आज का दिन हम सबको उस महानायक की याद दिलाता है, जिन्होंने सामाजिक न्याय, समता और बहुजन उन्नति की नींव रखी — राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज। वे केवल एक प्रजावत्सल शासक ही नहीं थे, बल्कि भारत में आरक्षण की विचारधारा को व्यवहार में लाने वाले पहले युगद्रष्टा भी थे। उनका सम्पूर्ण जीवन सामाजिक क्रांति का एक जीवंत दस्तावेज रहा, जिसमें शिक्षा, आत्मसम्मान और अधिकारों के प्रति बहुजन समाज को जागरूक करने की दिशा में ऐतिहासिक कार्य हुए।
शाहूजी महाराज ने उस दौर में, जब जातिवादी मानसिकता समाज की रग-रग में व्याप्त थी, तब वंचित, शोषित और उपेक्षित वर्गों के लिए शिक्षा और नौकरी में आरक्षण लागू किया। यह केवल नीतिगत परिवर्तन नहीं था, बल्कि समता पर आधारित समाज की ओर एक क्रांतिकारी कदम था। वे भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों के पहले संरक्षक थे, जिन्होंने जाति आधारित भेदभाव के विरुद्ध खुलकर आवाज उठाई और व्यवस्था को चुनौती दी।
आज का सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य
यह विडंबना ही है कि आज जिन मंचों पर उनके चित्र और मूर्तियाँ सजे होते हैं, वहीं उनकी विचारधारा का कोई स्थान नहीं होता। राजनीतिक दल बहुजन महापुरुषों की छवियों का केवल प्रतीकात्मक उपयोग करते हैं, जबकि उनके संघर्ष, दर्शन और उद्देश्यों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। वे महापुरुष जिनकी विचारधारा को कभी नकारा गया, आज उन्हीं की प्रतिमाओं के आगे नतमस्तक होने की राजनीति हो रही है। यह बदलाव स्वतः नहीं आया है, बल्कि यह उस दृढ़ और वैचारिक आंदोलन का परिणाम है, जिसकी नींव मान्यवर कांशीराम साहेब और सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहन कुमारी मायावती जी ने अपने संघर्ष से रखी।
बहुजन आंदोलन का सशक्त विस्तार
मान्यवर साहेब ने ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ के मंत्र के साथ एक वैचारिक क्रांति शुरू की, जिसे बहन मायावती जी ने नेतृत्व, साहस और अदम्य संघर्ष से सत्ता तक पहुँचाया। बहनजी का नेतृत्व केवल सत्ता प्राप्ति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने उसे सामाजिक न्याय और समता के माध्यम के रूप में देखा। वे सत्ता को साध्य नहीं, बल्कि साधन मानती हैं — एक ऐसा माध्यम जिससे संविधान की आत्मा को साकार किया जा सके।
बहन मायावती जी द्वारा स्थापित संस्थानों के माध्यम से जीवित होती विरासत
राजर्षि शाहूजी महाराज जैसे महान समतावादी नायकों की स्मृति को बहन मायावती जी ने केवल श्रद्धांजलियों तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने उनके विचारों को मूर्त रूप देने हेतु कई ऐतिहासिक कदम उठाए:
- छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर – उच्च शिक्षा में वंचित वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करने का उदाहरण।
- छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ – स्वास्थ्य सुविधाओं को समाज के सबसे पिछड़े तबके तक पहुँचाने का सफल प्रयास।
- भागीदारी भवन, लखनऊ – सामाजिक समरसता और संवाद का प्रतीक स्थल।
- शिक्षण व प्रशिक्षण केंद्र – UPSC, PCS, मेडिकल, इंजीनियरिंग जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु बहुजन युवाओं को मुख्यधारा में लाने का उपक्रम।
- जनपद नामकरण, स्मारक और प्रतिमाएँ – इतिहास को जनचेतना से जोड़ने की सार्थक पहल।
इन संस्थानों के माध्यम से बहनजी ने यह सिद्ध किया कि महापुरुषों की स्मृति केवल दीवारों पर टंगी तस्वीरों से नहीं, बल्कि उनके विचारों को समाज के हर वर्ग तक पहुँचाने से जीवित रहती है।
जातिवादी राजनीति की दुर्भावनाएँ और बहुजन प्रतीकों पर हमले
जब बहुजन समाज पार्टी की सरकार समाप्त हुई और जातिवादी मानसिकता वाले दल सत्ता में आए, तब उन्होंने बहनजी द्वारा स्थापित बहुजन प्रतीकों को मिटाने की साज़िश रची। “मान्यवर कांशीराम साहब विश्वविद्यालय” का नाम बदलकर “बांदा यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी” करना और लखनऊ मेडिकल कॉलेज का नाम फिर से “किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज” कर देना केवल नाम परिवर्तन नहीं था — यह बहुजन चेतना पर एक सुनियोजित हमला था।
6 मई 1997 को बसपा सरकार के दौरान बहनजी ने बाँदा जिले से कर्वी और मऊ को अलग करके ‘छत्रपति शाहूजी महाराज नगर’ नाम से नया जिला बनाया। लेकिन 1998 में समाजवादी पार्टी की जातिवादी सरकार ने उसका नाम पुनः ‘चित्रकूट’ कर दिया। यह सभी कार्रवाइयाँ बहुजन समाज के आत्मसम्मान पर चोट थीं।
परिवर्तन की प्रेरणा – बहन मायावती जी
इन हमलों के बावजूद, बहनजी का संघर्ष कभी नहीं रुका। उन्होंने हर परिस्थिति में संविधान को मार्गदर्शक बनाकर निर्णय लिए। उनकी दूरदृष्टि और नीतियों ने समाज के वंचित तबके को राजनीतिक, शैक्षणिक और आर्थिक क्षेत्रों में भागीदारी दिलाने का ऐतिहासिक कार्य किया।
उन्होंने यह दृढ़तापूर्वक सिद्ध किया कि विचारधारा से कभी समझौता नहीं किया जा सकता। उन्होंने “अम्बेडकर प्रेरणा स्थल”, “बहुजन स्मारक”, भव्य प्रतिमाओं और योजनाओं के माध्यम से सामाजिक चेतना को न केवल जगाया बल्कि उसे संगठित और सशक्त भी किया।
हमारा संकल्प
आज, राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज के महापरिनिर्वाण दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम केवल मंचीय सम्मान और भाषणों तक सीमित न रहें, बल्कि उनके विचारों को अपने जीवन में आत्मसात करें। हम बहन मायावती जी के नेतृत्व में, बहुजन समाज पार्टी के माध्यम से उस समता मूलक समाज की स्थापना में अपना सक्रिय योगदान दें, जिसकी कल्पना शाहूजी महाराज, बाबासाहेब अंबेडकर और मान्यवर साहेब ने की थी।
आइए हम मिलकर यह सुनिश्चित करें कि बहुजन महापुरुषों की स्मृति और विचारधारा न तो भुलायी जाए और न ही मिटाई जा सके। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
(दीपशिखा इन्द्रा – सोशल एक्टिविस्ट, ये लेखक के अपने विचार हैं)