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Wednesday, October 22, 2025

कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा

बहनजी के दूरदर्शी नेतृत्व, बौद्ध धम्म के प्रति अनुराग और सामाजिक समावेश की अमर गाथा

कुशीनगर—शांति और करुणा का वैश्विक केंद्र

कुशीनगर, वह पावन धरती जहाँ भगवान बुद्ध ने अपनी अंतिम साँस ली और महापरिनिर्वाण प्राप्त किया, बौद्ध धम्म के अनुयायियों के लिए एक अनन्य तीर्थ स्थल है। यहाँ की विश्राम करती बुद्ध प्रतिमा, प्राचीन महापरिनिर्वाण स्तूप, और चारों ओर बिखरी शांति की अनुभूति इसे विश्व के सबसे पवित्र स्थानों में से एक बनाती है। कुशीनगर की हवाओं में बुद्ध की करुणा और मैत्री की शिक्षाएँ बसी हैं, जो श्रीलंका, जापान, थाईलैंड, म्यांमार, नेपाल, चीन, वियतनाम, और भारत सहित संसार के के करोड़ो श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह स्थल न केवल ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व का है, बल्कि मानवता के लिए करुणा, मैत्री, शांति और समता का प्रतीक भी है।

किंतु, लंबे समय तक यह पवित्र स्थल अपर्याप्त कनेक्टिविटी, बुनियादी ढांचे की कमी और वैश्विक पहचान से वंचित रहा। इस कमी को दूर करने और कुशीनगर को विश्व पटल पर एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित करने का स्वप्न देखा उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की नेता आदरणीया बहन सुश्री मायावती जी ने, जिन्हें सकल मानव समाज ‘बहनजी‘ कहकर सम्बोधित करता है। उनके दृढ़ संकल्प, दूरदर्शी नेतृत्व और बौद्ध धम्म के प्रति गहरे अनुराग ने कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के रूप में एक ऐसी विरासत रची, जो आज बौद्ध पर्यटन, सांस्कृतिक गौरव, स्थानीय समृद्धि और अर्थव्यवस्था का प्रतीक बन चुकी है। यह लेख बहनजी के कालजयी योगदान, उनके ‘सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति‘ के दर्शन, और कुशीनगर के विकास में उनकी ऐतिहासिक भूमिका को तथ्यात्मक और विस्तृत रूप में प्रस्तुत करता है।

कुशीनगर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व

कुशीनगर (को 22 मई 1997 को बहनजी ने जिला घोषित किया) का नाम सुनते ही मन में भगवान बुद्ध की वह अंतिम यात्रा जीवंत हो उठती है, जब उन्होंने अपने शिष्यों को करुणा, मैत्री और मध्यम मार्ग का संदेश देते हुए इस धरती पर देह त्यागी। बौद्ध साहित्य में कुशीनगर को सात प्रमुख तीर्थ स्थलों—लुम्बिनी (जन्म), बोधगया (ज्ञान), सारनाथ (प्रथम उपदेश), कुशीनगर (महापरिनिर्वाण), श्रावस्ती, कौशाम्बी, और संकिसा —में से एक के रूप में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यहाँ का महापरिनिर्वाण मंदिर, जिसमें 6वीं शताब्दी की लेटी हुई बुद्ध प्रतिमा स्थापित है, और प्राचीन स्तूप विश्व धरोहर की अनमोल निधि हैं। इसके अलावा, रामाभार स्तूप, जहाँ बुद्ध का अंतिम संस्कार हुआ, और विभिन्न बौद्ध मठ—जापानी, थाई, श्रीलंकाई—कुशीनगर को एक वैश्विक तीर्थ बनाते हैं।

