भारतीय राजनीति के विशाल पटल पर बहुजन समाज की स्थिति और उसकी भूमिका सदा से ही विचार-विमर्श का केंद्र रही है। मान्यवर कांशीराम साहेब और बहनजी जैसे दूरदर्शी नेताओं ने इस समाज को एक नवीन दिशा और संकल्पना प्रदान की है। मान्यवर कांशीराम साहेब का उद्घोष था, “हुक्मरान बनो,” और बहनजी ने भी यही संदेश प्रतिपादित किया कि हमें अपनी शक्ति और समय इस बात पर व्यय नहीं करना चाहिए कि कौन हार रहा है अथवा कौन विजयी हो रहा है, अपितु अपनी सरकार स्थापित करने हेतु संनिष्ठ प्रयास करना चाहिए। किंतु विडंबना यह है कि बहुजन समाज का एक बड़ा वर्ग अपने इन महान मार्गदर्शकों के संदेशों को उपेक्षित कर “भाजपा हराओ” जैसे नकारात्मक लक्ष्य को अपनी प्राथमिकता बना बैठा है। यह लेख इस तथ्य पर बल देता है कि बहुजन समाज को “भाजपा हराओ” जैसे नकारात्मक संकल्प को त्यागकर “बसपा लाओ” जैसे सकारात्मक और रचनात्मक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
नकारात्मक संकल्प का परिणाम: एक चिंतन
“भाजपा हराओ” के नारे के अंतर्गत बहुजन समाज ने आम आदमी पार्टी (आप), समाजवादी पार्टी (सपा), और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) जैसी पार्टियों को अपना समर्थन प्रदान किया। ये पार्टियाँ, यदि विचारधारा और कार्यप्रणाली के आधार पर विश्लेषण करें, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सहयोगी अथवा भाजपा और शिवसेना जैसे साम्प्रदायिक दलों के सहयोगी ही हैं। इस अल्पदृष्टि और अविवेकपूर्ण निर्णय के परिणामस्वरूप बहुजन समाज आज न तो सत्ता के शिखर पर है और न ही विपक्ष की प्रभावशाली भूमिका में। मुस्लिम, पिछड़े, और अन्य शोषित वर्गों पर अत्याचार निरंतर जारी हैं। जिन दलों को बहुजन समाज ने अपने मतों से सशक्त किया, वे आज इन अत्याचारों के समक्ष मौन साधे हुए हैं। ऐसी स्थिति में बहुजन समाज पुनः बहनजी की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रहा है, किंतु अपनी भूल स्वीकार करने का साहस नहीं जुटा पा रहा। इसके विपरीत, वे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और बहनजी पर दोषारोपण कर रहे हैं, जो उनकी अदूरदर्शिता और गैर-जिम्मेदाराना सोच को और भी स्पष्ट करता है।
सकारात्मक संकल्प की अनिवार्यता
गत एक दशक के निर्वाचनों में पिछड़े, दलित (गैर-जाटव), और अन्य शोषित समुदायों ने “भाजपा हराओ” को अपना सर्वोच्च लक्ष्य मानकर कार्य किया और अपने मूल संकल्प “हुक्मरान बनो” को विस्मृत कर दिया। इस नकारात्मक दृष्टिकोण का परिणाम यह हुआ कि “भाजपा हराओ” का लक्ष्य न केवल विफल रहा, अपितु इसके विपरीत भाजपा को प्रचंड बहुमत प्राप्त हुआ। साथ ही, भाजपा द्वारा समर्थित अथवा उसके सहयोगी दलों जैसे आप, सपा, और टीएमसी को सत्ता अथवा विपक्ष में सम्मानजनक स्थान प्राप्त हो गया। अब यह प्रश्न विचारणीय है कि “भाजपा हराओ” के इस संकल्प को अपनाने वाले बहुजन समाज को वास्तव में क्या प्राप्त हुआ? यह स्पष्ट है कि नकारात्मक लक्ष्य ने न केवल बहुजन समाज को विफल किया, बल्कि उसके मूल उद्देश्य को भी धूमिल कर दिया।
बहुजन समाज का प्रामाणिक उद्देश्य
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का मूल लक्ष्य किसी को पराजित करना अथवा विजयी बनाना नहीं है, अपितु शोषित समाज को सत्ता के शीर्ष पर स्थापित करना है। इसका उद्देश्य किसी का दमन अथवा शोषण करना कदापि नहीं, बल्कि “न्याय, समता, स्वतंत्रता, और बंधुत्व” के आधार पर एक समतामूलक समाज की स्थापना करना और भारत के राष्ट्रनिर्माण में योगदान देना है। बसपा का यह दर्शन बहुजन समाज को न केवल सशक्त बनाने का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि एक समावेशी और प्रगतिशील समाज के निर्माण की संकल्पना को भी मूर्त रूप देता है।
निष्कर्ष: सकारात्मक मार्ग की ओर अग्रसर हों
बहुजन समाज को “भाजपा हराओ” जैसे नकारात्मक और आत्मघाती संकल्प को त्यागकर “बसपा लाओ” जैसे सकारात्मक और रचनात्मक लक्ष्य को अपनाना चाहिए। यह सकारात्मक दृष्टिकोण न केवल बहुजन समाज को सत्ता के शिखर तक ले जाएगा, बल्कि एक न्यायपूर्ण, समतामूलक, और समृद्ध समाज की स्थापना में भी सहायक सिद्ध होगा। मान्यवर कांशीराम साहेब और बहनजी के संदेशों को हृदयंगम कर उनका अनुसरण करना ही बहुजन समाज के लिए सच्चा मार्ग है। यह समय है कि बहुजन समाज अपनी शक्ति को पहचाने, अपनी गलतियों से सबक ले, और “हुक्मरान बनो” के संकल्प को साकार करने हेतु दृढ़ संन्यास ले। केवल इसी मार्ग से बहुजन समाज अपनी वास्तविक नियति को प्राप्त कर सकेगा।