“स्वतंत्र भारत में नेतृत्व : वैभव और वंचना”
प्रस्तावना: नेतृत्व की प्रभा
“नेतृत्व वह ज्योति है जो अंधकार में मार्ग प्रशस्त करती है।” — डॉ. भीमराव आंबेडकर
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर कुछ व्यक्तित्वों ने ऐसी प्रभा रची कि वे जनमानस के चिंतन और संवाद का केंद्रीय आधार बन गए। जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जैसे नेताओं ने शासन की बागडोर संभालते हुए एक ऐसा रुआब और प्रभाव स्थापित किया कि उनका नाम इतिहास के स्वर्णिम पन्नों से लेकर जनसामान्य की जुबान तक अमर हो गया। इनका वैभव केवल व्यक्तिगत न रहा, अपितु यह उनके समुदाय और अनुयायियों के लिए गर्व और प्रेरणा का प्रतीक बन गया। इनकी नीतियाँ, विचार और कर्म आज भी भारत की ऐतिहासिक पूंजी और विरासत के रूप में संरक्षित हैं। किंतु यह वैभव एक विशेष वर्ग तक सीमित रहा, जिसके परे एक विशाल समाज अपने नेतृत्व की प्रतीक्षा में संघर्षरत रहा।

बहुजन समाज का नेतृत्व संकट
जब हमारी दृष्टि देश की 85 प्रतिशत जनसंख्या—जो बहुजन समाज के रूप में विख्यात है—की ओर जाती है, तो एक करुण और विसंगतिपूर्ण चित्र उभरता है। यहाँ बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के अतिरिक्त कोई ऐसा नेतृत्व दीर्घकाल तक स्थापित न हो सका, जिसे यह समाज अपना प्रेरणास्रोत और गर्व का आधार मान सके। बाबासाहेब का व्यक्तित्व और कृतित्व निर्विवाद रूप से महान था, किंतु उनकी क्रांतिकारी विचारधारा और संघर्ष को जनसामान्य तक पहुँचने से जानबूझकर वंचित रखा गया। शिक्षा के मंदिरों—विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों—के पाठ्यक्रमों में उनके दर्शन, त्याग और योगदान को स्थान देने से परहेज किया गया। यह एक सुनियोजित कुचक्र था, जिसमें तत्कालीन जातिवादी सत्ता, मनुवादी लेखकों, वर्णवादी इतिहासकारों और गांधीवादी संगठनों ने संनाद होकर बाबासाहेब के मानवीय कार्यों को विस्मृति के गहन अंधेरे में दफन कर दिया।
बाबू जगजीवन राम: परतंत्रता की छाया में नेतृत्व
बाबासाहेब के पश्चात् बहुजन समाज के नेतृत्व की खोज में बाबू जगजीवन राम का नाम प्रकाश में आता है। उप-प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री जैसे गरिमामय पदों पर आसीन होने के कारण वे दलित समाज में लोकप्रिय रहे। किंतु उनकी शोहरत और सम्मान के बावजूद, वे बहुजन वैचारिकी से परे रहे। उनका जीवन गांधीवादी विचारधारा की परिधि में संनाद हुआ, जिसे वे जातिवाद का पर्याय मानते हुए भी उसकी सेवा में लीन रहे। यह विसंगति थी कि जिस व्यवस्था ने जातिवाद को पोषित किया, उसी के शिकार वे स्वयं बन गए। 1971 के भारत-पाक युद्ध में विजय का श्रेय उनके बजाय इंदिरा गांधी को प्रदान किया गया। जनता दल सरकार में प्रधानमंत्री पद की दौड़ में उन्हें पराजित किया गया। उनके पुत्र का राजनीतिक जीवन भी जातिवादी शक्तियों के हाथों समाप्त हो गया। फिर भी, उनका परिवार आज तक कांग्रेस की नींव को अपनी सामर्थ्य से संबल प्रदान कर रहा है। बाबू जगजीवन राम का जीवन इस सत्य का दर्पण है कि परतंत्र वैचारिकी पर आधारित नेतृत्व अंततः स्वतंत्रता और सम्मान से वंचित रह जाता है।

मान्यवर कांशीराम: बहुजन चेतना का प्रणेता
इस संकटमय परिदृश्य में मान्यवर कांशीराम का आगमन एक क्रांतिकारी परिवर्तन का संकेत बनकर उभरा। उन्होंने बाबासाहेब की वैचारिकी को केंद्र में रखकर बहुजन आंदोलन की नींव रखी। उनके हृदय में यह संकल्प दृढ़ था कि बाबासाहेब जैसे महामानव का सम्मान जन-जन तक पहुँचाया जाए और उनके स्वप्नों का भारत साकार हो। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु, मान्यवर ने बाबासाहेब के राष्ट्र निर्माण, संविधान रचना, शोध कार्य और साहित्य जैसे अमर योगदानों को जनमानस के समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने अम्बेडकरवाद को विश्वविद्यालयों में एक विधा के रूप में स्थापित करवाया और उनके कृतित्व को वैश्विक मंच पर विमर्श का विषय बनाया। उनकी दूरदर्शिता और संगठन कौशल ने बाबासाहेब को एक राजनीतिक शक्ति में परिवर्तित कर दिया, जिसके समक्ष उनके विरोधी भी आज नतमस्तक हैं।
नेतृत्व का नया स्वरूप: बहुजन समाज की आकांक्षा
मान्यवर का दृढ़ विश्वास था कि जिस प्रकार मनुवादी व्यवस्था ने नेहरू, इंदिरा और राजीव जैसे नेताओं को प्रतिष्ठित किया, उसी प्रकार बहुजन समाज को भी एक ऐसा नेतृत्व चाहिए जो उनसे भी विशाल कद का हो। यह नेतृत्व न केवल बहुजन समाज, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत बने। इस सकारात्मक चिंतन के अंतर्गत, उन्होंने पाँच सिद्धांतों और दस सूत्रों का प्रतिपादन किया। इनके आधार पर बामसेफ, डीएस-4, बीआरसी, बीवीएफ और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जैसे संगठनों का गठन हुआ। उन्होंने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया और बहुजन समाज के सीमित संसाधनों का उपयोग देशव्यापी आंदोलन के लिए कुशलतापूर्वक किया।