फिर भी, 20वीं सदी तक कुशीनगर की स्थिति दयनीय थी। यह न तो रेल मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा था, न ही हवाई मार्ग से। विदेशी तीर्थयात्री वाराणसी, बोधगया, या गोरखपुर के लंबे और थकाऊ रास्तों से यहाँ पहुँचते थे, जिससे उनका समय, धन और ऊर्जा व्यय होती थी। सड़क मार्ग से आने वाले यात्री दर्शन कर जल्दी लौट जाते थे, क्योंकि यहाँ ठहरने और अन्य सुविधाओं का अभाव था। इस कारण स्थानीय अर्थव्यवस्था को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता था, और कुशीनगर वैश्विक बौद्ध सर्किट में अपनी सही जगह नहीं बना पाया था। बहनजी ने इस उपेक्षा को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और इसे अवसर में बदलने का संकल्प लिया। बहनजी के शब्द आज भी प्रासंगिक हैं: “कुशीनगर को विश्व से जोड़ना बौद्ध धम्म की विरासत को जीवित रखने और भारत की सांस्कृतिक शक्ति को उजागर करने का सबसे बड़ा उपहार होगा।” बौद्ध तीर्थ स्थलों को परस्पर रेल मार्ग से संनाद्ध करने के संदर्भ में यह विदित है कि दिनांक 27 अक्टूबर, 2006 को परम आदरणीया बहनजी ने तत्कालीन रेलमंत्री को एक पत्र प्रेषित किया था, जिसमें इस पवित्र उद्देश्य की पूर्ति हेतु आग्रह किया गया। इस पत्र के परिणामस्वरूप, तत्कालीन रेलमंत्री द्वारा इस महती परियोजना का शिलान्यास किया गया। किंतु, इस परियोजना को मूर्त रूप प्रदान करने में लगभग दो दशकों का दीर्घ समय व्यतीत हुआ, जो केंद्र में सत्तासीन रही कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की सरकारों की उदासीन मनोवृत्ति को स्पष्टतः उजागर करता है।

बहनजी की संकल्पना: एक स्वप्न का प्रारंभ

बहनजी का जीवन सामाजिक परिवर्तन, समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व एवं वंचित वर्गों के उत्थान की लड़ाई का पर्याय रहा है। बाबासाहेब डॉ अंबेडकर और मान्यवर श्री कांशीराम साहेब के आदर्शों से प्रेरित, उन्होंने न केवल सामाजिक सुधार को प्राथमिकता दी, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को संरक्षित करने और उसे विश्व मंच पर प्रस्तुत करने का भी बीड़ा उठाया। सितंबर 1995 में, उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल में, बहनजी ने कुशीनगर में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की परिकल्पना की। यह केवल एक बुनियादी ढांचा परियोजना नहीं थी, बल्कि कुशीनगर को बौद्ध सर्किट का केंद्रीय केंद्र बनाने और इसे वैश्विक तीर्थ यात्रियों के लिए सुगम बनाने का एक क्रांतिकारी विचार था।

10 अक्टूबर 1995 को टर्मिनल भवन का शिलान्यास हुआ, जिसमें केंद्रीय विमानन मंत्री गुलाम नबी आज़ाद और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल मोती लाल बोरा ने भाग लिया। यह क्षण बहनजी के दृढ़ संकल्प और उनकी प्रशासनिक कुशलता का प्रतीक था। उस समय कुशीनगर में हवाई अड्डे की कल्पना करना एक साहसिक कदम था, क्योंकि यह क्षेत्र न केवल अविकसित था, बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपेक्षित भी था। फिर भी, बहनजी ने इस स्वप्न को साकार करने के लिए हर संभव प्रयास किया।

उनके बाद के कार्यकाल में यह स्वप्न और सशक्त हुआ। 15 जनवरी 2010 को, अपने 54वें जन्मदिन के अवसर पर, बहनजी ने उत्तर प्रदेश कैबिनेट से इस परियोजना को औपचारिक मंजूरी दिलाई। 650 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया, और 180 करोड़ रुपये की प्रारंभिक लागत निर्धारित की गई। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) और बहनजी की स्वच्छ सरकार के सहयोग से प्रारंभिक कार्य तेजी से शुरू हुआ। बहनजी के सामने कई चुनौतियाँ थीं—भूमि अधिग्रहण की जटिल प्रक्रिया, स्थानीय समुदायों के साथ समन्वय, वित्तीय संसाधनों का प्रबंधन, और प्रशासनिक बाधाएँ। इसके बावजूद, उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति ने इन सभी बाधाओं को पार किया। यह हवाई अड्डा केवल एक संरचना नहीं था; यह बौद्ध पर्यटन को बढ़ावा देने, स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त करने, और कुशीनगर को वैश्विक नक्शे पर स्थापित करने की एक दूरदर्शी पहल थी।

