आजादी के बाद भारत में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गाँधी जैसे उस समय के बड़े नेताओं ने भारत पर हकूमत किया। इनका औरा ऐसा बनाया गया था कि लोगों की चर्चा के केन्द्र में यही थे। आज भी बडे़-बुजुर्गों के जुबां से इनके कद, रूतबें और रूआब का जिक्र सुना जा सकता है। इनका दर्शन हिन्दुओं के लिए ईश्वर दर्शन से कम नहीं था। इनका यह कद सिर्फ इनके परिवार के लिए ही नहीं बल्कि इनके समाज के लिए गर्व का विषय है। इनके कार्य, इनकी सोच और इनका रूतबा आज इनके समाज की विरासत है। ऐतिहासिक पूंजी है। इससे इनके समाज को प्रेरणा मिलती है।
वही यदि देश की 85 फीसदी आबादी की तरफ रूख करें तो बाबासाहेब के अलावा कोई ऐसा नेतृत्व नहीं था जिस पर ये गर्व कर सकें। परन्तु बाबासाहेब की पहुंच आमजन तक नहीं होने दी गई क्योंकि स्कूलों, कालेजों एवं विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में बाबासाहेब के दर्शन और संघर्ष को जगह ही नहीं दी गई। इस प्रकार तात्कालिक जातिवादी सत्ता, मनुवादी कलम कसाइयों एवं वर्णवादी इतिहासकारों, सभी गांधीवादियों व संगठनों ने बाबासाहेब साहेब के महानतम् मानवीय कार्यों को दफन करने का पूरा प्रयास किया गया।
इस बीच यदि बाबासाहेब के बाद की राजनीति की तरफ़ गौर करें तो हम पाते हैं कि उप प्रधानमंत्री एवं रक्षामंत्री जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों के मुखिया रह चुके बाबू जगजीवन राम जी ही बहुजन समाज के एक आदम कद नेता थे परन्तु ये परतंत्र राजनीति एवं परतंत्र वैचारिकी की जमीन पर खड़े किए गए मोहरे से ज्यादा कुछ भी नहीं थे।
बाबू जगजीवन राम अपने दौर में दलितों के बीच चर्चित जरूर रहें परन्तु बहुजन वैचारिकी से उनका कोई सरोकार न होने की वजह से बहुजन समाज के आन्दोलन से दूर वह गांधीवादी (जातिवादी) खेंमे में ही रहें। ताउम्र गांधीवाद (जातिवाद) को अपनी सेवाएँ देते रहें। अब यदि जातिवादी बुराई के पोषण में सहयोगी हैं तो एक न एक दिन जातिवाद का शिकार होना ही पड़ेगा। ये भी जातिवाद के शिकार हुए। 1971 की विजय का ताज इनके बजाय सवर्ण हिन्दू नेता इंदिरा गाँधी के सिर पर पहनाया गया। जनता दल सरकार में प्रधानमंत्री बनने से वंचित कर दिया गया। इनके बेटे का राजनैतिक करियर जातिवादियों (मेनका गाँधी आदि) ने हमेशा के लिए खत्म कर दिया। इसके बावजूद ये ही नहीं बल्कि इनका परिवार आज भी जातिवादी कांग्रेस को क्षमतानुसार खाद-पानी दे रहा है।
फिलहाल, जब मंडल मसीहा मान्यवर साहेब ने बाबासाहेब की वैचारिकी को केन्द्र में रखकर बहुजन आन्दोलन की जरूरत महसूस की तो उनके जहन में ये सवाल हमेशा रहा है कि बाबासाहेब जैसे महामानव को जनता के बीच लाकर उनको उनका सम्मान दिलाना है। बाबासाहेब की वैचारिकी को जन-जन तक पहुँचाना है। उनके सपने के भारत का सृजन करना है।
इस कड़ी में, मान्यवर साहेब ने अपने मूवमेंट के जरिये भारत के जन-जन को बाबासाहेब के राष्ट्र निर्माण, संविधान निर्माण, महानतम शोध, साहित्य आदि कालजयी कार्यों से परिचित करा दिया। अम्बेडकरवाद को विश्वविद्यालय जगत में एक विधा के तौर पर स्थापित कर दिया। राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को वैश्विक फलक पर विमर्श के केन्द्र में ला दिया। राजनीति में उनको ऐसा ब्रांड बना दिया है कि आज उनके और उनकी वैचारिकी के धुर विरोधी भी उनके चरणों में नतमस्तक हैं।
दूसरा, बहुजन समाज में भी ऐसा नेतृत्व होना चाहिए जैसा कि मनुवादियों ने नेहरू, इंदिरा, राजीव गाँधी के रूप में खड़ा कर दिया है। या यूँ कहें कि इनसे भी बड़ा नेता खड़ा करना है जिससे बहुजन समाज ही नहीं, सकल मानव समाज प्रेरणा ले सकें।