मान्यवर साहेब : कार्यकर्ता से मसीहा तक का सफर
मान्यवर स्वयं को सदा एक कार्यकर्ता मानते थे। वे कहा करते थे, “मैं बाबासाहेब के मिशन का एक साधारण कार्यकर्ता हूँ। मैं केवल थोड़ा अधिक परिश्रम करता हूँ, इसलिए थोड़ा बड़ा कार्यकर्ता कहलाता हूँ।” जनसभाओं और संगोष्ठियों में जब उन्हें नेता संबोधित किया जाता, तो वे विनम्रता से कहते, “मैं तो कार्यकर्ता हूँ। हमारी नेता मायावती हैं। मैं उन्हें अभी तैयार कर रहा हूँ। तुम मुझसे सहजता से मिल लेते हो, किंतु मायावती को मैं इतना महान नेता बनाऊँगा कि उनसे मिलने के लिए किलोमीटरों लंबी कतार में घंटों प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।” यह कथन उनकी दूरदर्शिता और संकल्प का परिचायक था।
मायावती : बहुजन समाज की शिरोमणि
मान्यवर का यह स्वप्न आज बहनजी मायावती के रूप में साकार हुआ है। उनका कद और प्रभाव इतना प्रबल है कि उनका नाम बाबासाहेब और मान्यवर के पश्चात् सम्मानपूर्वक लिया जाता है। उनकी जनसभाओं में लाखों की भीड़ उमड़ती है, लोग उनके दर्शन को आतुर रहते हैं और उनके एक संकेत पर बहुजन समाज गतिमान हो उठता है। उनकी सभाओं में किलोमीटरों लंबी कतारें और घंटों की प्रतीक्षा इस बात का साक्ष्य है कि मान्यवर ने अपने वचन को पूर्ण किया। बहनजी की योग्यता, नेतृत्व कौशल, प्रखर वक्तृत्व, संगठन क्षमता और बहुजन आंदोलन के प्रति समर्पण को देखते हुए मान्यवर ने उन्हें अपने आंदोलन और बसपा का उत्तराधिकारी घोषित किया।

बहनजी का दर्शन और योगदान
बहनजी ने सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की नीति पर संविधान सम्मत ऐसा शासन प्रदान किया, जो आज भारत की राजनीति में एक मापदंड बन चुका है। वे अपने इतिहास, संस्कृति और साहित्य के प्रति सजग हैं, जो उनकी सोच में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। वे कहती हैं, “जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह शासक नहीं बन सकता। इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति उत्पन्न होती है, जागृति से चेतना जन्म लेती है, चेतना से शक्ति का संचय होता है और शक्ति से शासक का उदय होता है।” इस कथन को वे अपने जीवन और कार्यों से चरितार्थ कर चुकी हैं। अम्बेडकरी वैचारिकी के प्रति उनका समर्पण, उनकी सूझबूझ और कुशलता उन्हें समतामूलक समाज की प्रेरणा, जागृति और शक्ति का प्रतीक बनाती है। वे आज बहुजन आंदोलन की वह दीपशिखा हैं, जिसके प्रकाश में समतावादी संघर्ष निरंतर प्रगति पर है।
निष्कर्ष : एक नए युग का सूत्रपात
स्वतंत्र भारत में जहाँ नेहरू-गांधी परिवार का नेतृत्व एक वर्ग विशेष का प्रतीक बना, वहीं बाबासाहेब, मान्यवर कांशीराम और मायावती ने बहुजन समाज को वह सम्मान और शक्ति प्रदान की, जो इतिहास ने उनसे छीन रखी थी। यह यात्रा केवल नेतृत्व की स्थापना तक सीमित नहीं, बल्कि एक ऐसी सामाजिक क्रांति का सूचक है, जो समता, न्याय और मानवता के मूल्यों पर आधारित भारत का निर्माण कर रही है। बहनजी का उदय इस सत्य का प्रमाण है कि जब चेतना और शक्ति का संगम होता है, तो वह समाज शासक बनने की राह पर अग्रसर होता है। इस नए युग में, भारतीय नेतृत्व का भविष्य समावेशी और न्यायपूर्ण समाज की दिशा में प्रगति कर रहा है, जहाँ हर वर्ग की आवाज़ को समान महत्त्व प्राप्त होगा।
स्रोत संदर्भ :
- आंबेडकर, भीमराव। वेटिंग फॉर ए वीजा (Waiting for a Visa)।
- कांशीराम, मान्यवर। चमचा युग (Chamcha Age)।
- मायावती। मेरे संघर्षमय जीवन और बहुजन मूवमेंट का सफरनामा (2006)।
- बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के आधिकारिक प्रकाशन और दस्तावेज।