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Wednesday, April 16, 2025

सपा का षड्यंत्र और दलितों की एकता: एक चिंतन

समाजवादी पार्टी (सपा) के षड्यंत्रों की असफलता और उससे उत्पन्न खीझ उनके नेताओं तथा समर्थकों द्वारा बसपा और बहनजी पर की जा रही अभद्र टिप्पणियों से स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।

भारतीय राजनीति का परिदृश्य एक विशाल और जटिल कैनवास-सा है, जहाँ रंग-बिरंगे सामाजिक समीकरणों को अपने पक्ष में करने हेतु विभिन्न दल सूक्ष्म से सूक्ष्मतर रणनीतियों का सहारा लेते हैं। इस अनंत विस्तार में कुछ चालें ऐसी होती हैं, जिनका प्रभाव तत्काल न उभरकर समय के गर्भ में धीरे-धीरे प्रकट होता है। समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश सिंह यादव समय-समय पर बहुजन समाज की एकता को खंडित करने के लिए ऐसे निकृष्ट षड्यंत्र रचते रहते हैं। यही सपा का चल-चरित्र है। सर्वविदित है कि अपने निज स्वार्थ में मदमस्त अखिलेश सिंह यादव मुस्लिम मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए अक्सर हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की आग भड़काने वाली वाणी का प्रयोग करते हैं या फिर अपने पार्टी के लोगों से करवाते रहते हैं। यह षड्यंत्र न केवल समाज के उस सुंदर ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने का दुस्साहस करती है, जो बंधुत्व मान्यवर साहेब, बहनजी और बसपा ने तैयार कर रहे हैं। इस लेख में हम अखिलेश सिंह यादव की इन कुटिल रणनीतियों के उद्देश्यों और बहुजन समाज पर उनके प्रभावों का सूक्ष्म विश्लेषण करेंगे, साथ ही बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की उस अडिग वैचारिक नींव और संगठनात्मक शक्ति पर प्रकाश डालेंगे, जो इन षड्यंत्रों के सम्मुख एक प्रबल कवच बनकर उभरी है।

सपा (अखिलेश सिंह यादव) की राजनीति का एक प्रमुख रंग यह रहा है कि वे सामाजिक समूहों के बीच तनाव व नफ़रत के बीज बोकर अपने स्वार्थ की फसल काटने का प्रयास करते हैं। इस कला का एक जीवंत उदाहरण तब सामने आया, जब धोबी जाति के एक सांसद ने पदोन्नति में आरक्षण संबंधी विधेयक को फाड़कर दलित समुदाय के भीतर अशांति की चिंगारी सुलगाने का दुस्साहस किया। यह घटना कोई संयोग नहीं, बल्कि एक सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा थी, जिसका लक्ष्य था दलितों के बीच आपसी कलह को उत्पन्न करना और सवर्ण तुष्टिकरण हेतु अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण जैसे मूलभूत अधिकार को कमजोर करना।

इसी तरह, राणा सांगा प्रकरण में सपा (अखिलेश सिंह यादव) के संसद की बयानबाजी एक चतुर चाल थी, जिसके माध्यम से मुस्लिम समुदाय को रिझाने का प्रयास किया गया। इस कदम से उन्हें कई लाभ मिल सकते थे—मुस्लिम मतों का समर्थन पक्का करना, दलितों और क्षत्रियों के बीच वैमनस्य की खाई खोदकर बसपा की जड़ें कमजोर करना, दलितों को उनके उद्देश्यों एवं लक्ष्य से भटकाना, और दलित समुदाय को दो धड़ों में बाँटने की साजिश रचना। सपा के षड्यंत्र का यह भी चेहरा उजागर हुआ है कि वह दलितों को मोहरा बनाकर कभी मुस्लिमों के खिलाफ, तो कभी क्षत्रियों के खिलाफ बयानों की तलवार चलवाती है।

