भारत के राजनीतिक क्षितिज पर बहनजी एक ऐसी शख्सियत हैं, जो राजनैतिक लाभ-हानि के संकीर्ण दायरे से ऊपर उठकर निर्णय लेती हैं। उनकी स्पष्टवादिता का कोई सानी नहीं; यह एक ऐसा गुण है, जो उन्हें अन्य नेताओं से विशिष्ट बनाता है। किंतु यह स्पष्टता उन्हें कभी-कभी महँगी भी पड़ती है। हाल ही में, एक मानसिक रूप से असंतुलित भाजपा विधायक ने परम आदरणीया बहनजी के संदर्भ में अशोभनीय टिप्पणी की और आधारहीन आरोप लगाए। इस पर समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव ने प्रतिक्रिया दी और बहनजी की ईमानदारी, देश व समाज के प्रति उनकी निष्ठा को स्वीकार किया। इसके जवाब में बहनजी ने अपने ट्विटर हैंडल से अखिलेश के इस कथन के लिए ‘आभार’ व्यक्त किया। किंतु इस साधारण शिष्टाचार को देखकर बहुजन समाज के कुछ पढ़े-लिखे लोग पुनः सपा के मायाजाल में फंस गए और गठबंधन की संभावनाओं के कयास लगाने लगे। जो लोग ऐसा सोचते हैं, वे न तो बहुजन आंदोलन को समझते हैं, न बहनजी को, और न ही बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के मूल स्वरूप को।
24 अगस्त 2024 की प्रभात वेला में 9:05 बजे, बहनजी ने अपने ट्विटर हैंडल से एक महत्त्वपूर्ण बयान जारी किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 1 अगस्त 2024 के उस निर्णय का उल्लेख किया, जो एससी-एसटी आरक्षण से संबंधित था, और इस संदर्भ में सपा व कांग्रेस की चुप्पी पर कड़ा प्रहार किया। बहनजी ने इन दलों को स्पष्ट रूप से आरक्षण विरोधी करार दिया और उनके चाल-चरित्र को हमेशा से दलित विरोधी बताया। फिर, लगभग दो घंटे बाद, उसी दिन 11:34 बजे, उन्होंने अखिलेश यादव द्वारा उनकी ईमानदारी को स्वीकार करने के लिए ‘आभार’ व्यक्त किया। इस बयान के पश्चात् बहुजन समाज के कुछ शिक्षित लोग फिर से सपा के झाँसे में आ गए और गठबंधन की चर्चा छेड़ दी। क्या इन लोगों को आत्मनिर्भर दलित-बहुजन राजनीति रुचिकर नहीं? क्या वे सदा पिछलग्गू बने रहना चाहते हैं, जबकि बहनजी इस आत्मनिर्भरता के पौधे को निरंतर सींच रही हैं?
इसके अगले दिन, 25 अगस्त 2024 को प्रातः 8:44 बजे, बहनजी ने पुनः अपने ट्विटर हैंडल से सपा, कांग्रेस और अन्य दलों के दलित विरोधी चरित्र को उजागर करते हुए लिखा: “सपा व कांग्रेस आदि जैसी इन आरक्षण विरोधी पार्टियों के साथ अब किसी भी चुनाव में इनसे कोई गठबंधन आदि करना क्या SC, ST व OBC वर्गों के हित में उचित होगा? यह कतई नहीं होगा। ऐसे में अब इनको खुद अपने दम पर खड़े होना है, यही सलाह।” यह कथन बहनजी की स्पष्टवादिता का एक और प्रमाण है। जहाँ आज के अधिकांश नेता अस्पष्ट और गोलमोल बातों में उलझे रहते हैं, वहीं बहनजी पूर्ण ईमानदारी और निर्भीकता से अपनी बात रखती हैं। देश को ऐसे स्पष्टवादी नेतृत्व पर गर्व करना चाहिए। उनका यह रुख राजनीति से परे, सामाजिक परिवर्तन की एक महानायिका की पहचान को रेखांकित करता है।
