बहुजन आंदोलन का स्वाभिमान: उधारी के नायकों से मुक्ति की पुकार
प्रस्तावना: एक चिंताजनक प्रवृत्ति का उदय
आज के दौर में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के भीतर एक ऐसी प्रवृत्ति उभर रही है जो चिंता का विषय बन गई है। बसपा के बड़े पदाधिकारी, प्रभारी, और यहाँ तक कि पूर्व लोकसभा सांसद भी सोशल मीडिया पर मनुवादी नेताओं के जन्मदिवस और पुण्यतिथि पर उन्हें नमन करते हुए पोस्टर साझा कर रहे हैं। यह हद तब पार हो गई जब उन व्यक्तियों को सम्मान दिया जाने लगा, जिन्होंने बसपा को नष्ट करने के लिए षड्यंत्र रचे, बामसेफ को तोड़ा, और 2 जून 1995 को भारत गौरव परम आदरणीया बहनजी पर जानलेवा हमला करवाया। यह प्रवृत्ति न केवल बसपा की विचारधारा के लिए खतरा है, बल्कि बहुजन आंदोलन के मूल स्वरूप को भी धूमिल कर रही है। यह लेख इस भटकाव की पड़ताल करता है और शोषित समाज को अपने असली नायकों की पहचान करने की पुकार देता है।
मनुवादियों का महिमामंडन: एक आत्मघाती कदम
बसपा के कुछ पदाधिकारी और समर्थक उन मनुवादी नेताओं को नायक के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिन्होंने बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर, मान्यवर कांशीराम साहेब, और बहनजी के खिलाफ साजिशें रचीं। इनमें वे लोग शामिल हैं जिन्होंने बामसेफ को लालच देकर तोड़ा और मान्यवर साहेब को उनके ही संगठन से बाहर कर दिया। क्या यह संभव है कि जो लोग बहुजन आंदोलन को दफन करने का प्रयास करते रहे, वे शोषित समाज के हितैषी हों? यदि कांग्रेस और उसके मनुवादी नेता अच्छे हैं, तो भाजपा में क्या बुराई है? दोनों की विचारधारा—मनुवाद—और लक्ष्य—जाति आधारित व्यवस्था—एक ही हैं। यदि गांधी अच्छे हैं, तो तिलक, सावरकर, या गोलवलकर में क्या दोष है? यदि मंदिरों में भटकते राहुल और प्रियंका गांधी स्वीकार्य हैं, तो हिंदुत्व की राजनीति करने वाले नरेंद्र मोदी को बुरा क्यों कहा जाए? यह दोहरा मापदंड बहुजन समाज को भ्रम में डाल रहा है और उसकी वैचारिक नींव को कमजोर कर रहा है।
बहुजन नायकों का अकाल: एक भ्रामक धारणा
क्या बहुजन आंदोलन में अपने नायकों और नायिकाओं का अकाल पड़ गया है कि हमें मनुवादियों से उधार लेना पड़ रहा है? यदि गांधीवादी और गांधीवाद सही हैं, तो मनुवाद में क्या बुराई है? यदि सपा, राजद, जदयू, टीएमसी जैसे जातिवादी और साम्प्रदायिक दल अच्छे हैं, तो भाजपा में क्या कमी है? यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि बसपा के कुछ छोटे पदाधिकारी और छुटभैये नेता व्यक्तिगत चमक के लिए सोशल मीडिया पर मनुवादी नेताओं को नायक बनाकर प्रस्तुत कर रहे हैं। वे लाइक, शेयर, और कमेंट की लालसा में बहुजन विरोधियों को महिमामंडित कर रहे हैं। यह स्वार्थी प्रवृत्ति न केवल बसपा को बदनाम कर रही है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी विचारधारा और नायकों से वंचित कर रही है। ऐसे लोग न तो बसपा को समझते हैं, न ही आंदोलन को—वे केवल अपनी छवि चमकाने के लिए सक्रिय हैं और असफलता का ठीकरा नेतृत्व पर फोड़कर किनारा कर लेते हैं।
बहुजन आंदोलन की आत्मनिर्भरता: असली नायकों की पहचान
बहुजन आंदोलन में सैकड़ों स्थानीय, राष्ट्रीय, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित नायक-नायिकाएँ हैं, जिन्होंने शोषित समाज के लिए अपना जीवन समर्पित किया। बुद्ध, रैदास, फुले, शाहू, आंबेडकर, और मान्यवर साहेब जैसे महान व्यक्तित्वों की विरासत हमारे पास है। बहनजी ने अपने शासनकाल में इन नायकों के सम्मान में योजनाएँ शुरू कीं, भवनों और जिलों का नामकरण किया, उनकी प्रतिमाएँ स्थापित कीं, और अपनी पुस्तकों में उन्हें स्थान दिया। ये वे असली नायक हैं, जिन्होंने समतामूलक समाज के लिए संघर्ष किया। फिर उधारी के नायकों की क्या आवश्यकता? मनुवादियों का उत्सव मनाना समतावाद से भटकाव का संकेत है। बहुजन समाज को चाहिए कि वह अपने नायकों के विचारों को पोस्टरों पर उकेरे, उनकी उपलब्धियों को साझा करे, और उनकी प्रेरणा से आगे बढ़े।
बसपा की उपलब्धियाँ और नेतृत्व का सम्मान
बहनजी का जीवन एक कठोर संघर्ष की गाथा है। उनका अदम्य साहस, दूरदर्शिता, और ऐतिहासिक योगदान बहुजन समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है। बसपा सरकार की कालजयी उपलब्धियाँ—शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में किए गए कार्य—हर कार्यकर्ता के लिए गर्व का विषय हैं। इन उपलब्धियों को सोशल मीडिया पर साझा करना, लोगों तक पहुँचाना, और बहनजी के संकल्प को मजबूत करना हर बहुजन समर्थक का कर्तव्य है। इसके बजाय, मनुवादी नेताओं को नमन करना अपनी ऊर्जा और संसाधनों को गलत दिशा में खर्च करना है। यह ऐसा है जैसे अपनी घर की ईंटें पड़ोसी को दे दी जाएँ, जिससे वह अपना घर मजबूत कर ले और हमारा घर अधूरा रह जाए।
निष्कर्ष: आत्मनिर्भर आंदोलन की ओर कदम
बहुजन आंदोलन की सफलता इसके आत्मनिर्भर चरित्र में निहित है—अपने नायक, अपनी वैचारिकी, अपना संगठन, और अपना नेतृत्व। इसमें उधारी के किरदारों की कोई जगह नहीं। यदि पोस्टर साझा करने हैं, तो हर तारीख में छिपे बहुजन समाज के योगदान को खोजें, उनके सकारात्मक संदेशों को फैलाएँ। बसपा के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को चाहिए कि वे अनुशासन और समर्पण के साथ अपने नेतृत्व के साथ खड़े हों। बाबासाहेब, मान्यवर साहेब, और बहनजी के विरोधियों को नमन करने के बजाय, उन नायकों को सम्मान दें जो ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ की नीति पर चलते हुए भारत राष्ट्र निर्माण के लिए संघर्षरत हैं। यह बहुजन समाज का स्वाभिमान और आंदोलन का भविष्य है—इसे संरक्षित करना हम सबकी जिम्मेदारी है।