बाबू जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल, 1908 में हुआ था और बाबासाहब डॉ. अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 में. दोनों में 17 वर्ष की उम्र का फासला था. दोनों भारतीय राजनीति में बड़े नाम थे. बाबू जगजीवन राम को कांग्रेस का पीट्ठू नेता कुछ लोग मानते हैं जबकि उन्हें वास्तविक इतिहास का पता नहीं है. 1930 में जब बाबू जगजीवन राम कलकत्ता बीएससी के लिए गये तो वहां साम्यवादी मजदूर वर्ग के साहित्य और आंदोलन से प्रभावित हुए और छ माह के भीतर ही ‘रविदास महासभा’ के द्वारा रैदास जयंती मनाने के क्रम में मजदूरों के लिए एक बड़ा आयोजन किया.
बाद में ‘अखिल भारतीय रविदास महासभा’ का गठन के द्वारा उन्होंने अपने स्वतंत्र आंदोलन को दो मुहाने पर संघर्ष करने का महाज तैयार किया. सुभाष चंद्र बोस और डॉ. राजेंद्र प्रसाद इनके जज्बे और प्रभाव को देकर महात्मा गाँधी को खत लिखे. क्योंकि सुभाष चंद्र बोस कलकत्ता में जगजीवन राम की अध्यक्षता में हुए आयोजन में सरीक हुए थे.
बाबू जगजीवन राम ने दो अन्य संस्थानों का गठन किया –
1. खेतिहर मजदूर सभा
2. भारतीय दलित वर्ग संघ
एक ओर जहाँ बाबासाहब महाराष्ट्र में ‘स्वतंत्र लेबर पार्टी’ के गठन के साथ 1936 के आम चुनाव में 13 सीटों पर चुनाव जीत कर बड़ा हस्तक्षेप कर रहे थे.
वहीं बाबू जगजीवन राम बिहार में 14 मिली सीटों पर जीत दर्ज किया और बिहार विधान परिषद में निर्विरोध चुनाव जीत कर अध्यक्ष बने. यह बाबू जगजीवन राम के ‘भारतीय दलित वर्ग संघ’ के तत्वाधान में जीत मिली थी. इनकी क्षमता को देखते हुए ही कांग्रेस ने बाबू जगजीवन राम पर अपना दाव चलना शुरू किया. और राजेंद्र प्रसाद ने बंबई ले जाकर गांधीजी से भेंट कराई.
बाबू जगजीवन राम अपने संगठन का विस्तार पूरे देश में करने लगे. साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन में कई बार जेल भी गए. इससे पूरे देश के दलितों में डॉ. अम्बेडकर ज्यादा प्रभाव जगजीवन राम हो गया. क्योंकि इस प्रभाव में कांग्रेस का भी हाथ था. अछूतोद्धार आंदोलन भी बाबू जगजीवन राम के कंधों पर कांग्रेस द्वारा किया गया.
पूना पैक्ट के बाद दलितों को मिले 151 सीटों पर कांग्रेस के गठबंधन द्वारा बाबू जगजीवन राम को 123 सीटों पर जीत हासिल हुई थी और डा. अम्बेडकर के ‘शेड्यूल कास्ट फेडरेशन’ को एक सीट हासिल हुई थी.
जो काम शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के द्वारा डॉ. अम्बेडकर कर रहे थे, वही काम कांग्रेस के गठबंधन के साथ बाबू जगजीवन राम ‘भारतीय दलित वर्ग संघ’ के द्वारा कर रहे थे. इस मामले में जगजीवन राम राजनीति में डॉ. अम्बेडकर से सफल व्यक्ति थे.
लगभग 42 वर्ष मंत्रीमंडल में बाबूजी रहे. दो बार रक्षामंत्री और दो बार श्रम मंत्री के साथ संचार, परिवहन, रेल और उड्डयन मंत्री भी रहे. देश के पहले उप प्रधानमंत्री थे. जब कांग्रेस टूटने के कगार पर थी तब जगजीवन राम ही उसे बचाये. इमर्जेंसी में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा देकर डेमोक्रेटिक पार्टी आफ कांग्रेस से अलग पार्टी का गठन किया और जनता पार्टी उन्हीं के बदौलत कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने में सफल हुई. लेकिन बाबू जगजीवन के साथ छल किया गया और उनको दरकिनार कर देसाई को प्रधानमंत्री बनाने का फैसला लिया गया. तब जयप्रकाश बाबू जगजीवन राम को मनाने के लिए गये और उन्होंने ने देसाई पर विश्वास मत दिया.
1931 से लेकर 1986 तक उन्होंने अपने जीवन में तमाम उतार चढ़ाव देखे. भारतीय राजनीति में डॉ. अम्बेडकर को स्वतंत्र राजनीति के रूप में देखा जाता है. लेकिन कांग्रेस मंत्री मंडल में चार वर्ष उन्होंने कानून मंत्री रूप में गुजारा था.
दलितों के धार्मिक मसले पर बाबासाहब डा. अम्बेडकर ‘भारतीय बौद्ध समिति’ के द्वारा धर्मांतरण करने का आंदोलन कर रहे थे तो बाबू जगजीवन राम ‘अखिल भारतीय रविदास महासभा’ के द्वारा अपने लोगों को रैदास के आध्यात्मिक दर्शन से जोड़ कर धर्मांतरण का विरोध कर रहे थे. इस संगठन का असर पूरे देश में था. महाराष्ट्र में डॉ. अम्बेडकर इस संगठन का विरोध कर रहे थे. मास्टर शिवतकर को लिखे खतों में इसका जिक्र डॉ. अम्बेडकर किये थे.
दोनों राजनीतिज्ञ व्यक्तियों ने कभी सीधे संघर्ष नहीं किया. चुपचाप दलितों के हकों के लिए भीतर और बार से संघर्ष करते रहे. बाबू जगजीवन राम के बहुत से पक्ष नकारात्मक भी थे डॉ. अम्बेडकर की तरह. लेकिन कांशीराम साहब सैद्धांतिक आंदोलन से ज्यादा व्यवहारिक रणनीति में एक योद्धा थे और मायावती स्थापित सेनापति.
(लेखक: डॉ संतोष कुमार, ये लेखक के अपने विचार हैं)