35.6 C
New Delhi
Monday, June 9, 2025

संक्रमण काल में बहुजन समाज को सचेत रहना चाहिए

बहुजन आंदोलन का संक्रमण काल: एक नवीन भारत की ओर यात्रा

जीवन और आंदोलन का स्वाभाविक चक्र
जीवन का हर चरण एक निश्चित क्रम में संनादति है, ठीक वैसे ही जैसे सूर्योदय और सूर्यास्त प्रकृति के अनिवार्य नियम हैं। जिस प्रकार एक शिशु अपनी बाल्यावस्था से प्रौढ़ता की ओर अग्रसर होने के लिए तरुणावस्था के संक्रमण काल से गुजरता है, उसी प्रकार हर आंदोलन और समाज को भी अपने विकास के इस अनिवार्य पड़ाव से होकर निकलना पड़ता है। तरुणावस्था में जहाँ एक ओर शारीरिक और मानसिक द्वंद्व उभरते हैं, वहीं दूसरी ओर करियर, खेल-कूद और आत्म-चेतना के नए आयाम उद्घाटित होते हैं। ठीक इसी तरह, बहुजन आंदोलन और समाज आज अपने संक्रमण काल के उस दौर से गुजर रहा है, जहाँ चुनौतियाँ तो हैं, परंतु संभावनाओं का एक विशाल आकाश भी उसकी प्रतीक्षा में है।

संक्रमण काल: अनिवार्यता और चुनौतियाँ
कोई भी शिशु बाल्यावस्था की मासूमियत से सीधे प्रौढ़ता की परिपक्वता तक नहीं पहुँच सकता। उसे तरुणावस्था के उस उथल-पुथल भरे दौर से गुजरना ही पड़ता है, जहाँ हार्मोनल परिवर्तन, भावनात्मक उन्माद और जीवन के लक्ष्यों का द्वंद्व उसे आलोड़ित करते हैं। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। इसी प्रकार, कोई भी आंदोलन या समाज अपने उद्भव से सीधे परिपूर्णता तक नहीं पहुँच सकता। उसे भी अपने संक्रमण काल के उस कठिन मार्ग से होकर गुजरना पड़ता है, जहाँ पुरानी व्यवस्थाओं से टकराव, नई राहों की खोज और आत्म-संघर्ष उसे परिभाषित करते हैं। आज बहुजन आंदोलन और समाज इसी दौर में खड़ा है—एक ओर परंपरागत शोषण और अन्याय की जंजीरें उसे जकड़े हुए हैं, तो दूसरी ओर स्वतंत्रता और समानता का स्वप्न उसे प्रेरित कर रहा है।

दिशा-निर्देश: सफलता का आधार
जिस तरह एक तरुण अपने माता-पिता के अनुभव और मार्गदर्शन से इस द्वंद्वमय काल को पार कर जीवन में सफलता अर्जित करता है, उसी तरह बहुजन समाज के लिए भी इस संक्रमण काल से उबरने का मार्ग उसके नेतृत्व में निहित है। यदि एक बालक अपने माता-पिता की सीख को आत्मसात कर उनके दिशा-निर्देशों पर चलता है, तो वह न केवल चुनौतियों पर विजय पाता है, बल्कि अपने जीवन को एक सार्थक दिशा भी प्रदान करता है। ठीक इसी तरह, बहुजन समाज यदि अपनी माँ-पिता स्वरूपा नेता बहनजी के संदेश को हृदयंगम करता है, तो वह इस संक्रमण काल के भँवर से न केवल सुरक्षित बाहर निकलेगा, बल्कि एक नए युग का सूत्रपात भी करेगा। बहनजी का मार्गदर्शन वह प्रकाश है, जो बहुजन समाज को अंधेरे से उजाले की ओर ले जा सकता है।

बहुजन की शक्ति: एक समतामूलक समाज का स्वप्न
यह स्पष्ट है कि बहुजन आंदोलन का यह संक्रमण काल केवल एक संघर्ष का दौर नहीं, बल्कि एक स्वर्णिम भविष्य का प्रस्थान बिंदु है। यदि बहुजन समाज एकजुट होकर अपने नेतृत्व के आह्वान पर चलता है, तो वह देश के कारोबार की बागडोर अपने हाथों में ले सकता है। यह बागडोर केवल सत्ता की प्राप्ति तक सीमित नहीं होगी, बल्कि यह बहुजन के एजेंडे पर आधारित एक ऐसी शासन व्यवस्था होगी, जो समता, न्याय और सम्मान के सिद्धांतों पर टिकी होगी। ऐसा समाज, जहाँ शोषण की छाया न हो और हर व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुरूप अवसर प्राप्त हों, वही बहुजन आंदोलन का अंतिम लक्ष्य है। यह केवल एक आंदोलन की जीत नहीं, बल्कि एक सशक्त और समावेशी भारत राष्ट्र का निर्माण होगा।