बौद्ध सर्किट का पुनर्जनन: एक सांस्कृतिक और आर्थिक क्रांति

कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बौद्ध सर्किट का एक अभिन्न अंग है, जो कुशीनगर, लुम्बिनी, बोधगया, सारनाथ, श्रावस्ती, संकिसा और कपिलवस्तु जैसे पवित्र स्थलों को एक सूत्र में पिरोता है। बौद्ध सर्किट बौद्ध धम्म के मूलभूत स्थानों का एक ऐसा नेटवर्क है, जो बुद्ध के जीवन के प्रमुख पड़ावों को दर्शाता है। लुम्बिनी, जहाँ बुद्ध का जन्म हुआ; कपिलवस्तु, जहाँ उनका बचपन बीता; बोधगया, जहाँ उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई; सारनाथ, जहाँ उन्होंने पहला उपदेश दिया; श्रावस्ती, जहाँ उन्होंने चौबीस वर्षावास किया; कुशीनगर, जहाँ उन्होंने देह त्यागा; कौशाम्बी; और संकिसा—ये सभी स्थान बौद्ध धम्म के हृदय हैं। बहनजी की संकल्पना थी कि कुशीनगर इन सभी का केंद्रीय केंद्र बने, और यह हवाई अड्डा इन स्थलों को बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करे।

उनका विज़न था कि श्रीलंका, थाईलैंड, जापान, म्यांमार, वियतनाम, और अन्य देशों से तीर्थयात्री बिना किसी असुविधा के कुशीनगर पहुँच सकें। पहले, इन देशों से आने वाले यात्री दिल्ली, वाराणसी, या बोधगया के रास्ते लंबी यात्राएँ करते थे, जिससे उनकी यात्रा महँगी और थकाऊ हो जाती थी। बहनजी ने इस समस्या को हल करने के लिए हवाई अड्डे को एक सेतु के रूप में देखा, जो न केवल धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देगा, बल्कि स्थानीय स्तर पर आर्थिक समृद्धि और रोजगार सृजन को भी गति देगा।

हवाई अड्डे के निर्माण से कुशीनगर में पर्यटन से जुड़े व्यवसायों—जैसे होटल, रेस्तराँ, परिवहन, और हस्तशिल्प—को नया जीवन मिला। स्थानीय कारीगरों, दुकानदारों, टूर गाइडों, और परिवहन सेवाओं से जुड़े लोगों को रोजगार के नए अवसर प्राप्त हुए। आँकड़ों के अनुसार, हवाई अड्डे के निर्माण और संचालन से लगभग हजारों स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिला। इसके अलावा, पर्यटकों की बढ़ती संख्या ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त किया, जिससे कुशीनगर एक समृद्ध और जीवंत केंद्र के रूप में उभरा। बहनजी का यह दृष्टिकोण न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और आर्थिक क्रांति का प्रतीक बना।

बहनजी का बौद्ध धम्म के प्रति अनुराग: एक दार्शनिक और सांस्कृतिक प्रतिबद्धता

बहनजी का बौद्ध धम्म के प्रति गहरा लगाव उनके कार्यों, नीतियों, और दर्शन में स्पष्ट झलकता है। वह बौद्ध धम्म को केवल एक धार्मिक परंपरा के रूप में नहीं, बल्कि सामाजिक समानता, शांति, मैत्री और करुणा के दर्शन के रूप में देखती हैं। बाबासाहेब डॉ अंबेडकर, जिन्होंने बौद्ध धम्म को सामाजिक परिवर्तन और दलित उत्थान के लिए एक मार्ग के रूप में अपनाया, बहनजी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। बाबासाहेब डॉ अंबेडकर के आदर्शों से प्रेरित होकर, बहनजी ने बौद्ध धम्म की विरासत को संजोने और इसे विश्व मंच पर प्रस्तुत करने को अपना कर्तव्य माना।

उनके कार्यकाल में कुशीनगर में हवाई अड्डे की नींव रखने के अलावा, उत्तर प्रदेश के अन्य बौद्ध स्थलों—जैसे श्रावस्ती, सारनाथ, संकिसा, कपिलवस्तु, और कौशाम्बी—के जीर्णोद्धार और संरक्षण के लिए भी ठोस कदम उठाए गए। उनके प्रयासों से बौद्ध मंदिरों और स्तूपों का सौंदर्यीकरण किया गया, सड़क संपर्क में सुधार हुआ, और पर्यटक सुविधाएँ विकसित की गईं। उदाहरण के लिए, श्रावस्ती में जेतवन मठ और अनाथपिंडक स्तूप के संरक्षण के लिए विशेष योजनाएँ शुरू की गईं, और संकिसा में बौद्ध स्थलों को पर्यटकों के लिए अधिक सुलभ बनाया गया। बहनजी ने यह सुनिश्चित किया कि ये स्थान न केवल धार्मिक महत्व के हों, बल्कि सांस्कृतिक पर्यटन के केंद्र के रूप में भी विकसित हों।