इस तरह, दलित और क्षत्रिय समुदायों के बीच नफरत की दीवार खड़ी करने का प्रयत्न किया जाता है, ताकि सपा अपने राजनीतिक हितों का मधुर संगीत बजा सके। यह रणनीति साफ तौर पर दलितों को बलि का बकरा बनाकर स्वार्थ सिद्ध करने की क्रूर नीति को उजागर करती है। ऐसे में यह प्रश्न मन को मथता है कि आखिर सपा के हृदय में दलितों के प्रति इतना विष क्यों भरा है? बार-बार उन्हें अपने लाभ के लिए बलिदान करने की यह नीति क्या दर्शाती है? यह स्थिति दलित समुदाय के लिए एक सशक्त चेतावनी है कि वे सपा जैसे दलों की चालबाजियों से सावधान रहें।

इन तमाम षड्यंत्रों के मध्य, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) एक अटल दीवार-सी खड़ी रही। उसकी मजबूत संगठनात्मक संरचना और अम्बेडकरवादी विचारधारा के प्रति अविचल निष्ठा ने सपा की हर चाल को निष्फल कर दिया। बहुजन समाज, विशेषकर जाटव समुदाय, ने अपनी वैचारिक परिपक्वता और दृढ़ता से यह सिद्ध कर दिखाया कि वे सस्ती राजनीतिक चालों के जाल में फंसने वाले कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। यह अडिगता उस महान दर्शन से उपजी है, जो बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के रूप में समाज को सौंपा। बसपा के सकारात्मक एजेंडे और सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति के प्रति उसकी गहरी प्रतिबद्धता ने दलित समुदाय को एक सूत्र में पिरोए रखा और सपा के मंसूबों पर पानी फेर दिया।

समाजवादी पार्टी (सपा) के षड्यंत्रों की असफलता और उससे उत्पन्न खीझ उनके नेताओं तथा समर्थकों द्वारा बसपा और बहनजी पर की जा रही अभद्र टिप्पणियों से स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। सपाइयों द्वारा आदरणीया बहनजी और बसपा पर की गई यह अशोभनीय टिप्पणी वास्तव में बहुजन समाज की अटूट एकता, वैचारिक दृढ़ता और आदरणीया बहनजी के प्रति उनके अखंड विश्वास का प्रबल प्रमाण है। यह घटनाक्रम बहुजन समाज की उस अपराजेय शक्ति का प्रमाण है, जो वैचारिक दृढ़ता और संगठनात्मक एकता के संगम से जन्म लेती है। सपा की विभाजनकारी नीतियाँ जहाँ समाज को तोड़ने का प्रयास करती रहीं, वहीं बसपा ने एकता का वह दीप प्रज्वलित किया, जो अंधेरे को चीरता हुआ आगे बढ़ा।

अतएव, यह परम आवश्यक हो जाता है कि दलित, पिछड़े, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय सपा जैसे दलों की विभाजनकारी नीतियों के प्रति सजग रहें। उन्हें बसपा के सकारात्मक एजेंडे के प्रति अपनी निष्ठा अटल रखनी होगी। आदरणीया बहनजी के नेतृत्व में पूर्ण विश्वास रखते हुए एकजुट होकर आगे बढ़ना ही वह पथ है, जो सामाजिक परिवर्तन और समानता के स्वप्न को साकार करेगा। यह एकता ही वह अटूट आधार है, जो भविष्य में भी बहुजन समाज को सशक्त बनाए रखेगी। बहुजन समाज को यह गहराई से आत्मसात करना होगा कि केवल वैचारिक दृढ़ता, सकारात्मक एजेंडा और संगठनात्मक शक्ति ही उन्हें राजनीतिक षड्यंत्रों के कुचक्र से बचा सकती है और उनके हितों का संरक्षण कर सकती है। जब तक यह एकता और जागरूकता जीवित रहेगी, तब तक कोई भी शक्ति बहुजन समाज के संकल्प को डिगा नहीं सकेगी। यह मार्ग कठिन हो सकता है, परंतु यही वह पथ है, जो उन्हें उनके गौरवशाली भविष्य की ओर ले जाएगा।


— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)


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