कांग्रेस का षड्यंत्र : दलितों को बांटने की साजिश और बहुजन समाज का भविष्य
भारतीय राजनीति में दलित और बहुजन समाज को एकजुट और सशक्त बनाने की कोशिशें हमेशा से विभिन्न शक्तियों के निशाने पर रही हैं। इनमें से सबसे बड़ा षड्यंत्र कांग्रेस ने रचा, जिसने दलित समाज को न केवल कमजोर किया, बल्कि उनके भाईचारे को भी खंडित कर दिया। पंजाब में 1975 में कांग्रेस द्वारा दलितों को बांटने की साजिश इसका स्पष्ट उदाहरण है। इस बंटवारे ने न सिर्फ दलित एकता को प्रभावित किया, बल्कि बहुजन समाज के महानायक मान्यवर कांशीराम साहेब को भी पंजाब में अपनी राजनीतिक सफलता हासिल करने से रोका। यह लेख कांग्रेस के इस षड्यंत्र और उसके बहुजन समाज पर प्रभाव को विश्लेषित करता है, साथ ही यह समझने की कोशिश करता है कि क्यों मान्यवर साहेब और बहनजी मायावती कांग्रेस को सबसे बड़ा खतरा मानते हैं।
पंजाब में दलितों का बंटवारा: कांग्रेस की साजिश
1975 में पंजाब में कांग्रेस ने दलित समाज को जातीय और सामाजिक आधार पर बांटने की रणनीति अपनाई। यह सुनियोजित कदम था, जिसका उद्देश्य दलितों की एकता को तोड़ना और उन्हें राजनीतिक रूप से कमजोर करना था। इस बंटवारे ने दलित भाईचारे में दरार डाल दी, जिसका असर यह हुआ कि मान्यवर कांशीराम साहेब, जो बहुजन समाज को संगठित करने के लिए अथक प्रयास कर रहे थे, पंजाब में अपनी पूरी क्षमता से सफलता प्राप्त नहीं कर सके। कांग्रेस की यह चाल न केवल दलितों के लिए, बल्कि पूरे बहुजन समाज के लिए एक बड़ा झटका साबित हुई। यह साबित करता है कि कांग्रेस ने हमेशा बहुजन समाज को कमजोर करने के लिए छिपे हुए हथकंडे अपनाए हैं।
मान्यवर साहेब का विश्लेषण : उदारवादी हिन्दू का खतरा
मान्यवर कांशीराम साहेब ने अपनी दूरदर्शिता से इस खतरे को पहचाना और समाज को सचेत किया। वे कहते थे कि हिन्दू दो तरह के हैं—एक, कट्टर हिन्दू (भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां), और दूसरा, उदारवादी हिन्दू (कांग्रेस, सपा, राजद, टीएमसी, आप और उनकी सहयोगी पार्टियां)। दोनों ही बहुजन समाज के शत्रु हैं, लेकिन उदारवादी हिन्दू ज्यादा खतरनाक हैं। कट्टर हिन्दू अपना विरोध खुलकर जाहिर करते हैं, जबकि उदारवादी हिन्दू दोस्ती का मुखौटा लगाकर पीठ में छुरा घोंपते हैं। कांग्रेस इसी उदारवादी हिन्दू श्रेणी का नेतृत्व करती है, जो बहुजन समाज को भ्रम में डालकर उनके हितों को कुचलती है।
मान्यवर साहेब कहते हैं कि – हिन्दू दो तरह के हैं। एक, कट्टर हिन्दू (भाजपा एंड कम्पनी)। दो, उदारवादी हिन्दू (कांग्रेस, सपा, राजद, टीएमसी, आप एंड कम्पनी)। ये दोनों ही बहुजन समाज की शत्रु हैं लेकिन फिर भी उदारवादी हिन्दू बहुजन समाज के लिए ज्यादा खतरनाक है। इसलिए बाबासाहेब, मान्यवर साहेब ने समाज को हमेशा कांग्रेस एंड कम्पनी से हमेशा दूर रहने की अपील की है परन्तु बार-बार बहुजन समाज कांग्रेस, सपा आदि का शिकार बन जाता है।
