भारत में भाजपा का गठन दलितों, पिछड़ों को अपने स्वतंत्र एजेण्डे के साथ आत्मनिर्भर तौर पर सत्ता में आने से रोकने के लिए किया गया है। इनको रोकने के लिए भाजपा ने भारत में हिन्दुत्व की राजनीति को शुरू किय। इन्होंने हिन्दू के नाम पर सवर्णों (शूद्र भी सवर्ण होतें हैं) को एकत्रित कर सत्ता तक पहुँचने का रास्ता चुना।
किसी भी समाज या देश का ध्रुवीकरण अकेले नहीं किया जा सकता है। इसलिए दलितों, आदिवासियों, पिछडों एवं अल्पसंख्यकों आदि के मूल व सकारात्मक एजेण्डे को दबाकर भारत के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण में पहले कांग्रेस (शाह बानो केस एवं बाबरी मस्जिद के ताला खोलने के मामले) ने, इसके बाद कट्टर हिन्दू समर्थक दलों (सपा, राजद, जदयू, टीएमसी) ने पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ हर जरूरत के वक्त साम्प्रदायिक वातावरण बनाने के लिए हिन्दू-मुस्लिम उन्माद एवं दंगो के जरिये भाजपा का भरपूर सहयोग किया है।
हास्यास्पद पहलू यह है कि इसके बावजूद भी अल्पसंख्यक, खासकर मुस्लिम समुदाय भाजपा के इन अप्रत्यक्ष साम्प्रदायिक एवं जातिवादी सहयोगियों (सपा, राजद, जदयू, कांग्रेस, टीएमसी, आप आदि) को अपना हितैषी और सेक्युलर समझता है। फिलहाल, अपने अप्रत्यक्ष सहयोगियों की मदद से एक तरफ भाजपा ने हिन्दुओं के जहन में मुस्लिमों का खौफ स्थापित कर दिया तो वहीं दूसरी तरफ भाजपा के अप्रत्यक्ष सहयोगियों ने मुस्लिम समुदाय के जहन में भाजपा का खौंफ स्थापित कर दिया। इस प्रकार भाजपा और उसके सहयोगी मित्र पूरे भारत का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने में सफल हो गए।
खौफ की तिजारत
इस प्रकार ‘खौफ‘ की तिजारत करके भाजपा सत्तारूढ़ होकर मनुवादी एजेण्डे को अंजाम दे रही है तो वहीं दूसरी तरफ इसके सहयोगियों को भी कहीं सत्ता (बिहार, बंगाल, दिल्ली, पंजाब) तो कहीं विपक्ष (उत्तर प्रदेश) की भूमिका मिल गई। यह इनके लिए अब तक Win-Win की सबसे सुरक्षित नीति रही है। यह सब इसी के तहत खेल रहे हैं। ये सब मिलकर पिछड़े और मुस्लिम समुदाय को हिन्दू-मुस्लिम में उलझा कर मनुवादी हिन्दू व्यवस्था के लिए पूरी तन्मयता से कार्यरत हैं। इसके बावजूद पिछड़ा, आदिवासी और मुस्लिम समाज भाजपा के सहयोगी एवं कट्टर हिन्दू दलों (सपा, राजद, जदयू, टीएमसी, आप, सीपीएम) से आस लगाए बैठा है। ये आस खुद को धोखा देने के सिवा कुछ नहीं है। जब तक ये इनके चंगुल से खुद को आजाद नहीं करते हैं तब तक भारत साम्प्रदायिकता एवं जातिवाद की दहकती आग में जलता रहेगा और पिछड़े, मुस्लिम, आदिवासी आदि शोषित वर्गों के बाजार में ये बेखौफ होकर ‘खौफ़‘ बेंचकर सत्तासीन होते रहेंगे।
