“संविधान की आत्मा से सर्वजन सुखाय: बहनजी और बसपा का संकल्प”
बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर द्वारा रचित भारतीय संविधान न केवल एक विधिक दस्तावेज है, अपितु यह एक सशक्त दर्शन का प्रतीक है, जो ‘सर्वजन’ के कल्याण और उत्थान की भावना से ओतप्रोत है। यह संविधान का वह आदर्श है, जो समाज के प्रत्येक वर्ग को समानता, न्याय और सम्मान का अधिकार प्रदान करने की प्रेरणा देता है। इसी पवित्र मंशा को मायावती जी, जिन्हें प्रेम और श्रद्धा से ‘बहनजी’ कहा जाता है, ने अपनी सरकार की नीति का आधार बनाया। उनके शासनकाल में यह नीति ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ के सुंदर सूत्र में मूर्त रूप लेती दिखाई दी। आज भी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) इसी मार्गदर्शक सिद्धांत के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रही है, जिसका लक्ष्य समाज के हर तबके की भलाई और सुख सुनिश्चित करना है।
संविधान की भावना और बसपा का संकल्प
संविधान का मूल फलसफा सभी नागरिकों को एक सूत्र में बाँधने और उनके जीवन को समृद्ध बनाने का है। बहनजी ने इस भावना को न केवल समझा, बल्कि इसे अपने शासन के प्रत्येक निर्णय में उतारा। ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ का यह मंत्र बसपा की नीतियों में एक स्वर्णिम धागे की भाँति गुंथा हुआ है, जो समाज के उपेक्षित और वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने का संकल्प लेता है। यह नीति न केवल संविधान के प्रति उनकी श्रद्धा को दर्शाती है, बल्कि बाबासाहेब के सपनों को साकार करने की दिशा में एक ठोस कदम भी है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड और बसपा का ‘सर्वधर्म हिताय’ का नारा
लोकसभा आम चुनाव-2024 के संदर्भ में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ (UCC) को एक प्रमुख मुद्दा बनाकर देश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का प्रयास किया, तब बहनजी ने राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए एक दूरदर्शी कदम उठाया। 02 जुलाई 2023 को उन्होंने ‘सर्वधर्म हिताय, सर्वधर्म सुखाय’ का नारा दिया, जो न केवल सामाजिक समरसता का संदेश देता है, बल्कि सभी धर्मों के प्रति सम्मान और सहिष्णुता का भाव भी प्रकट करता है। यह नारा ‘सर्वजन’ और ‘सर्वधर्म’ की नीति का परिष्कृत रूप है, जो ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ की मूल भावना पर आधारित होते हुए भी उससे एक कदम आगे बढ़कर समग्रता का परिचय देता है। यह एक ऐसा आदर्श है, जो संकीर्णता को त्यागकर व्यापक एकता की स्थापना करता है।
आलोचना का विरोध और बौद्ध दर्शन का आधार
यह कितना विडंबनापूर्ण है कि ‘भवतु सब्ब मंगलम्’ जैसे बौद्ध सूत्र के समर्थक भी बसपा की ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ नीति की आलोचना करते हैं। यहाँ यह स्मरणीय है कि ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ और ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ दोनों ही सिद्धांत बौद्ध दर्शन की गहन प्रेरणा से उद्भूत हैं। बौद्ध धर्म, जो समता और करुणा का संदेश देता है, इन नीतियों का आधार रहा है। अतः बहुजन, सर्वजन या सर्वधर्म जैसे व्यापक और समावेशी विचारों को आधार बनाकर बसपा और बहनजी का विरोध करना नादानी और अपरिपक्वता का परिचायक है। यह आलोचना न केवल तर्कसंगत आधार से रहित है, बल्कि उस महान दर्शन के प्रति भी अनादर प्रदर्शित करती है, जिसने इन नीतियों को जन्म दिया।
बहुजन आंदोलन: स्वाभिमान और समता की मशाल
बहुजन आंदोलन केवल एक राजनीतिक प्रयास नहीं, अपितु स्वाभिमान और आत्मसम्मान का एक शक्तिशाली संदेश है। यह एक ऐसा आंदोलन है, जो समतामूलक समाज की स्थापना के लिए समर्पित है और भारत के राष्ट्रनिर्माण में एक संघर्षरत कारवाँ के रूप में अपनी भूमिका निभा रहा है। बाबासाहेब आंबेडकर, मान्यवर कांशीराम, ज्योतिबा फुले और छत्रपति शाहूजी महाराज जैसे महानायकों द्वारा प्रज्ज्वलित इस मशाल को बहनजी ने न केवल थामा, बल्कि इसे और प्रखर बनाने का संकल्प लिया। उनकी यह प्रतिबद्धता उनके शब्दों में स्पष्ट झलकती है:
“मैं आखिरी साँस तक अपनी जिन्दगी का एक-एक पल इस सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट के लिए लगाती रहूँगी।”
— बहुजन संगठक, अंक-28, वर्ष-26, 11 से 17 सितम्बर 2006
निष्कर्ष: एक प्रेरक संदेश
संविधान की आत्मा को जीवंत रखते हुए बहनजी और बसपा ने ‘सर्वजन’ और ‘सर्वधर्म’ के कल्याण का जो मार्ग चुना, वह न केवल बाबासाहेब के सपनों का सम्मान करता है, बल्कि एक ऐसे समाज की नींव रखता है, जहाँ हर व्यक्ति को सम्मान और सुख प्राप्त हो। यह नीति और यह आंदोलन हमें यह संदेश देता है कि सच्चा राष्ट्रनिर्माण तभी संभव है, जब हम संकीर्णता को त्यागकर समग्रता को अपनाएँ। बहनजी का यह संकल्प और बसपा का यह दर्शन हमें एक प्रेरणा देता है कि हम सब मिलकर एक समृद्ध, समतामूलक और सुखी भारत का निर्माण करें।