बहनजी ने एक बार कहा था, “बौद्ध धम्म की शिक्षाएँ मेरे सामाजिक परिवर्तन के दर्शन से मेल खाती हैं। यह शांति और समानता का मार्ग दिखाता है, जिसके लिए मैंने जीवनभर संघर्ष किया।” उनके प्रयासों से बौद्ध अनुयायियों को अपने तीर्थ स्थलों तक पहुँचने में सुविधा हुई, और इन स्थलों की वैश्विक पहचान बढ़ी। कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा उनकी इस प्रतिबद्धता का सबसे बड़ा प्रतीक है, जो बौद्ध धम्म की शांति और समृद्धि को विश्व भर में फैलाने का माध्यम बना।

चुनौतियाँ और बहनजी का अडिग संकल्प

कुशीनगर में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण कोई आसान कार्य नहीं था। बहनजी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सबसे पहले, भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया जटिल थी। स्थानीय समुदायों के साथ समन्वय स्थापित करना और उनकी चिंताओं को दूर करना एक बड़ी चुनौती थी। इसके अलावा, परियोजना के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधनों का प्रबंधन और केंद्र सरकार के साथ समन्वय भी आसान नहीं था। प्रशासनिक बाधाएँ, राजनीतिक विरोध, और सीमित संसाधनों ने उनके रास्ते में रोड़े अटकाए। फिर भी, बहनजी का संकल्प अडिग रहा। उन्होंने न केवल इन बाधाओं को पार किया, बल्कि परियोजना को एक ऐसी गति दी कि बाद की फुले, शाहू, अम्बेडकर एवं दलित-बहुजन विरोधी सपा एवं भाजपा सरकारें इसे रोक न सकीं।

उनके नेतृत्व में शुरू हुए प्रारंभिक कार्य—जैसे भूमि अधिग्रहण, टर्मिनल भवन का शिलान्यास, और AAI के साथ सहयोग—ने परियोजना की नींव को इतना मजबूत किया कि यह समय की कसौटी पर खरी उतरी। बहनजी की यह उपलब्धि उनकी प्रशासनिक कुशलता, दृढ़ इच्छाशक्ति, और जनहित के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।

बाद का विकास: नींव से शिखर तक 

बहनजी के कार्यकाल के बाद फुले, शाहू, अम्बेडकर एवं दलित-बहुजन विरोधी समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकारों ने इस परियोजना को मजबूरन आगे बढ़ाया और 2020 में केंद्र सरकार ने इसे औपचारिक रूप से अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का दर्जा प्रदान किया। 20 अक्टूबर 2021 को प्रधानमंत्री ने इसका उद्घाटन किया। इस अवसर पर श्रीलंका से आए बौद्ध भिक्षुओं की पहली उड़ान ने कुशीनगर की धरती को नमन किया, जो बहनजी के स्वप्न की जीवंत तस्वीर थी।

इस उद्घाटन ने कुशीनगर को वैश्विक बौद्ध सर्किट में एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित किया। आज कुशीनगर हवाई अड्डा श्रीलंका, थाईलैंड, जापान, और अन्य देशों से सीधी उड़ानों का स्वागत करता है, जिससे तीर्थयात्रियों की यात्रा सुगम और सम्मानजनक हो गई है। साथ ही, एक कृतज्ञ समाज को यह स्वीकार करना चाहिए कि इस परियोजना की मूल संकल्पना और प्रारंभिक ढांचा बहनजी की देन थी। उनके कार्यकाल में 180 करोड़ रुपये का निवेश हुआ, जो बाद में बढ़कर 260 करोड़ रुपये तक पहुँचा। इस परियोजना से लगभग हजारों स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार प्राप्त हुआ, और पर्यटन से जुड़े व्यवसायों को नया जीवन मिला।