मान्यवर साहेब और बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने बार-बार समाज को कांग्रेस और उसके सहयोगियों से दूर रहने की सलाह दी। लेकिन इसके बावजूद, बहुजन समाज बार-बार कांग्रेस, सपा जैसे दलों के जाल में फंस जाता है। यह एक दुखद विडंबना है कि समाज अपनी शक्ति को पहचानने और संगठित होने में नाकाम रहा है।

बहनजी का रणनीतिक हमला : शत्रुओं की पहचान
आदरणीया बहनजी मायावती इस खतरे को अच्छी तरह समझती हैं। वे अनुभवी हैं, सामाजिक परिवर्तन की महानायिका हैं, और बहुजन समाज का केंद्र बिंदु हैं। भारतीय राजनीति में उनकी भूमिका न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि वे भारत राष्ट्र निर्माण की धुरी भी हैं। यही कारण है कि अपने हर भाषण में वे सबसे पहले कांग्रेस और उसके सहयोगियों पर हमला बोलती हैं, फिर सपा जैसे दलों को निशाना बनाती हैं, और अंत में कट्टर हिन्दू भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों पर प्रहार करती हैं। यह क्रमबद्ध हमला उनकी रणनीति का हिस्सा है, जो बहुजन समाज के शत्रुओं की गहरी समझ को दर्शाता है।
बहनजी जानती हैं कि कांग्रेस का उदारवादी चेहरा बहुजन समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यह वह पार्टी है जो दिखावे में समानता की बात करती है, लेकिन अपने कार्यों से दलित और बहुजन समाज को कमजोर करती है। सपा जैसे दल भी इसी श्रेणी में आते हैं, जो क्षेत्रीय स्तर पर बहुजन समाज को भटकाने का काम करते हैं। भाजपा का कट्टर हिन्दू चेहरा खुला शत्रु है, जिसे पहचानना आसान है, लेकिन कांग्रेस की छिपी साजिशें बहुजन समाज के लिए जटिल और घातक हैं।
बहुजन समाज की चुनौती और जिम्मेदारी
बहनजी की यह रणनीति बहुजन समाज के लिए एक स्पष्ट संदेश है—अपने शत्रुओं को पहचानो और उनसे सावधान रहो। लेकिन यदि समाज इस सामान्य-सी बात को नहीं समझ पाता, तो गलती उसकी अपनी है। कांग्रेस का इतिहास रहा है कि वह दलितों को बांटकर उनकी एकता को कमजोर करे, जैसा कि पंजाब में 1975 में देखा गया। आज भी यह पार्टी और उसके सहयोगी उसी रणनीति पर चल रहे हैं। सपा, टीएमसी, आप जैसे दल भी अपने-अपने क्षेत्रों में बहुजन समाज को भ्रमित करने में लगे हैं। दूसरी ओर, भाजपा का खुला विरोध तो दिखता है, लेकिन कांग्रेस की चालबाजियां कहीं अधिक खतरनाक हैं।
निष्कर्ष
कांग्रेस द्वारा दलितों को बांटने का षड्यंत्र कोई नई बात नहीं है। पंजाब में 1975 का बंटवारा इसका जीता-जागता सबूत है, जिसने मान्यवर कांशीराम साहेब जैसे नेताओं के प्रयासों को प्रभावित किया। मान्यवर साहेब और बहनजी ने बार-बार समाज को यह समझाने की कोशिश की कि उदारवादी हिन्दू, खासकर कांग्रेस, बहुजन समाज का सबसे बड़ा शत्रु है। बहनजी की क्रमबद्ध रणनीति—पहले कांग्रेस, फिर सपा, और अंत में भाजपा पर हमला—इसी समझ का परिणाम है। बहुजन समाज को अब जागना होगा और इस षड्यंत्र को समझना होगा। यदि समाज कांग्रेस और उसके सहयोगियों के जाल में फंसता रहा, तो उसकी एकता और शक्ति हमेशा के लिए कमजोर पड़ जाएगी। यह समय है कि बहुजन समाज अपनी महानायिका बहनजी के नेतृत्व में एकजुट हो और अपने असली शत्रुओं को पहचानकर उनके खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़े।