भारत राष्ट्र निर्माण का संकल्प: बसपा के साथ समतामूलक समाज की ओर
साथियों,
भारत राष्ट्र निर्माण का स्वप्न कोई कोरी कल्पना नहीं, बल्कि एक ऐसा संकल्प है, जो समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की नींव पर खड़ा है। बाबासाहेब डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने इस महान लक्ष्य को साकार करने के लिए राजनीति को मास्टर चाबी बताया। यह चाबी हमारे हाथों में है—हमारी वोट की ताकत में, हमारे संकल्प में और हमारे आत्मसंयम, अनुशासन व सृजनात्मक मनोदशा में। किंतु यह दायित्व केवल राजनीति करने वालों का नहीं, बल्कि आप सबका—हर उस नागरिक का है, जो भारत को एक समतामूलक राष्ट्र के रूप में देखना चाहता है। आज हमें यह समझना होगा कि जातिगत नफरत और धार्मिक उन्माद की आग में भारत का निर्माण नहीं, बल्कि उसका विनाश छिपा है।
साथियों,
आज के राजनैतिक परिदृश्य पर दृष्टि डालें, तो एक सत्य उजागर होता है—बसपा के अतिरिक्त सभी दल भारत राष्ट्र के विसर्जन की राह पर हैं। समाजवादी पार्टी, भाजपा, कांग्रेस, टीएमसी, राजद, जदयू जैसे दल धार्मिक उन्माद, जातिगत वैमनस्य और साम्प्रदायिकता के जहरीले बीज बोकर लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर कर रहे हैं। वहीं, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अकेले दम पर समतावादी विचारधारा के प्रकाश में सृजन की सोच के साथ भारत राष्ट्र निर्माण की अलख जगा रही है। आइए, इसे कुछ बिंदुओं के साथ समझें।
पहला, बसपा भारत की एकमात्र ऐसी पार्टी है, जो सकारात्मक एजेंडे की राजनीति करती है। यह दल सत्ता और संसाधनों के हर क्षेत्र में देश के सभी वर्गों की समुचित भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए संघर्षरत है। हिंदू व्यवस्था और अमानवीय कुरीतियों से पीड़ित जातियों व समाजों को एकजुट कर, बसपा सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत कर रही है। जहाँ अन्य दल विसर्जनकारी संस्कृति में विश्वास करते हैं, वहीं बसपा हाशिए पर पड़े समाजों और उनके नायक-नायिकाओं के इतिहास को स्थापित कर रही है। समाजवादियों ने तो बसपा द्वारा बनाए गए जिलों, स्मारकों और बहुजन इतिहास के स्थानों को छीनकर इस गौरवशाली विरासत को दफन करने का कुत्सित प्रयास किया। किंतु बसपा ने इस विध्वंस के बीच भी सृजन का मार्ग चुना।
दूसरा, बसपा अपने आंदोलन के सिद्धांतों और सूत्रों के प्रति अटूट निष्ठा रखती है। यह दल मिथ्यारोपों और नकारात्मक प्रचार से नहीं, बल्कि सकारात्मक व सृजनात्मक एजेंडे के बल पर शोषित, वंचित और पीड़ित समाज को सत्ता तक पहुँचाने में विश्वास रखती है। इतिहास साक्षी है कि जहाँ समाजवादी, मनुवादी, गांधीवादी, मार्क्सवादी और हिंदूवादी दलों ने धार्मिक उन्माद, दंगों, जातिगत नफरत और विधायकों-सांसदों की खरीद-फरोख्त से सत्ता हथियाई, वहीं बसपा ने लोकतांत्रिक मूल्यों को सर्वोपरि रखा। यह बसपा की वैचारिक दृढ़ता ही है, जो इसे अन्य दलों से अलग करती है।
तीसरा, बसपा सिर्फ विरोध की राजनीति नहीं करती, बल्कि समाधान प्रस्तुत करती है। यह दल हाय-हाय की राह नहीं चुनता, बल्कि समस्याओं के हल में यकीन रखता है। बसपा ने कभी अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ नकारात्मक प्रचार नहीं किया। जनहित के मुद्दों को ध्यान में रखकर ही इसने समर्थन या विरोध का रास्ता चुना। सकारात्मक विपक्ष की भूमिका में रहते हुए, जब देशहित का सवाल आया, तो बसपा ने सत्ता पक्ष का भी साथ दिया। यह दृढ़ता, वैचारिकी के प्रति समर्पण और अनुशासन का परिचायक है। समाजवादियों और मनुवादियों ने बसपा की माननीया अध्यक्षा के खिलाफ अपशब्दों की बौछार की, पर बसपा के किसी नेता ने कभी किसी महिला नेता पर टिप्पणी नहीं की। यदि कोई भटका, तो उसे संगठन से बाहर का रास्ता दिखाया गया। यह अनुशासन ही बसपा की शक्ति है।
साथियों,
मान्यवर कांशीराम ने कहा था, “बसपा एक राजनैतिक दल बाद में, बहुजन आंदोलन पहले है।” यह आंदोलन लोकलुभावन वादों, साम्प्रदायिकता या जातिगत नफरत की राह पर नहीं चल सकता। आज सपा, भाजपा, कांग्रेस, टीएमसी, आप, राजद, जदयू जैसे दल जनता को धार्मिक और जातिगत नफरत का आहार परोसकर सत्ता और विपक्ष में काबिज हैं। किंतु बसपा तात्कालिक लाभ-हानि से ऊपर उठकर अपनी वैचारिकी पर अडिग है। यह आंदोलन नकारात्मकता और प्रतिक्रिया से नहीं, बल्कि सकारात्मकता, सृजन और अनुशासन से चलता है।
अब आपके सामने दो रास्ते हैं। एक रास्ता विसर्जन का—जो सपा, भाजपा, कांग्रेस जैसे दलों की विध्वंसकारी सोच और नफरत की संस्कृति की ओर ले जाता है। दूसरा रास्ता सृजन का—जो बसपा के साथ बाबासाहेब के सपनों के समतामूलक समाज की ओर जाता है। यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप तय करें—क्या आप नफरत की आग में भारत को झोंकेंगे या समता की रोशनी में इसका नवनिर्माण करेंगे?
साथियों,
वक्त आ गया है कि हम जागें। बसपा के साथ खड़े हों। अपनी वोट की ताकत से समतावादी विचारधारा को मजबूत करें। यह केवल एक चुनाव नहीं, बल्कि भारत राष्ट्र निर्माण का संकल्प है। आइए, इस संकल्प को साकार करें—बसपा के साथ, बहुजन आंदोलन के साथ, और बाबासाहेब के सपनों के साथ!
जय भीम! जय भारत!
(वेबिनार, इलाहाबाद, 20.09.2022)