बहुजन समाज के स्वतंत्र एजेण्डे पर आधारित आत्मनिर्भर सत्ता (बसपा) को रोकने में भाजपा की मदद करने वाली दलित विरोधी सपा, राजद, जदयू, टीएमसी, आप, सीपीएम, आप आदि दलितों के जहन में ‘संविधान एवं लोकतंत्र के खतरे में होने का भय’ स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। बहुजन समाज को भाजपा और उसके साम्प्रदायिक एवं जातिवादी सहयोगियों (सपा, राजद, जदयू, टीएमसी, आप, सीपीएम) को रेखांकित करना होगा और समझना होगा कि ये सभी मनुवादी लोग बाबासाहेब के नाम की तिजारत कर रहे हैं। कभी संविधान तो कभी लोकतंत्र के खतरे में होने का भय और मान्यवर साहेब के नाम की दुहाई देकर पिछड़ों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों एवं दलितों की स्वतंत्र एजेण्डा आधारित आत्मनिर्भर सरकार बनने से रोकने के लिए भाजपा का सहयोग कर रहे हैं।
दलितों को इनका यह षड्यंत्र समझना होगा कि जैसे भाजपा ने हिन्दुओं के जहन में मुस्लिम का खौफ पैदा किया है, जैसे भाजपा के जातिवादी एवं साम्प्रदायिक सहयोगी सपा, राजद, जदयू, टीएमसी, आप, सीपीएम आदि ने मुस्लिम के जहन में हिन्दुओं का खौफ पैदा किया है ठीक उसी तरह से अब ये साम्प्रदायिक व जातिवादी पार्टियां दलितों के जहन में ‘संविधान व लोकतंत्र के खतरे में होने का खौफ‘ पैदा कर रहे हैं। यदि दलित इनके इस षड्यंत्र का शिकार हो गया तो वह सत्ता तो दूर खुद की आत्मनिर्भर राजनैतिक अस्मिता से भी हाथ धो बैठेगा।
फिलहाल, लोकसभा आमचुनाव 2024 की सरगर्मियां तेज हो चुकी है। इसलिए कट्टर हिन्दू व भाजपा के सहयोगी दलों ने साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण शुरू कर दिया है। भाजपा से थोड़ा बहुत नाराज चल रहे ब्रह्मण, क्षत्रिय, बनिया और कट्टर शूद्रों को भाजपा के खूंटे में पुनः बांधने के लिए ‘रामचरितमानस’ जैसे मुद्दों को उछालना शुरू कर दिया है। नब्बें के शुरूआती दौर में मान्यवर साहेब, बसपा और बहनजी को बदनाम करने और इनकी छवि खराब करने के लिए मुलायम सिंह यादव के इशारे पर बसपा के कभी सदस्य रहे और मुलायम सिंह यादव के हाथों बिके खादिम अब्बास द्वारा ऊल-जलूल नारे (मिले मुलायम-कांशीराम…) गढ़ कर बसपा को बदनाम किया गया। आज फिर सपा द्वारा मान्यवर साहेब, बसपा और बहनजी की छवि को धुमिल करने और लोगों बरगलाने के लिए उन्हीं ऊल-जलूल नारों को दोहराया जा रहा है जिनसे मान्यवर साहेब, बहनजी एवं राष्ट्र निर्माण हेतु समर्पित बहुजन आन्दोलन की वाहक बसपा का कोई संबंध नहीं है।
बसपा की समतावादी विचारधारा, संविधान सम्मत शासन, प्रशासन एवं अनुशासन, जनहित में किये गए उत्कृष्ट कार्य, सुदृढ़ कानून व्यवस्था, रोजगार सृजन, किसान मित्र की उज्जवल छवि सहित ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ की नीति से देश ही नहीं, पूरी दुनिया वाकिफ़ है। इसलिए इस लेख में राष्ट्र हित को ध्यान में रखकर भाजपा, कांग्रेस, सपा, राजद, जदयू, टीएमसी, डीएमके आदि की मिलीभगत को उजागर किया गया है।
तीसरे मोर्चे का छलावा
फिलहाल, मौसमी अम्बेडकरवादी (Ambedkarite by Convince) और बिके हुए यूट्यूबर्स, पत्रकार,अखबार आदि लगातार लोगों को बता रहे हैं कि भाजपा खतरनाक है। भाजपा को हटाना चाहिए। यह सत्य भी है परन्तु समर्पित अम्बेडकरवादियों (Ambedkarite by Conviction) का अहम सवाल यह है कि भाजपा को हटा भी दिया तो लाओंगे किसको?
