8 March Women’s Day Special: तथागत बुद्ध पर विरोधियों ने कई तरह के झूठे आरोप लगाए. जिन इतिहासकारों को बुद्ध के जीवन व शिक्षाओं की पूरी जानकारी नहीं थी और वे भी जो संसार में बुद्ध की बढती लोकप्रियता से दुखी थे. एक आरोप यह भी कि बुद्ध ने अपने संघ में महिलाओं को प्रवेश नहीं दिया. आइए, जाने कि आखिर सच्चाई क्या है ?
दरअसल, तथागत बुद्ध को स्त्रियों को भिक्खुनी बनाने से हिचक थी, ‘इन्कार नहीं’ था. क्योंकि, उन्हें स्त्रियों की सुरक्षा की चिंता थी. भिक्खु संघ में हर भिक्खु की जीवन शैली, धम्म प्रचार, ध्यान-साधना, श्रम आदि के बहुत कठोर नियम थे. उसे गांव-शहर से बाहर विहार में ही रहना जरूरी था और घरों से भिक्खाटन से मिले भोजन से ही निर्वाह करना होता था.
भगवान बुद्ध बहुत दूरदर्शी थे. इसलिए, भिक्खुणी संघ में स्त्रियों की सुरक्षा के कारण उनकी हिचकिचाहट स्वाभाविक थी. लेकिन, जब माता गौतमी ही सात सौ स्त्रियों के साथ संघ में शामिल होने के लिए बुद्ध के पास आ गई तो काफी संवाद व नियमों में कुछ छूट देकर आखिर स्त्रियों को शामिल किया और इतिहास में पहली बार स्त्री को समान हक देकर भिक्खुणी संघ का गठन हुआ. बाद में आम्रपाली व सिद्धार्थ की पत्नी यशोधरा भी शामिल हुई थीं.
इस बात को प्रमाणित करती एक घटना है……
राजगृह में बुद्ध के परम अनुयायी वैद्य जीवक का बहुत सुंदर, शांत और विशाल आम्रवन था. जिसमें भिक्खुणियों के लिए छोटी-छोटी कुटियां बनी हुई थी. भगवान बुद्ध वहां देशना के लिए आए हुए थे.
एक दिन शुभा नाम की एक युवा भिक्खुणी भगवान से एक समस्या का समाधान कराने के लिए आई. भगवान से भेंट के बाद राजगीर में भिक्षाटन करके वह विहार में वापस आ रही थी तो सुनसान मार्ग पर उसे एक युवक दिखा. युवक मार्ग के एक ओर से अचानक सामने आ गया. भिक्खुनी ने उसके गलत इरादे भांप लिए और तुरंत आनापान ध्यान करके सजग,शांत और सुस्थिर चित्त में हो गई.
शुभा भिक्खुणी ने युवक की आंखों से आंखें मिलाकर कहा, श्रीमान, मैं बुद्ध के सदधम्म मार्ग की पथिक हूं, कृपया मेरे रास्ते से हट जाइए ताकि मैं अपने विहार वापस जा सकूं.’’
युवक ने कहा, तुम अभी जवान हो, सुंदर हो, भला सिर मुंडाकर, ये चीवर पहने क्यों अपना जीवन बर्बाद कर रही हो?
सुनो, कुमारी! तुम्हारी सुंदर काया काशी के रेशमी वस्त्र पहनने के लिए बनी है. मैंने अभी तक तुम जैसी सुंदर स्त्री नहीं देखी. आओ! तुम्हें शारीरिक सुखों की झलक दिखा दूं. इस चीवर व भिक्खाटन के दुखभरे जीवन को ठोकर मार कर मेंरे साथ चल पड़ो.
शुभा शान्त रहकर बोली, मूर्खता की बातें मत करो. मैं चित्त की शुद्धता, निर्मलता और जागरूकता के जीवन का ही आनंद लेना चाहती हूं, कामनाएं दुख का कारण बनती है. मुझे जाने दीजिए, इसके लिए मैं आपकी कृतज्ञ, आभारी रहूंगी.
व्यक्ति फिर बोला, सुंदरी, मृगनयनी! तुम्हारी आंखें बहुत ही आकर्षक हैं. मैंने इतनी सुंदर आंखें अब तक नहीं देखी और हां, मुझे इतना मूर्ख न समझो कि तुम्हें यूं ही चले जाने दूंगा, तुम्हें मेरे साथ चलना ही होगा.
