बहनजी ने आकाश आनंद जी को अपना उतराधिकारी घोषित किया है, तकरीबन बसपाइयों ने बहनजी के इस फैसले का स्वागत किया है. लेकिन, कुछ लोग इस फैसले से नाराज भी हुए हैं, वो अलग बात हैं कि ज्यादातर लोग वो नाराज हैं जो पहले से ही कांग्रेसी, सपाई, आपिये या भाजपाई रहे हैं. जो आसपा या भीम आर्मी का समर्थन करने का नाटक करने में माहिर भी हैं जबकि वो वोट उनको भी नही डालते.
बसपा दलित शोषित समाज की स्वतंत्र राजनीति की पहचान बन चुकी है. बसपा की समस्या उतराधिकारी घोषित करना कभी नही रहा. बहनजी जिसको भी बनाती, वो स्वीकार होता क्योंकि बसपा से जुड़े लोगों को बहनजी के फैसलों पर यकीन रहा हैं. इसलिए, आकाश आनंद जी को उतराधिकारी बनाने मात्र से समस्याएं खत्म नहीं होती, वोट जोड़ने के लिए हर पहलु पर सोचना, और उस पर अमल करना सबसे ज्यादा जरुरी है.
बहुत से लोग कैडर की बात करते हैं, लेकिन क्या सिर्फ कैडर प्राप्त लोग ही बसपा को वोट करते हैं, अगर ऐसा होता तो स्वामीप्रसाद मौर्य, संजय निषाद, ओमप्रकाश राजभर, योगेश वर्मा, रामअचल राजभर जैसे सैकड़ों नेता मौकापरस्ती के रिकार्ड तोड़ तोड़कर नहीं जाते.
कैडर का मतलब लोकतंत्र में वोट का महत्व, अपनी सत्ता, महापुरुषों की विचारधारा और संघर्ष आदि के बारे ही बताना होता हैं तो फिर सोशल मीडिया के दौर में ये कैडर 100 गुणा बढ़े हैं, फिर समस्या कहाँ आ रही हैं, ये सोचना ज्यादा जरूरी हैं.
लिमिटेड रिसार्सेज (संसाधन) में चुनाव लड़ना आसान नहीं हैं, इस दौर में चुनावो पर हजारों लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों रुपयों में खर्चा हो रहा है. समाज के गरीब वर्गो में खर्च करने की ताकत ना के बराबर है लेकिन ये भी सच हैं कि चुनावों में दारू, मुर्गे, लंच के पैकेट, गाड़ियों में पैट्रोल डीजल का खर्चा, जेबखर्ची का पैसा, वोट के बदले में पैसा भी सबसे ज्यादा गरीब वर्गो में ही बहता है ताकि वोट मिलती रहें.
हर एक बोट जरूरी हैं और राजनीति में जाति देखकर वोट मिलने की परम्परा का सबसे ज्यादा नुकसान भी बसपा जैसे दलों को ही होना है क्योंकि पिछड़े और सर्वणों को दलितों से उच्च होने का घमंड वोट डालने नहीं देता, आदिवासी भी दलितों के साथ जुड़ने को तैयार नहीं दिखते, अल्पसंख्यकों को शोषित समाज और शोषक समाज के मुद्दो पर बसपा मुख्य विकल्प नजर नहीं आती. ऊपर से मेश्राम, चन्द्रशेखर जैसे लोगों को भी बसपा के अलावा हर किसी के लिए वोट मांगने में बडडप्पन महसूस होता आया है.
आकाश आनंद जी के लिए ऐसे में बहुत ही चैलेंज वाला काम मिला है, हो सके तो बसपा से नाराज पुराने लोगों, पदाधिकारियों और मिशनरी लोगों को तव्वजों और सम्मान देने की प्रणाली विकसित कर लेनी चाहिये क्योंकि इनमें से बहुत से लोग नजरअंदाज होने के कारण नाराज है लेकिन बसपा आज भी उनके दिलो में बसती है. बहुत से लोगों ने ग्राउंड पर मेहनत कर रखी हैं, वो अलग-अलग कारणों से निष्क्रिय हो चुके हैं, अगर ऐसे लोगों के बसपा के प्रति अपनेपन को फिर से जागृत कर पाए तो ये लोग फिर से बसपा की हवा बनाने में मदद कर सकते हैं.
आकाश आनंद जी को युवाओं को ही नहीं बल्कि नाराज और नजरअंदाज लोगों को भी इस कारवां में जोड़ना ही होगा, अगर ऐसा कर पाएं तो वो मान्यवर और बहनजी के इस कारवां को सता के शिखर तक पहुंचने में बहुत मदद मिल सकती हैं.
(लेखक: एन दिलबाग सिंह; ये लेखक के अपने विचार हैं)