इस सकारात्मक सोच के तहत मान्यवर साहेब ने भारत के सामाजिक व्यवस्था, अपने आन्दोलन, इसकी वैचारिकी, कार्यशैली आदि का गहन अध्ययन करके पांच सिद्धांत एवं दस सूत्र गढ़े। इनके आधार पर लोकतंत्र के महानायक मान्यवर साहेब ने बामसेफ, डीएस-4, बीआरसी, बीवीएफ, बसपा जैसे ऐतिहासिक संगठनों का गठन किया। कार्यकर्ताओं को तैयार किया।
बहुजन आन्दोलन को कामयाब बनाने के लिए मान्यवर साहेब ने, पूरे देश में, बहुजन समाज के सीमित संसाधनों का बहुत बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया। मान्यवर साहेब ने सम्पूर्ण जीवन एक कार्यकर्ता के तौर पर कार्य किया। मान्यवर साहेब खुद कहते थे कि – ‘मैं भी अन्य लोगों की तरह बाबासाहेब के मिशन-मूवमेंट का एक कार्यकर्ता हूँ। मैं थोड़ा ज्यादा कार्य करता हूँ। इसलिए मैं थोड़ा बड़ा कार्यकर्ता हूँ।’
जब जनसभाओं, कैडर कैंपों, संगोष्ठियों आदि में मान्यवर साहेब को कोई नेता कहता तो मान्यवर साहेब कहते थे कि – ‘मैं तो एक कार्यकर्ता हूँ। हमारी नेता तो ‘मायावती’ है। अभी मैं उसे तैयार कर रहा है। तुम लोग तो मुझसे बड़ी आसानी से मिल लेते हो परन्तु ‘मायावती’ को मैं इतना बड़ा नेता बनाऊंगा कि उससे मिलने के लिए लोगों को एक किलोमीटर तक की लंबी लाइन में घंटों इंतजार करना पड़ेगा।’
ऐसा कहने के पीछे मान्यवर साहेब की मंशा थी कि बहुजन समाज की आबादी बहुत बड़ी है। देश का कारोबार ये अपने वोट से तय करते हैं। इसके बावजूद इनके पास अपना कोई ऐसा नेतृत्व नहीं है जो नेहरू, इंदिरा, राजीव के कद के बराबर भी हो। इसलिए इतनी बड़ी आबादी के पास अपना नेतृत्व होना चाहिए जिसका कद नेहरू, इंदिरा, राजीव से भी बड़ा हो।
आज बहनजी के रूप में बहुजन समाज के साथ-साथ सकल भारत के पास ऐसा नेतृत्व है जिसका कद और रूतबा ऐसा है कि उनका नाम बाबासाहेब, मान्यवर साहेब के बाद लिखा जाता है। उनकी जनसभाओं में उसी तरह लाखों की भीड़ होती है जैसा कि मान्यवर साहेब ने सोचा था। आज लोग अपनी नेता बहनजी के दर्शन को उतावले रहते हैं जो कि उनकी जनसभाओं में स्पष्ट दिखाई देती है। उनके एक इशारे पर पूरा बहुजन समाज गतिमान हो जाता है। आज उनकी सभाओं में शामिल होने के लिए जाती हुई कई किलोमीटर की लम्बी भीड़ आम बात है। घंटों जनता उनके भाषण सुनने के लिए इंतजार करती है। ये नजारा साबित करता है कि मान्यवर साहेब ने भारत को इतने महान कद का नेता देने के अपने वायदे व सपने को पूरा किया है।
मान्यवर साहेब ने बहनजी की योग्यता, कुशल नेतृत्व, प्रखर वक्ता, दूरदर्शिता, संगठन क्षमता, बहुजन आन्दोलन के प्रति समर्पण के मद्देनजर बहनजी को बहुजन आन्दोलन, बसपा का उत्तराधिकारी घोषित किया। बहनजी समतामूलक समाज सृजन के प्रति अपने दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वाहन करते हुए आज भारत की ऐसी सख्शियत बन चुकी है जिस पर मानवतावादियों को फक्र है।
बहनजी कहतीं है कि – “जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता है क्योंकि इतिहास से ‘प्रेरणा’ मिलती है, प्रेरणा से ‘जागृति’ आती है, जागृति से ‘सोच’ बनती है, सोच से ‘ताकत’ बनती है, ताकत से ‘शक्ति’ बनती है, और शक्ति से ‘शासक’ बनता है।”
आज बहनजी अपने कहे को चरितार्थ कर चुकी हैं। अम्बेडकरी वैचारिकी के प्रति समर्पण, सूझबूझ के कारण बहनजी समतामूलक वैचारिकी की विश्वविद्यालय एवं भारत की प्रेरणा, जागृति, सोच, ताकत, शक्ति और संविधान सम्मत मानवीय शासन का पर्याय बन चुकी हैं। आज बहनजी बहुजन आन्दोलन की वो रौशन मीनार हैं जिसके रौशनी में समतावादी आन्दोलन सतत् संघर्षरत है।
— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)