निष्कर्ष: नवनिर्माण की ओर कदम
संक्रमण काल जीवन और आंदोलन का वह स्वर्णिम क्षण है, जहाँ पुरातन का अंत और नवीन का उदय होता है। बहुजन समाज आज इसी मोड़ पर खड़ा है। यह वह समय है जब उसे अपने अतीत के बंधनों को तोड़कर, अपने नेतृत्व के मार्गदर्शन में एक नई राह चुननी होगी। यह राह कठिन हो सकती है, परंतु असंभव नहीं। बहनजी के संकल्प और बहुजन की एकता के बल पर यह समाज न केवल अपने लिए, बल्कि संपूर्ण राष्ट्र के लिए एक उज्ज्वल भविष्य का सृजन कर सकता है। यह आंदोलन का संक्रमण काल नहीं, बल्कि एक नवीन भारत के उदय का प्रभात है।

(05.03.2024)


— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)


Buy Now LEF Book by Indra Saheb
Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

सामाजिक परिवर्तन दिवस: न्याय – समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का युगप्रवर्तक प्रभात

भारतीय समाज की विषमतावादी व्यवस्था, जो सदियों से अन्याय और उत्पीड़न की गहन अंधकारमयी खाइयों में जकड़ी रही, उसमें दलित समाज की करुण पुकार...

धर्मांतरण का संनाद: दलित समाज की सुरक्षा और शक्ति

भारतीय समाज की गहन खोज एक मार्मिक सत्य को उद्घाटित करती है, मानो समय की गहराइयों से एक करुण पुकार उभरती हो—दलित समुदाय, जो...

‘Pay Back to Society’ के नाम पर छले जाते लोग: सामाजिक सेवा या सुनियोजित छल?

“Pay Back to Society” — यह नारा सुनने में जितना प्रेरणादायक लगता है, व्यवहार में उतना ही विवादास्पद होता जा रहा है। मूलतः यह...

प्रतिभा और शून्यता: चालबाज़ी का अभाव

प्रतिभा का वास्तविक स्वरूप क्या है? क्या वह किसी आडंबर या छल-कपट में लिपटी होती है? क्या उसे अपने अस्तित्व को सिद्ध करने के...

सतीश चंद्र मिश्रा: बहुजन आंदोलन का एक निष्ठावान सिपाही

बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कानूनी सलाहकार सतीश चंद्र मिश्रा पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। कुछ लोग उनके बीएसपी के प्रति...

राजर्षि शाहूजी महाराज से मायावती तक: सामाजिक परिवर्तन की विरासत और बहुजन चेतना का संघर्ष

आज का दिन हम सबको उस महानायक की याद दिलाता है, जिन्होंने सामाजिक न्याय, समता और बहुजन उन्नति की नींव रखी — राजर्षि छत्रपति...

मान्यवर श्री कांशीराम इको गार्डन: बहनजी का पर्यावरण के लिए अतुलनीय कार्य

बहनजी ने पर्यावरण के लिये Start Today Save Tomorrow तर्ज पर अपनी भूमिका अदा की है, अपने 2007 की पूर्ण बहुमत की सरकार के...

जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी: जातिगत जनगणना पर बहुजन विचारधारा की विजयगाथा

भारत की राजनीति में एक ऐतिहासिक क्षण आया है-जिसे बहुजन आंदोलन की सबसे बड़ी वैचारिक जीत के रूप में देखा जा सकता है. कैबिनेट...

कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा

बहनजी के दूरदर्शी नेतृत्व, बौद्ध धम्म के प्रति अनुराग और सामाजिक समावेश की अमर गाथा कुशीनगर—शांति और करुणा का वैश्विक केंद्र कुशीनगर, वह पावन धरती जहाँ...

बहनजी की दूरदृष्टि: लखनऊ हाई कोर्ट परिसर का भव्य निर्माण

भारत के इतिहास में कुछ ही व्यक्तित्व ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपनी दूरदृष्टि, दृढ़ संकल्प और समाज के प्रति समर्पण से युगों को प्रेरित...

साम्प्रदायिकता का दुष्चक्र और भारतीय राजनीति की विडंबना

भारतीय राजनीति का वर्तमान परिदृश्य एक गहन और दुखद विडंबना को उजागर करता है, जहाँ साम्प्रदायिकता का जहर न केवल सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न...

सपा की नीति और दलित-बहुजन समाज के प्रति उसका रवैया: एक गंभीर विश्लेषण

भारतीय सामाजिक संरचना में जातिवाद और सामाजिक असमानता ऐसी जटिल चुनौतियाँ हैं, जिन्होंने सदियों से समाज के विभिन्न वर्गों, विशेषकर दलित-बहुजन समुदाय को हाशिए...