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Monday, June 9, 2025

बहुजन नायकों की जयंति क्यों मनानी चाहिए Why Celebrate Bahujan Heroes Birth Anniversary

खुद की सांस्कृतिक विरासत खड़ी करने के लिए खुद के उत्सव मनाने होंगे. इस बात को बाबासाहेब, मान्यवर साहेब कांशीराम जैसी महान शख्सियतों ने भली भांती सबझकर इसे समाज में उतारने का काम किया.

Bahujan Heroes: बहुजन समाज प्रति वर्ष दर्जनों पर्व, उत्सव, जयंतियाँ मनाता है. इन उत्सवों में कुछ पर्व तो आज भी अन्य धर्मों, समाजों, जातियों द्वारा थोपे गए या प्रचलित किए गए होते हैं. जिन्हे भी बहुजन समाज खूब सेलिब्रेट करता है.

खुद की सांस्कृतिक विरासत खड़ी करने के लिए खुद के उत्सव मनाने होंगे. इस बात को बाबासाहेब, मान्यवर साहेब कांशीराम जैसी महान शख्सियतों ने भली भांती सबझकर इसे समाज में उतारने का काम किया. इन्ही की बदौलत आज देशभर में विभिन्न बहुजन समाज के नायक-नायिकाओं की जयंतिया और पुण्यतिथियाँ बड़ी संख्या में मनाई जाने लगी है. 

बड़ा सवाल ये है कि हमें इन बहुजन नायकों कि जयंतियों को क्यों मनाना चाहिए? इस सवाल की पड़ताल जवाहर लाल नेहरू युनिवर्सिटी में समाजशास्त्री और विभागाध्यक्ष समाजशास्त्र ने की है और उन्होने पांच ऐसे कारण गिनाए हैं. जो ये बताने के लिए काफी होंगे कि बहुजन समाज को अपने बहुजन नायकों की जयंतियाँ बार-बार क्यों मनानी चाहिए?

तो चलिए एक-एक करके प्रो विवेक कुमार के तर्कों को जानते हैं.

  1. विचारों को अगर बार-बार न मांझा जाए तो विचार मर जाते हैं. विचार मरते हैं तो विचारक मर जाते हैं, विचारक मरते है तो समाज का इतिहास मर जाता है. इतिहास मरता है तो समाज का मनोबल टूट जाता है. इसलिए, हमें अपने नायकों की जयंतियाँ बार-बार मनानी चाहिए.
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  3. बहुजन नायकों की जयंती भाईचारा बढ़ाने का कार्यक्रम भी है. इनकी वजह से बहुजन कश्मीर से कन्या कुमारी तक, पोरबंदर से कोहिमा तक एक सूत्र और डोर में बंध जाता है. अब तो इन जयंतियों की वजह से कनाड़ा, कैलिफोर्नियाँ, कैम्ब्रिज, कतर, आस्ट्रेलिया से आबूधाबी आदि तक विदेशों में रह रहे बहुजन एक धागे में बंधे हैं.
  4. बहुजन नायकों की जयंतियाँ ही बहुजनों/दलितों की सांस्कृतिक पूंजी है. वर्ना उनके पास न कोई त्योंहार है न ही कोई मेले. ये जयंतियाँ ही उनके अपनी पूंजी के आधार पर हर्षोल्लास मनाने का वजह है.
  5. बहुजन नायकों/नायिकाओं की जयंतियों में होने वाले समारोह ही आने वाली पीढ़ी का सामाजीकरण करने और उन्हे अपनी संस्कृति का वाहक बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं. इसके कारण ही अम्बेड़करवादी कैडर तैयार होने की संभावना पैदा होती है.

— दैनिक दस्तक —

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