42.1 C
New Delhi
Saturday, April 19, 2025

किस्सा कांशीराम का #8: सुखद अटे है! तेज़ भागो, पीछे दौड़ता मुनीम कमरे का किराया लेने आ रहा है

पुणे में साहेब के संघर्ष भरे दिनों की कहानी. साहेब को नौकरी से इस्तीफा देने के बाद पुणे के पंजा मोहल्ले डिंकन जिमखाना के भंडारकर इंस्टीट्यूट के बॉयज होस्टल में किराए पर लेने वाले कमरे का किराया देना मुश्किल हो गया. क्योंकि साहेब सुबह पांच बजे बिना कुछ खाए उठकर मिशन पर जाते थे. Movement Work Sun.

असल में उस संस्थान का डायरेक्टर ब्राह्मण था जिसका नाम ब्रिस्कर है. मालिक ने कमरा किराए पर लिया था, लेकिन मालिक कभी किराया देने नहीं आया. यही कारण है कि मालिक ने हर महीने शहर से किराया वसूलने के लिए विशेष रूप से अपनी मुनीम की ड्यूटी लगाई थी.

एक दिन साहेब 142, रास्तापेठ, पुणे स्थित बामसेफ के खुले कार्यालय में पहुंचे और मनोहर अटे से सदासिव पेठ स्थित एक छोटी सी प्रेस चलाने को कहा. बमसेफ संगठन का बुलेटिन इस प्रेस पर प्रकाशित किया गया. असल में साहेब देखना चाहते थे कि उस बुलेटिन की छपाई कैसे चल रही है.

साहेब का हुक्म सुनते ही मनोहर आटा तैयार हो गया. साहेब और मनोहर आते ही अपनी साइकिल से मेन रोड से सदासिव पेठ पहुंचे. बुलेटिन की छपाई देखकर साहब साइकिल पर वापस सड़क पर जा रहे थे. और साइकिल चलाते समय मनोहर अटे को भी बता रहे थे कि पुणे बहुत पुराना शहर है. बहुत सी गलियां हैं. लेकिन सबसे व्यस्त सड़कें भी यहीं हैं. अचानक साहेब ने छोटी सी गली में मनोहर अटे को जल्दी काट दिया और यह कहकर छुप जाते हैं कि मनोहर अटे जल्दी भागो!

पहले तो मनोहर अटे को इस बारे में कुछ समझ में नहीं आया. फिर ये भी साहेब के पीछे भागने लगे. साहेब के पास पहुँच कर मनोहर अटे ने पूछा कि इस भरी गली में छुप कर क्यों खड़े हो? साहेब ने जवाब दिया पीछे से कौन आ रहा है. मनोहर अटे ने पीछे मुड़कर देखा तो साहेब ने कहा कि उनके ऑफिस के मालिक का मुनीम कमरे का किराया लेने मेरे पीछे भाग रहा है. चलो दौड़े मनोहर अटे.

खैर कांशीराम की जेब में किराया नहीं है. ये कहकर साहेब भीड़ भरी गलियों से साइकिल चलाते हुए मेन रोड पर चले गए. याद रहे मनोहर अटे बहुजन आंदोलन के चिंतक और साहेब के संघर्ष भरे दिनों के साथी थे. अटे साहेब से 14 साल छोटा था. नागपुर के मनोहर अटे चार भाई और दो बहनों में सबसे छोटे थे.


(स्रोत: मैं कांशीराम बोल रहा हूँ का अंश; लेखक: पम्मी लालोमजारा, किताब के लिए संपर्क करें: 95011 43755)

Me Kanshiram Bol Raha Hu
Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

कविता: सोचो, क्या होता तब… दीपशिखा इंद्रा

सोचो, क्या होता तब... जब मनुवादी व्यवस्था आज भी नारी समाज पर थोप दी जाती? क्या वह छू पाती आसमान? क्या देख पाती कोई...

बहुजन एकता और पत्रकारिता का पतन: एक चिंतन

आज भारतीय पत्रकारिता का गौरवशाली इतिहास रसातल की गहराइयों में समा चुका है। एक ओर जहाँ पत्रकार समाज में ढोंग और पाखंड के काले...

बसपा ने मनाया बाबासाहेब का जन्मोत्सव और पार्टी का स्थापना दिवस

खैरथल: बहुजन समाज पार्टी जिला खैरथल ईकाई ने राष्ट्रनिर्माता, विश्वविभूति बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेड़कर का 134वां जन्मोत्सव किशनगढ़ बास मौजूद होटल ब्लू मून में...

पुस्तक समीक्षा: “बहुजन सरोकार (चिंतन, मंथन और अभिव्यक्तन)”, प्रो विद्या राम कुढ़ावी

प्रो. विद्या राम कुढ़ावी एक ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्होंने लेखनी को केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे समाज के उत्पीड़ित,...

बहुजन आंदोलन: नेतृत्व मार्गदाता है, मुक्तिदाता नहीं

बहुजन आंदोलन की पावन परंपरा का प्रारंभ जगद्गुरु तथागत गौतम बुद्ध से माना जाता है। इस ज्ञानदीप्त परंपरा को सम्राट अशोक, जगद्गुरु संत शिरोमणि...

हुक्मरान बनो: बहुजन समाज के लिए एक सकारात्मक दृष्टिकोण

भारतीय राजनीति के विशाल पटल पर बहुजन समाज की स्थिति और उसकी भूमिका सदा से ही विचार-विमर्श का केंद्र रही है। मान्यवर कांशीराम साहेब...

भटकाव का शिकार : महार, मुस्लिम और दलित की राजनीतिक दुर्दशा

स्वतंत्र महार राजनीति का अंत महाराष्ट्र में महार समुदाय, जो कभी अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान के लिए जाना जाता था, आज अपने मुद्दों से भटक...

जगजीवन राम: सामाजिक न्याय और राजनीतिक नेतृत्व की विरासत

जगजीवन राम, जिन्हें प्यार से "बाबूजी" के नाम से जाना जाता था, भारतीय राजनीति, स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक न्याय आंदोलनों में एक प्रमुख व्यक्ति...

बौद्ध स्थलों की पुकार: इतिहास की रोशनी और आज का अंधकार

आज हम एक ऐसी सच्चाई से पर्दा उठाने जा रहे हैं, जो न केवल हमारी चेतना को झकझोर देती है, बल्कि हमारे समाज की...

वक्फ बिल से बहुजन समाज पार्टी सहमत नहीं: मायावती

Waqf Bill: 2 अप्रैल 2025 को संसद नीचले सदन यानि लोकसभा में वक्फ संशोधन बिल पेश किया गया. जिसे घंटों की चर्चा के बाद...

ओबीसी की वास्तविक स्थिति और उनकी राजनीतिक दिशा

ओबीसी समाज में लंबे समय से यह गलतफहमी फैलाई गई है कि वे समाज में ऊंचा स्थान रखते हैं, जबकि ऐतिहासिक और सामाजिक वास्तविकता...

भारत का लोकतंत्र और चुनावी सुधार: आनुपातिक प्रतिनिधित्व की आवश्यकता

प्रस्तावना: विविधता और जाति व्यवस्था भारत एक विविधतापूर्ण देश है, जहाँ अनेक भाषाएँ, धर्म और हजारों जातियाँ सह-अस्तित्व में हैं। यहाँ की सामाजिक व्यवस्था में...