कांग्रेस, सपा, टीएमसी, जदयू, राजद, शिवसेना, आप, सीपीएम, सीपीआई आदि, आखिर किसको? क्या देश इनके पिछड़े, मुस्लिम, दलित विरोधी एवं पूंजीवादी चरित्र को भूल चुका है? क्या यह भी भूल गए है कि ये सब तो भाजपा की ही मनुवादी विचारधारा के पोषक हैं। क्या कांग्रेस या इसके प्रत्यक्ष और भाजपा के अप्रत्यक्ष सहयोगी गण (सपा, राजद, जदयू, टीएमसी, डीएमके आदि) शोषितों के हितैषी हो सकते हैं? आज यह देश के शोषित वंचित समाज के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न है।
इसी कड़ी में चल रही मौसमी चर्चा पर गौर किया जाय तो एक बात निकल कर आ रही है कि दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों एवं आदिवासियों को ठगने और हिन्दुत्व को मजबूत करने के लिए जातिवादी एवं साम्प्रदायिक सपा, राजद, जदयू, टीएमसी आदि तीसरा मोर्चा बनाकर प्रधानमंत्री का उम्मीदवार ढ़ूंढ़ रहे हैं। ये तीसरे मोर्चे पर चर्चा कर रहे हैं परन्तु भाजपा के सामने हिमालय की तरह खड़े दूसरे मोर्चे को लगातार नजरअंदाज़ कर रहे हैं। तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। आखिर यह दूसरा मोर्चा कौन है?
हमारे निर्णय में भाजपा को टक्कर देने की कुव्वत सिर्फ बसपा में है क्योंकि उसके पास स्वतंत्र एजेण्डा है। अखिल भारतीय स्तर पर स्थापित आत्मनिर्भर संगठन है। अपनी विचारधारा है। अपने नायक-नायिकाएं हैं। स्वतंत्र साहित्य है। प्रेरणादायी एवं गौरवशाली इतिहास है। सक्षम नेतृत्व और अपार जन-बल है। इसलिए दूसरा मोर्चा बसपा ही है। यही वजह है कि आज मनुवाद को मजबूत करने के लिए भाजपा के सभी जातिवादी एवं साम्प्रदायिक सहयोगी तीसरे मोर्चे की बात कर रहे हैं ताकि जनता का ध्यान दूसरे मोर्चे (बसपा) से हटाया जा सके। ऐसे में कांग्रेस संग तीसरे मोर्चे की चर्चा में शामिल पांच दलों (सपा, राजद, जदयू, टीएमसी, डीएमके) के जातिवादी एवं साम्प्रदायिक चाल-चरित्र एवं भाजपा संग इनके आंतरिक गठबंधन को उजागर करना आवश्यक है।
कांग्रेस का मनुवादी एवं साम्प्रदायिक चाल-चरित्र
कांग्रेस में भाजपा का विकल्प ढ़ूढ़ने वाले क्या यह भूल चुके हैं कि इसी कांग्रेस ने बाबासाहेब को अपमानित किया, संविधान सभा में जाने से रोकने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था, मान्यवर साहेब को सीआईए का एजेंट बताया था। क्या देश यह भी विस्मृत कर चुका है कि 2 अप्रैल 2018 के भारत बंद के दौरान जेलों में कैद, कचहरी के चक्कर काट रहे शोषितों के लिए जब बसपा ने राजस्थान की कांग्रेस पर दबाव बनाया तो कांग्रेस के ओबीसी मुख्यमंत्री ने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की मंशानुरूप बसपा के छ: विधायकों को खरीद कर राजस्थान में बसपा को तोड़ने का असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक व अनैतिक कार्य किया है?
