मनुवाद का षड्यंत्र और बहनजी का मार्ग: अम्बेडकरवाद की विजय यात्रा
हिंदुत्व का उन्माद और शोषित समाज का संकट
पिछले दो दशकों से हिंदुत्व विचारधारा पर आधारित भाजपा, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार के रूप में देश पर शासन कर रही है। इस शासन ने साम्प्रदायिकता, जातिगत वैमनस्य, धार्मिक उन्माद और बेरोजगारी को अभूतपूर्व ऊँचाइयों तक पहुँचाया है। इसका सबसे गहरा दुष्प्रभाव दलित, पिछड़े, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदायों पर पड़ा है—एक ऐसा कहर, जो इन समाजों की नींव को हिला रहा है। इस संकट के बीच मनुवादियों ने प्रो-मोदी और एंटी-मोदी का कृत्रिम माहौल रचकर शोषित समाज को भ्रमित किया है। इस लेख में हम इस भ्रम को तोड़ते हुए यह समझने का प्रयास करेंगे कि असली विकल्प न तो इंडी गठबंधन है, न ही भाजपा, बल्कि बहनजी के नेतृत्व में बसपा और उसकी अम्बेडकरवादी विचारधारा है।
इंडी गठबंधन: मनुवाद का दूसरा चेहरा
अम्बेडकरवादी विचारधारा से भटके लोग ‘एंटी-मोदी सिंड्रोम’ के शिकार हो गए हैं, यह मानते हुए कि मोदी को हटाने से समस्याएँ समाप्त हो जाएँगी। इस भावना को भुनाने के लिए कांग्रेस, सपा, राजद, जदयू, टीएमसी, आप, शिवसेना और डीएमके ने इंडी गठबंधन का निर्माण किया। किंतु इन दलों की नीतियों और नियत पर दृष्टि डालें, तो ये सभी उसी मनुवादी विचारधारा के पोषक हैं, जिसे भाजपा आगे बढ़ा रही है। लालू प्रसाद यादव ने कर्पूरी ठाकुर को उनकी जाति (नाई) के आधार पर ‘कपटी ठाकुर’ कहकर अपमानित किया, उनकी सरकार में दलित अधिकारी की हत्या और बाथेपुर-लक्ष्मणपुर जैसे दलित संहार हुए। मुलायम सिंह यादव ने एक दलित महिला नेता का अपहरण करवाया, बहनजी पर हमला करवाया, और भाजपा से साठगाँठ कर बाबरी मस्जिद ध्वस्त करवाई। अखिलेश यादव के शासन में मुजफ्फरनगर दंगा हुआ। फिर भी, ये नेता शोषित समाज को रास आ रहे हैं। ममता, नीतीश, केजरीवाल और स्टालिन जैसे नेता भी मनुवाद को बढ़ावा देने में सहभागी रहे हैं। यहाँ तक कि कांग्रेस, जो आरएसएस की जननी रही, मनुवाद की साइलेंट पोषक है। फिर इंडी गठबंधन एनडीए का विकल्प कैसे हो सकता है?
