Tomorrow तर्ज पर अपनी भूमिका अदा की है, अपने 2007 की पूर्ण बहुमत की सरकार के...

जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी: जातिगत जनगणना पर बहुजन विचारधारा की विजयगाथा

भारत की राजनीति में एक ऐतिहासिक क्षण आया है-जिसे बहुजन आंदोलन की सबसे बड़ी वैचारिक जीत के रूप में देखा जा सकता है. कैबिनेट...

कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा

बहनजी के दूरदर्शी नेतृत्व, बौद्ध धम्म के प्रति अनुराग और सामाजिक समावेश की अमर गाथा कुशीनगर—शांति और करुणा का वैश्विक केंद्र कुशीनगर, वह पावन धरती जहाँ...

बहनजी की दूरदृष्टि: लखनऊ हाई कोर्ट परिसर का भव्य निर्माण

भारत के इतिहास में कुछ ही व्यक्तित्व ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपनी दूरदृष्टि, दृढ़ संकल्प और समाज के प्रति समर्पण से युगों को प्रेरित...

साम्प्रदायिकता का दुष्चक्र और भारतीय राजनीति की विडंबना

भारतीय राजनीति का वर्तमान परिदृश्य एक गहन और दुखद विडंबना को उजागर करता है, जहाँ साम्प्रदायिकता का जहर न केवल सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न...

सपा की नीति और दलित-बहुजन समाज के प्रति उसका रवैया: एक गंभीर विश्लेषण

भारतीय सामाजिक संरचना में जातिवाद और सामाजिक असमानता ऐसी जटिल चुनौतियाँ हैं, जिन्होंने सदियों से समाज के विभिन्न वर्गों, विशेषकर दलित-बहुजन समुदाय को हाशिए...