यही कांग्रेस है जिसने लम्बे दौर तक देश में शासन किया परन्तु आज तक कश्मीर और नक्सल समस्या का कोई हल ढूढने के बजाय इन क्षेत्रों को फौज के हवाले कर दिया है जिसमें आज तक लाखों की संख्या में आदिवासियों एवं मुस्लिमों का नरसंहार हो चुका है। ऐसी जातिवादी और राष्ट्र विरोधी कांग्रेस को सत्ता सौंप कर क्या देश के पिछड़े, अल्पसंख्यक, दलित एवं आदिवासी समाज का कभी कोई भला हो सकता है?
यदि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण में कांग्रेस की भूमिका को चिन्हित करें तो क्या मुस्लिम इस बात को भूल चुका है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना कांग्रेस की केन्द्र सरकार के कार्यकाल में हुआ था? क्या मुस्लिम भूल गया है कि बाबरी मस्जिद में ब्रह्मणों द्वारा पूजा-पाठ के लिए ताला कांग्रेस ने ही खुलवाया था? परिणामस्वरूप पूरे भारत में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को बल मिला और शनैः शनैः पूरा देश साम्प्रदायिकता की भट्ठी में झोंक दिया गया।
क्या देश राजनैतिक स्वार्थ के लिए पंजाब और दिल्ली को हिन्दू-सिक्ख दंगों में झोककर देश की एकता एवं अखण्डता को दांव पर लगाने वाली कांग्रेस को भूल चुका है? क्या सिक्ख समुदाय यह भूल चुका है कि कांग्रेस की राजनैतिक स्वार्थ के चलते पूरे देश में बड़े पैमाने पर हिन्दूओं द्वारा सिक्खों का कत्लेआम हुआ था? कांग्रेस के नक्श-ए-कदम पर पंजाब में कट्टरवादी संगठन फिर सक्रिय हो रहा है। यदि इस पर जनता ने संज्ञान नही लिया तो 1984 वाले हालात फिर उत्पन्न होने कोई रोक नहीं सकता है। इसमें, फिर, हिन्दूओं द्वारा सिक्खों पर क्रूरता को इंकार नहीं किया जा सकता है। यदि जनता अपने वोट का सही इस्तेमाल कर संविधान सम्मत शासन स्थापित करने वाली अम्बेडकरवादी पार्टी कर को सत्तारूढ़ करती है तो न सिर्फ साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार आदि से बचा जा सकता है अपितु भारत को विकास, शांति, सौहार्द और समृद्ध भारत की तरफ़ उन्मुख किया जा सकता है।
उ. प्र. : सपा तैयार करती है साम्प्रदायिक जमीन
उत्तर प्रदेश में भाजपा की एकमात्र प्रमुख सहयोगी सपा की वकालत करने वाले लोग और उत्तर प्रदेश की जनता क्या सपा के गुण्डाराज को भी भूल गई है? क्या यह भी भूल गई है कि सपा के गुण्डों ने शोषितों की बहन सुश्री मायावती जी पर जानलेवा हमला किया था, जातिसूचक भद्दी-भद्दी गालियाँ देकर पूरे भारत देश और नारी समुदाय की अस्मिता को तार-तार कर दिया था? वही जातिवादी सपा जिसने प्रमोट हुए दलितों को डिमोट कर जहालत की जिन्दगी जीने को मजबूर कर दिया। सपा के गुण्डाराज में गुण्डों ने कैसे गरीब मजलूम कुम्हार, कहार, लोहार, धोबी, पासी, कुर्मी, नट, मुसहर आदि के साथ-साथ अन्य समुदाय के लोगों की जमीनों पर अवैध कब्जा किया?

