20.1 C
New Delhi
Thursday, October 23, 2025

ओपिनियन: सफ़ाई कार्यों से जुड़ी जातियों के बीच छुआछूत और जातिभेद

जातिव्यवस्था एक को छोड़कर सबको "अछूत" घोषित करती है. इनमें से सब अपने "अछूतपन" से मुक्त होने के लिए लड़ रहे हैं.

धानुक, हेला, लालबेगी, डोम, डुमार, बसोर, भंगी, चूड़ा, चमार, पासी, धोबी, नाई, बारी (बाथम) सफ़ाई कार्यों से जुड़ी हुई जातियाँ हैं.

धानुक, हेला, लालबेगी, डोम, डुमार, बसोर, भंगी, चूड़ा जातियाँ गलियों की साफ़ सफाई और मैला ढोने के काम में और सुअर पालन में लगी रही हैं, वहीं चमार जाति मरे जानवरों का चमड़ा उतारने, मरे जानवरों की हड्डियों को बीनकर बेचने, जूतों को बनाने, उनकी मरम्मत करने और उनकी साफ सफाई के काम में लगी रही.

पासी जाति सुअर पालन में और सड़कों की सफ़ाई में आज भी लगी हुई है. धोबी जाति कपड़ों की सफाई के काम में, नाई जाति बाल काटने और लोगों के चेहरे की सफ़ाई के काम में आज भी लगी हुई है.

बारी जाति जूठी पत्तलों को उठाने का काम करने वाली रही है.

भगवान दास जी अपनी पुस्तक “मैं भंगी हूँ” में लिखते हैं;

“इन जातियों में घेरे गए लोग एक ही समूह के सदस्य रहे हैं.  इस वर्ग से जो लोग चमड़े के व्यवसाय में लगे हुए थे, उन्हें ‘चमार’ नाम से अलग पहचान दी गई.  इस तरह यह एक नया समूह नई जाति बन गया. जो लोग कपड़े धोने के काम में लगे हुए थे, उन्हें नया नाम ‘धोबी’ दिया गया. इस तरह यह भी एक जाति बन गई. जूठी पत्तलों को उठाने में जो लोग लगे हुए थे उन्हें ‘बारी’ नाम दिया गया. इस तरह अलग-अलग सफ़ाई के कामों में लगे लोगों को कामों के आधार पर अलग नाम देकर टुकड़ों में बाँट दिया गया.”

मैं भगी हूँ; पुस्तक का एक अंश

टुकड़ों में बंट जाने से वे ख़ुद दूसरे से ऊँचा साबित करने में दूसरे से नफ़रत करने लगे. नई बनीं ये जातियाँ एक-दूसरे से छुआछूत करने लगीं. एक-दूसरे में शादियाँ प्रतिबंधित हो गईं. धानुक, हेला, लालबेगी, डोम, डुमार, बसोर, भंगी, चूड़ा जातियाँ एक जैसे कार्यों में लगी रहीं हैं. ये अलग-अलग क्षेत्रों में मैला ढोने के काम में भी लगी रही हैं. इसके बावजूद इनके बीच शादियाँ आज भी बहुत रेयर हैं. धानुक जाति को छोड़कर इस वर्ग की सभी जातियों में भोजन शुरू हो गया है. लेकिन इनके बीच शादियाँ अभी भी सामान्य नहीं हुई हैं. एक पेशा होने के बावजूद ‘धानुक’ जाति सामान्य तौर पर अपने ही वर्ग की इन जातियों के घर आज भी पानी नहीं पीती. सफ़ाई कार्यों से जुड़ी रहीं इन जातियों में कितनी छुआछूत है उसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है.

मैं अपने स्कूल से लौट रहा था. गर्मी के दिन थे, दोपहर का समय था. रास्ते में एक अधेड़ उम्र की महिला ने मुझसे लिफ़्ट माँगी. तेज़ धूप होने की वजह से मैंने अपनी बाइक पर उन्हें बैठा लिया. कुछ दूर चलने के बाद मैंने उनसे पूछा, कहाँ उतार दें..? उस महिला ने कहा, हाइवे के किनारे गाँव में ठाकुरों की दुकानें हैं, वहीं उतार देना. उस महिला के पहनावा और रंग से मैं जान रहा था कि वह महिला झूठ बोल रही है. थोड़ी देर बाद महिला बोली आप कौन बिरादरी के हो…?

मैंने जवाब दिया, “ब्राह्मण.”

वह अब ख़ामोश हो गई. थोड़ी देर बाद बोली हम ठाकुर हैं. मैंने कहा, मैं समझा नहीं. साफ-साफ बताइए…

कुरेदने पर वह बोल पड़ी, “कठेरिया.” मैंने फ़िर से पूछा, कठेरिया कौन होते हैं…?

उसने कोई जवाब नहीं दिया. थोड़ी देर बाद वह बोली, शादी लायक मेरी बेटी है. कोई लड़का हो तो बताना. मैंने पूछा किसी दूसरी अनुसूचित जाति में करोगी…?

वह बोली किसमें…?

मैंने कहा, चमार जाति में. वह बोली नहीं…

मैंने पूछा, क्यों नहीं कर सकती…?