बहनजी ने अपनी सरकार के बाद भी इस तरह की सभी महत्वपूर्ण एवं जनहितकारी योजनाओं को पूरा करने का आह्वान किया। उन्होंने बार-बार कहा कि जनहित की योजनाएँ राजनीति और सरकारों से ऊपर होती हैं। यह उनके कल्याणकारी दृष्टिकोण और राजनीति से परे जनसेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

सामाजिक समावेश और आर्थिक प्रगति: बहनजी का व्यापक दृष्टिकोण

बहनजी का योगदान केवल बुनियादी ढांचे के विकास तक सीमित नहीं था। उनकी नीतियाँ और योजनाएँ हमेशा समाज के वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने की दिशा में केंद्रित रहीं। कुशीनगर हवाई अड्डा परियोजना ने स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर सृजित किए, पर्यटन से जुड़े व्यवसायों को बढ़ावा दिया, और क्षेत्र की आर्थिक समृद्धि को गति प्रदान की। यह परियोजना बौद्ध धम्म के अनुयायियों के लिए एक तीर्थ स्थल को सुगम बनाने के साथ-साथ स्थानीय समुदाय के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता का मार्ग भी प्रशस्त करती है।

बहनजी ने बाबासाहेब, जगतगुरु रैदास, जगतगुरु कबीर, शाहूजी महाराज, ज्योतिबा फुले, घासीदास, और पेरियार जैसे समाज सुधारकों के आदर्शों को आत्मसात करते हुए बौद्ध स्मारकों और स्थलों के विकास को प्राथमिकता दी। उनके प्रयासों ने न केवल बौद्ध धरोहर को संरक्षित किया, बल्कि इसे वैश्विक मंच पर सम्मान और गौरव दिलाया। कुशीनगर हवाई अड्डा इस सामाजिक समावेश और सांस्कृतिक गौरव का एक जीवंत उदाहरण है, जो बहनजी के दर्शन को मूर्त रूप देता है।

निष्कर्ष: बहनजी की अमिट छाप और प्रेरणादायक विरासत

कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बहनजी के दूरदर्शी नेतृत्व, बौद्ध धम्म के प्रति उनके गहरे अनुराग, और सामाजिक समावेश के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक है। यह केवल एक हवाई अड्डा नहीं, बल्कि एक ऐसा सेतु है जो बौद्ध धम्म की शांति, करुणा, और समता को विश्व के हर कोने तक पहुँचाता है। बहनजी की संकल्पना ने कुशीनगर को वैश्विक तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित किया, बौद्ध सर्किट को पुनर्जनन दिया, और स्थानीय समृद्धि के नए द्वार खोले। यह परियोजना न केवल बौद्ध पर्यटन का केंद्र है, बल्कि सामाजिक परिवर्तन, सांस्कृतिक गौरव, और आर्थिक समृद्धि की एक अनुपम मिसाल भी है। बहनजी का यह कालजयी योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा, और कुशीनगर की यह उड़ान उनके सपनों की उड़ान है, जो बौद्ध धम्म की शांति को विश्व भर में पहुँचा रही है। उनकी यह विरासत हमें सिखाती है कि दृढ़ संकल्प, सही नीयत, और जनहित के प्रति समर्पण से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।

उनका यह योगदान कालजयी है, क्योंकि यह न केवल कुशीनगर, बल्कि पूरे भारत के लिए सांस्कृतिक और आर्थिक गौरव का प्रतीक है। आज जब कोई तीर्थयात्री कुशीनगर के महापरिनिर्वाण मंदिर में बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा के दर्शन करता है और शांति की अनुभूति करता है, वह बहनजी के उस स्वप्न को भी सलाम करता है, जिसने इस पवित्र स्थल को विश्व से जोड़ा। बहनजी की यह अमर गाथा कुशीनगर के ही नहीं बल्कि विश्व के आकाश में सदा गूँजती रहेगी।

नोट: इस लेख को लिखने में प्रमाणिक दस्तावेज़ के तौर पर सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा मई 2010 में प्रकाशित समतामूलक समाज की ओर… यूपी बौद्ध पर्यटन गाइड बुक की मदद ली गई है, जिसे प्रकाश पैकेजर्स, 257 गोलागंज, लखनऊ द्वारा मुद्रित किया गया है।


— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)


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