वही सपा है जिसने कुर्मी समाज में जन्में छत्रपति शाहू जी महाराज के नाम पर बसपा द्वारा बनाये जिले और मेडिकल कॉलेज का नाम बदलकर छत्रपति शाहू महाराज के साथ-साथ देश के कुर्मी समाज का अपमान किया है। संत रैदास, मान्यवर साहेब, माता रमाबाई अम्बेडकर नगर जिले का नाम बदलने वाली सपा शोषितों की हितैषी कैसे हो सकती है? अम्बेडकर उद्यान की जमीन छीनने वाली, डॉ अम्बेडकर पार्क पर बुल्डोजर चलाने, बहनजी की प्रतिमा को तोड़ने वाली सपा क्या दलितों की हितैषी हो सकती है? सपा के चाल-चरित्र और उसके भाजपा के साथ मित्रता को आसानी से समझने के लिए यदि आप सपा खानदान पर गौर करें तो आधा सपा परिवार भाजपा में प्रत्यक्ष तौर पर शामिल है।
क्या दलित, मुस्लिम और पिछड़े यह भूल चुके हैं कि मुलायम सिंह यादव ने 2019 में लोकसभा में नरेंद्र मोदी को दुबारा प्रधानमंत्री के तौर पर देखने के लिए खुलेआम घोषणा किये थे। इसी का परिणाम था कि बसपा-सपा गठबंधन के बावजूद मुलायम सिंह यादव की जाति वालों ने बसपा उम्मीदवार को वोट करने के बजाय सीधे भाजपा को वोट किया जिसके परिणामस्वरूप गठबंधन विफल हो गया और भाजपा मुलायम सिंह यादव की इच्छा के अनुरूप केन्द्र में दुबारा सत्तारूढ़ हो गई। चुनाव परिणाम आने के बाद अखिलेश यादव को बसपा के साथ समीक्षा बैठक में होना चाहिए था परन्तु वे गठबंधन की समीक्षा बैठक को किनारे करके उ. प्र. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ बैठक कर रहे थे। नतीजा, मजबूरन बसपा को गठबंधन से अलग होना पड़ा।

ये वही सपा है जिसने भाजपा के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश को हिन्दू-मुस्लिम में बांटकर उत्तर प्रदेश की हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द को तहस-नहस कर दिया है। 1992 में उ. प्र. में भाजपा के लिए साम्प्रदायिक जमीन तैयार करने हेतु मुलायम सिंह यादव ने हिन्दू को उकसाने के लिए खुद कहते फिर रहे थे कि बाबरी मस्जिद पर परिन्दा भी पर नहीं मार सकता है। नादान मुस्लिम आज भी यही समझ रहा है कि मुलायम सिंह यादव ने बाबरी मस्जिद की रक्षा के लिए ऐसा बोला था जबकि मुलायम सिंह यादव ने हिन्दुओं को उकसाने के लिए ऐसा कहा था। नतीजन, हिन्दू तीव्र कट्टरता के साथ आगे बढ़ चला। परिणाम, बाबरी मस्जिद विध्वंस और नरसंहार के रूप में सामने आया।
इस पूरी घटना से हिन्दुत्व के नाम पर भाजपा स्थापित हो गई। नादान मुस्लिम समाज सपा का स्थायी वोटर मात्र बनकर रह गया। इसकी अगली कड़ी में, 2013 में, सपा सरकार के मुखिया अखिलेश यादव जब सैफाई में मुजरा और आर्केस्ट्रा का आनंद ले रहे थे उसी समय मुजफ्फरनगर जल रहा था। सरकार के पास पूरा तंत्र होता है। यदि अखिलेश यादव और उनकी सपा सरकार मुस्लिम समाज की हितैषी होती तो मुजफ्फरनगर दंगा कभी न होता क्योंकि बसपा ने अपने संविधान सम्मत शासन के जरिये यह स्थापित कर दिया है कि यदि सरकार कानून व्यवस्था को इमानदारी से लागू करने को ठान ले तो इस तरह के दंगे हो ही नहीं सकता है। परन्तु अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हेतु मुज़फ्फरनगर को दंगों के हवाले कर दिया।
दंगों के बाद भी, यदि सपा सरकार चाहती तो पलायन किये मुस्लिम समाज के लिए पुनर्वास की व्यवस्था कर सकती थी लेकिन उन्होंने ऐसा इसलिए नही किया ताकि मुजफ्फरनगर दंगों के घाव को ताजा रखा जा सके और चुनाव दर चुनाव इसको भुनाया जा सके। इस प्रकार इससे भाजपा को सत्ता मिल गई और सपा मुख्य विपक्षी की भूमिका में रहकर हिन्दुत्व की जमीन को मजबूत कर रहे हैं।