 वह बोली हम चमारों में अपनी लड़की की शादी नहीं करेंगे. वे मरे जानवर उठाते हैं. मैंने उन्हें ऐसा जवाब दिया कि दुरुस्त हो गईं.

मैंने कहा, चमार 70 साल पहले मरे जानवर उठाते थे. यह आपको आज भी याद हैं और तुम 30 साल पहले तक सुअर चराती रही हो वह भूल गई हो. उन्होंने हड्डी बीनना 70 साल पहले छोड़ दिया है वह तुम्हें आज भी याद है और तुम “नौ महीनों” की गन्दगी आज भी ढो रही हो वह तुम्हें याद नहीं है. वे तुमसे शिक्षा में बहुत आगे साफ सफाई में तुमसे बहुत बेहतर फिर तुम उनसे ऊँची कैसे हो सकती हो…?

वह बोली, तुम ब्राह्मण नहीं हो…

मैंने कहा, हाँ मैं ब्राह्मण नहीं हूँ…

…मैं भंगी हूँ.

जातिव्यवस्था एक को छोड़कर सबको “अछूत” घोषित करती है. इनमें से सब अपने “अछूतपन” से मुक्त होने के लिए लड़ रहे हैं. इनमें से वे सब जो दूसरे को “नीच” मानते हैं और उनसे “छुआछूत” करते हैं, इस दुनिया के सबसे बड़े बेईमान, मक्कार और धूर्त हैं. इस देश से जातिव्यवस्था और छुआछूत ऐसे ही मक्कारों की वजह से ख़त्म नहीं हो पा रही है.

(लेखक: शैलेंड्र फ्लैमिंग; ये लेखक के अपने विचार हैं)

Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

Opinion: समाजिक परिवर्तन के साहेब – मान्यवर कांशीराम

भारतीय समाज सहस्राब्दी से वर्ण व्यवस्था में बंटा है. लिखित इतिहास का कोई पन्ना उठा लें, आपको वर्ण मिल जायेगा. ‌चाहे वह वेद-पुराण हो...

एससी, एसटी और ओबीसी का उपवर्गीकरण- दस मिथकों का खुलासा

मिथक 1: उपवर्गीकरण केवल तभी लागू हो सकता है जब क्रीमी लेयर लागू हो उपवर्गीकरण और क्रीमी लेयर दो अलग अवधारणाएँ हैं. एक समूह स्तर...

कर्नाटक में दलित आरक्षण का 6:6:5 फॉर्मूला तय; जानिए किसे कितना मिला आरक्षण?

बेंगलुरु: कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने मंगलवार रात लंबी कैबिनेट बैठक में अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 17% आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटने...

स्वतंत्र बहुजन राजनीति बनाम परतंत्र बहुजन राजनीति: प्रो विवेक कुमार

"स्वतंत्र बहुजन राजनीति" और "परतंत्र बहुजन राजनीति" पर प्रो विवेक कुमार का यह लेख भारत में दलित नेतृत्व की अनकही कहानी को उजागर करता...

गौतम बुद्ध, आत्मा और AI: चेतना की नयी बहस में भारत की पुरानी भूल

भारत की सबसे बड़ी और पुरानी समस्या पर एक नयी रोशनी पड़ने लगी है। तकनीकी विकास की मदद से अब एक नयी मशाल जल...

आषाढ़ी पूर्णिमा: गौतम बुद्ध का पहला धम्म उपदेश

आषाढ़ी पूर्णिमा का मानव जगत के लिए ऐतिहासिक महत्व है. लगभग छब्बीस सौ साल पहले और 528 ईसा पूर्व 35 साल की उम्र में...

बाबू जगजीवन और बाबासाहेब डॉ अम्बेड़कर: भारतीय दलित राजनीति के दो बड़े चेहरे

बाबू जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल, 1908 में हुआ था और बाबासाहब डॉ. अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 में. दोनों में 17...

सामाजिक परिवर्तन दिवस: न्याय – समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का युगप्रवर्तक प्रभात

भारतीय समाज की विषमतावादी व्यवस्था, जो सदियों से अन्याय और उत्पीड़न की गहन अंधकारमयी खाइयों में जकड़ी रही, उसमें दलित समाज की करुण पुकार...

धर्मांतरण का संनाद: दलित समाज की सुरक्षा और शक्ति

भारतीय समाज की गहन खोज एक मार्मिक सत्य को उद्घाटित करती है, मानो समय की गहराइयों से एक करुण पुकार उभरती हो—दलित समुदाय, जो...

‘Pay Back to Society’ के नाम पर छले जाते लोग: सामाजिक सेवा या सुनियोजित छल?

“Pay Back to Society” — यह नारा सुनने में जितना प्रेरणादायक लगता है, व्यवहार में उतना ही विवादास्पद होता जा रहा है। मूलतः यह...

प्रतिभा और शून्यता: चालबाज़ी का अभाव

प्रतिभा का वास्तविक स्वरूप क्या है? क्या वह किसी आडंबर या छल-कपट में लिपटी होती है? क्या उसे अपने अस्तित्व को सिद्ध करने के...

सतीश चंद्र मिश्रा: बहुजन आंदोलन का एक निष्ठावान सिपाही

बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कानूनी सलाहकार सतीश चंद्र मिश्रा पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। कुछ लोग उनके बीएसपी के प्रति...