युवक भिक्खुणी को पकड़ने झपटा लेकिन भिक्खुणी तेजी से हटकर उसकी पकड़ से बच गई और बोली, श्रीमान! मुझे छूना मत! मुझ भिक्खुनी के धम्म नियमों को मत तोड़ना. मैंने कामनाओं और घृणापूर्ण जीवन के भार को त्याग कर ही यह मार्ग अपनाया है. आप कहते हैं कि मेरी आंखें सुंदर हैं, तो मैं अपनी दोनों आंखें ही निकाल कर आपको दे देती हूं. मैं तुम्हारे द्वारा अपने धम्म पथ से विचलित किए जाने की अपेक्षा अंधी होना पसंद करूंगी. और बिना आंखों के भी शरीर, मन व वाणी से कुशल कर्म कर सभी के कल्याण के लिए धम्म का प्रचार करती रहूंगी. .
शुभा के स्वर में अपने लक्ष्य के प्रति साहस, दृढता व धम्म का ओजस्व था. भिक्खुणी के लक्ष्य की गंभीरता व चेहरे का तेज देखकर युवक डर गया. वह समझ गया कि यह भिक्खुनी जो कहती है, कर भी देगी. यह सोचकर वह अपने नापाक इरादों से पीछे हट गया.
शुभा ने कहा, ‘तुम अपनी क्षणिक, झूठे आनंद व काम इच्छा को अपराध का कारण मत बनने दो. तुम जानते नहीं कि यहां के राजा बिम्बिसार ने राज आज्ञा जारी कर रखी है कि जो भी बुद्ध के संघ के किसी सदस्य को परेशान करेगा, हानि पहुंचाएगा, उसे कड़ा दंड दिया जाएगा. यदि तुमने अभद्र व्यवहार किया, मेरे भिक्खुनी धम्म को भंग करने या मेरी हत्या करने की कोशिश की तो बंदी बना लिए जाओगे और तुम्हें कठोर दंड मिलेगा.’
इतना सुन युवक संभल गया, होश में आ गया. वह समझ गया कि उसकी अंधी काम वासना बड़े दुःख का कारण बन सकती है. वह रास्ते से हट गया और भिक्खुनी शुभा को गुजर जाने दिया. उसने पीछे से कहा, ‘‘बहन, मुझे क्षमा करना. मुझे आशा है कि आप मानव कल्याण के धम्म मार्ग पर अवश्य सफल होगी, मुझे भी आपने सन्मार्ग पर डाल दिया.
जीवक के आम्रवन में जाकर भिक्खुनी शुभा ने भगवान बुद्ध को इस घटना की पूरी जानकारी दी.
बुद्ध ने उस युवा भिक्खुनी के साहस, दृढ विचारों और धम्म के प्रति श्रद्धा की प्रशंसा की. भगवान ने कहा- ‘‘सुनसान मार्ग पर किसी भिक्खुनी का अकेला आना जाना खतरनाक है. इसी कारण से मैं महिलाओं को दीक्षा देकर संघ में शामिल करने से हिचक रहा था. अब से कोई भिक्खुनी अकेली आना-जाना नहीं करेगी. चाहे नदी पार करनी हो, चाहे भिक्षाटन करना हो या वन में या खेत में चलना हो, किसी भी भिक्खुनी को अकेले नहीं जाना है.
कोई भी भिक्खुनी अकेली सोएगी भी नही, फिर चाहे वह विहार में हो या किसी कुटिया में या वृक्ष के नीचे. हर भिक्खुनी चलते समय या सोते समय एक अन्य भिक्खुनी को साथ रखे जिससे वह एक-दूसरे का ध्यान रखें और एक-दूसरे की रक्षा कर सकें.’’
बुद्ध ने आनंद को निर्देश दिया कि ‘आनंद इस नियम को सावधानी से समझ लो और वरिष्ठ भिक्खुनियों से कहो कि वे इस नियम को अपने शीलों में सम्मिलित कर लें.’
भवतु सब्बं मंगलं…सबका कल्याण हो… सभी प्राणी सुखी हो
(लेखक: डॉ. एम एल परिहार; ये लेखक के अपने विचार हैं)
— Dainik Dastak —