आज मुस्लिम समाज पूरी तरह से इनके षड्यंत्र का शिकार हो चुका है। इसलिए सपा को मुस्लिम समाज के लिए कुछ करने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि जब मुस्लिम समाज बिना कुछ किए ही सपा को लगातार वोट कर रहा है तो उसके लिए सपा कुछ भी सकारात्मक क्यों करेगी। बस, उ. प्र. में साम्प्रदायिक वातावरण बनाने की भाजपा द्वारा सौंपी गई अपनी जिम्मेदारी को सपा पूरी जिम्मेदारी से निभाती रहे, मुस्लिम खुद-ब-खुद सपा को वोट करता रहेगा। फिलहाल, सपा भाजपा द्वारा सौंपी गई उ. प्र. के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की जिम्मेदारी को पूरी सिद्दत से निभा भी रही है।
ऐसे में मुस्लिम समाज को यह समझना होगा कि मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव भी तो कट्टर हिन्दू ही हैं। इसलिए वे भाजपा के वैचारिक सहयोगी हैं। वे हमेशा हिन्दुत्व को ध्यान में रख कर भाजपा के लिए ही कार्य करते रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। इस तथ्य को मुस्लिम समाज जितनी जल्दी समझ जाय देश के लिए उतना ही अच्छा होगा।
फिलहाल, भाजपा को सत्तारूढ़ करने में नब्बें के दशक से लेकर आज तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव (सपा) की भी भाजपा ने हर मोड़ पर हर संभव मदद की है। भाजपा के समर्थन से ही 1989 में मुलायम सिंह यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। भाजपा की बदौलत ही मुलायम सिंह यादव 2003 में मुख्यमंत्री बने थे। मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव और उनके पूरे खानदान पर दर्जनों भ्रष्टाचार के मामले हैं। आय से अधिक सम्पति का मामला है। फिलहाल, सब ठंडे बस्ते में है क्योंकि इससे बचाने में भाजपा आज तक सपा खानदान की पूरी सिद्दत से मदद करती आ रही है। यही वजह है कि पूरा सैफई खानदान भाजपा के लिए हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण करने में पूरी तरह से समर्पित है।
याद रहे, उत्तर प्रदेश में सपा की सत्ता के बाद ही हमेशा भाजपा सत्ता में आती है क्योंकि सपा ने हमेशा से भाजपा के हित में सदैव से उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक जमीन तैयार करने का राष्ट्र विरोधी कार्य किया है। यदि मुस्लिम समाज इतिहास उठाकर देखें और सोचे कि सपा सरकार के बाद ही भाजपा सत्ता में क्यों आती है तो सौ फीसदी तय है कि मुस्लिम समाज सपा को छोड़ देगा। साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण खत्म हो जायेगा। भाजपा खुद-ब-खुद खत्म हो जायेगी। मतलब कि यदि मुस्लिम समाज भाजपा को खत्म करना चाहती है तो सबसे पहले सपा को खत्म करना होगा। स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में यदि सपा खत्म तो भाजपा खुद-ब-खुद खत्म।
फिलहाल, भाजपा को मजबूत करने में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव (सपा) के योगदान के मद्देनजर हरियाणा के पानीपत जिले के समालखा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपनी तीन दिवसीय (12-14 मार्च 2023) वार्षिक आम बैठक में मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि दी और उत्तर प्रदेश में हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण करने के लिए पूरी श्रद्धा से याद किया। साथ ही, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया है। क्या उत्तर प्रदेश का दलित, पिछड़ा और मुस्लिम समाज सपा और भाजपा के आंतरिक गठबंधन समझ पा रही है? यदि नहीं, तो मुस्लिम समाज, पिछड़ा वर्ग आगे भी सपा द्वारा ठगा जाता रहेगा और भाजपा सत्तारूढ़ होती रहेगी।