हिंदुत्व का उन्माद और शोषित समाज का संकट
पिछले दो दशकों से हिंदुत्व विचारधारा पर आधारित भाजपा, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार के रूप में देश पर शासन कर रही है। इस शासन ने साम्प्रदायिकता, जातिगत वैमनस्य, धार्मिक उन्माद और बेरोजगारी को अभूतपूर्व ऊँचाइयों तक पहुँचाया है। इसका सबसे गहरा दुष्प्रभाव दलित, पिछड़े, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदायों पर पड़ा है—एक ऐसा कहर, जो इन समाजों की नींव को हिला रहा है। इस संकट के बीच मनुवादियों ने प्रो-मोदी और एंटी-मोदी का कृत्रिम माहौल रचकर शोषित समाज को भ्रमित किया है। इस लेख में हम इस भ्रम को तोड़ते हुए यह समझने का प्रयास करेंगे कि असली विकल्प न तो इंडी गठबंधन है, न ही भाजपा, बल्कि बहनजी के नेतृत्व में बसपा और उसकी अम्बेडकरवादी विचारधारा है।
इंडी गठबंधन: मनुवाद का दूसरा चेहरा
अम्बेडकरवादी विचारधारा से भटके लोग ‘एंटी-मोदी सिंड्रोम’ के शिकार हो गए हैं, यह मानते हुए कि मोदी को हटाने से समस्याएँ समाप्त हो जाएँगी। इस भावना को भुनाने के लिए कांग्रेस, सपा, राजद, जदयू, टीएमसी, आप, शिवसेना और डीएमके ने इंडी गठबंधन का निर्माण किया। किंतु इन दलों की नीतियों और नियत पर दृष्टि डालें, तो ये सभी उसी मनुवादी विचारधारा के पोषक हैं, जिसे भाजपा आगे बढ़ा रही है। लालू प्रसाद यादव ने कर्पूरी ठाकुर को उनकी जाति (नाई) के आधार पर ‘कपटी ठाकुर’ कहकर अपमानित किया, उनकी सरकार में दलित अधिकारी की हत्या और बाथेपुर-लक्ष्मणपुर जैसे दलित संहार हुए। मुलायम सिंह यादव ने एक दलित महिला नेता का अपहरण करवाया, बहनजी पर हमला करवाया, और भाजपा से साठगाँठ कर बाबरी मस्जिद ध्वस्त करवाई। अखिलेश यादव के शासन में मुजफ्फरनगर दंगा हुआ। फिर भी, ये नेता शोषित समाज को रास आ रहे हैं। ममता, नीतीश, केजरीवाल और स्टालिन जैसे नेता भी मनुवाद को बढ़ावा देने में सहभागी रहे हैं। यहाँ तक कि कांग्रेस, जो आरएसएस की जननी रही, मनुवाद की साइलेंट पोषक है। फिर इंडी गठबंधन एनडीए का विकल्प कैसे हो सकता है?
BIM फैक्टर: असली विकल्प का सूत्र
भारतीय राजनीति आज BIM फैक्टर पर टिकी है—BJP vs BSP, Ideology: Hindutva vs Ambedkarism, और Modi vs Maya। भाजपा का विकल्प केवल बसपा हो सकती है, हिंदुत्व का जवाब केवल अम्बेडकरवाद है, और मोदी का मुकाबला केवल मायावती कर सकती हैं। इंडी गठबंधन और एनडीए दोनों मनुवादी हैं, चाहे वह सपा का समाजवाद हो या कांग्रेस का सेकुलरिज्म। शोषित समाज को यह समझना होगा कि एक शोषक का विकल्प दूसरा शोषक नहीं हो सकता। प्रो-मोदी/एंटी-मोदी का यह भ्रमजाल टूटना चाहिए। यदि समाज Modi vs Maya, BJP vs BSP और Hindutva vs Ambedkarism की राह अपनाए, तो भगवा कमल को नीले झंडे के हाथी के कदमों तले रौंदा जा सकता है। यह राह लोकतंत्र को मजबूत करेगी, संविधान सम्मत शासन लाएगी और समतामूलक समाज का सृजन करेगी।
निष्कर्ष: समाज की जिम्मेदारी और बसपा का आह्वान
शोषित समाज को आत्मचिंतन करना होगा—वह कब तक जातिवादी, साम्प्रदायिक और अम्बेडकरवाद विरोधी दलों के चंगुल में फँसा रहेगा? बहनजी ने इंडी और एनडीए दोनों के षड्यंत्र को पहचाना और बसपा को स्वतंत्र रखा। अब समाज का दायित्व है कि वह इस BIM फैक्टर को समझे। आंदोलन में न्योता नहीं दिया जाता; जो अम्बेडकरवादी विचारधारा और सामाजिक-आर्थिक मुक्ति के लक्ष्य से सहमत हैं, वे स्वयं इसका हिस्सा बनते हैं। प्रश्न यह है कि क्या समाज इसके लिए तैयार है? यदि हाँ, तो बसपा के नीले झंडे तले एकजुट होकर वह मनुवाद को परास्त कर सकता है। यह केवल एक लेख नहीं, बल्कि एक जागृति की पुकार है—समाज जागे, बहनजी के मार्ग पर चले, और अपनी हुकूमत कायम करे।