वर्तमान में यह सत्य निर्विवाद है कि एससी-एसटी आरक्षण के मुद्दे पर सपा का असली चेहरा बेनकाब हो चुका है। अखिलेश यादव ने भाजपा विधायक के बयान पर अनावश्यक रूप से कूदकर बहनजी की ईमानदारी को स्वीकार किया, जो ‘डैमेज कंट्रोल’ की एक मजबूरीभरी कोशिश थी। किंतु इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि सपा का चाल-चरित्र बदल गया है। सपा का इतिहास दलित विरोधी रहा है। यह वही सपा है, जिसने बहनजी के शासनकाल में बनाए गए उस कानून को उलट दिया, जो एससी-एसटी की जमीनों को जबरन हड़पने से रोकता था। सपा सरकार ने उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता में संशोधन कर इस सुरक्षा को समाप्त कर दिया। बहनजी के समय पदोन्नति में आरक्षण से लाभान्वित हजारों एससी-एसटी अधिकारियों और कर्मचारियों को सपा ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की आड़ में डिमोट कर दिया। बसपा सरकार द्वारा बहुजन महापुरुषों के नाम पर स्थापित जिलों के नाम बदल दिए गए। तत्कालीन सपा प्रमुख ने ही अम्बेडकर पार्क को ‘अय्याशी का अड्डा’ करार दिया था। सपा शासन में बाबासाहेब की मूर्तियाँ सबसे अधिक तोड़ी गईं। सपा के गुंडों ने लखनऊ में हथौड़े से बहनजी की मूर्ति तोड़ते हुए वीडियो बनाया। यह सब सपा के दलित विरोधी चरित्र का साक्ष्य है। अतः सपा से किसी भी प्रकार का मोह रखने वाले दलितों को अत्यधिक सावधान रहना होगा। सपा किसी भी परिस्थिति में दलित हितैषी नहीं हो सकती।
यदि सपा, कांग्रेस और भाजपा की तुलना करें, तो कांग्रेस और सपा ने दलितों के प्रति सबसे अधिक नफरत और नुकसान पहुँचाया है। जितना अहित इन दोनों ने एससी-एसटी का किया, उतना भाजपा अभी तक नहीं कर पाई। हाँ, यह सत्य है कि भाजपा अब सपा-कांग्रेस के नक्शेकदम पर चल रही है। अतः हमें इन तीनों दलों, उनके सहयोगी संगठनों, तथाकथित पत्रकारों और सेक्युलरिज्म के ठेकेदारों से सतर्क रहना होगा।
इन सबके बावजूद, यदि अखिलेश यादव ने मजबूरी में ही सही, ‘डैमेज कंट्रोल’ के लिए बहनजी की ईमानदारी को स्वीकार किया, तो उसका ‘आभार’ व्यक्त करना बनता है। बहनजी किसी का उधार नहीं रखतीं। यह ‘आभार’ उनके उच्चतम मानवीय मूल्यों और महान व्यक्तित्व का प्रतीक है। वे एक ऐसी शख्सियत हैं, जो छोटे से छोटे शिष्टाचार को भी सम्मान देती हैं। उनका यह कृत्य उनकी महानता को और भी उजागर करता है। किंतु इस ‘आभार’ को गठबंधन या राजनीतिक समीकरणों के चश्मे से देखना बहनजी, बहुजन आंदोलन, बसपा और समस्त बहुजन समाज का अपमान है। यह ‘आभार’ राजनीति से ऊपर, बहनजी की शानदार शख्सियत और उनके उच्च मानवीय मूल्यों का सशक्त प्रमाण है।
बहनजी का यह व्यक्तित्व हमें यह सिखाता है कि सत्य और ईमानदारी के मार्ग पर चलते हुए भी शिष्टाचार और मानवता को नहीं भुलाया जा सकता। वे न केवल एक राजनेता हैं, बल्कि सामाजिक न्याय और समता की एक जीवंत मशाल हैं, जो बहुजन समाज को आत्मनिर्भरता और सम्मान की ओर ले जा रही हैं। हमें उनके इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए, न कि क्षणिक भ्रम में पड़कर अपने लक्ष्य से भटकना चाहिए।