बिहार : भाजपा के लिए नीतीश कुमार प्रत्यक्ष तो लालू यादव सबसे बड़े अप्रत्यक्ष सहयोगी

यदि बिहार के तथाकथित सेक्युलरों की तरफ रूख किया जाय तो महत्वपूर्ण सवाल उठता है कि क्या देश यह भूल चुका है कि राजद खानदान (लालू यादव, राबड़ी, तेजश्वी यादव) के शासन में ही में ही लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार (1997) हुआ था जिसमे 58 दलितों को रणवीर सेना द्वारा निर्मम तरीके से कत्ल कर दिया गया था। नरसंहार को अंजाम रणवीर सेना ने दिया था। राबड़ी सरकार द्वारा केस इतना कमजोर किया गया कि हाईकोर्ट से सारे आरोपी बाईज्जत बरी हो गए। 1999 में शंकरबिगहा नरसंहार हुआ था जिसमे 22 दलितो का फिर नरसंहार कर दिया गया था। मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ही थी। लालू यादव (राबड़ी देवी) की सरकारों में दलितों पर हुए अत्याचारों की लिस्ट बहुत लम्बी है। अहम सवाल यह है कि ‘क्या शोषित समाज लालू यादव की सरकारों में हुए शोषण को भूल चुका है?’
इतना ही नहीं, यदि बिहार में लालू यादव द्वारा किए गए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की तरफ रूख करें तो यदि लालू यादव आडवाणी की रथयात्रा को सुरक्षित गुजरने देते तो यह सब चार दिन में लोग भूल जाते परन्तु जिस नाटकीय ढंग से लालू यादव द्वारा रथयात्रा को रोका गया इससे पूरे देश का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हो गया। मुस्लिम समाज लालू यादव को हितैषी समझने लगा। हिन्दुत्व के नाम पर भाजपा को बल मिला। नतीजा, इस साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण ने बिहार में पूरे मुस्लिम समाज को लालू यादव का एकमुश्त गुलाम व वोटर बना दिया। इस पूरे प्रकरण का ही परिणाम है कि बिहार में भाजपा लगातार मजबूत होती रही है।

भाजपा के साथ केन्द्र और राज्य की सरकारों में शामिल रहे नीतीश कुमार ने जब से भाजपा का साथ छोड़ दिया है तब से पैसा लेकर ट्वीट करने वाले दिल्ली के बिके हुए तथाकथित ब्रह्मण चिंतक, प्रोफेसरी के साथ-साथ हायतौबा करने वाले यूट्यबर पत्रकारों ने उनको सेक्युलर घोषित कर दिया है। फिलहाल, इससे नीतीश कुमार का काला इतिहास मिटने वाला नहीं है। देश को यह जानकारी होनी चाहिए कि नीतीश कुमार ने बिहार में न सिर्फ भाजपा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई बल्कि भाजपा के साथ सरकार बनाकर बिहार में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को मजबूत करने में लालू यादव और भाजपा का भरपूर साथ दिया है। नीतीश कुमार और लालू यादव की ही देन है कि आज भाजपा बिहार की सबसे मजबूत विपक्षी दल है। यदि कल भाजपा बिहार में आत्मनिर्भर तौर पर सत्तारूढ़ हो जाय तो किसी को आश्चर्य नही होना चाहिए।
सपा और राजद ने मुस्लिम कौंम को बदनाम किया
सपा ने एक तरफ़ साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिये हिन्दुत्व को मजबूत किया तो दूसरी तरफ़ अपराधियों एवं आसमाजिक तत्वों को पालने-पोषने का निकृष्ट कार्य किया है। इनके आपराधिक व असामाजिक तत्वों को पालने-पोषने की नीयत व नीति में बहुत से मुस्लिम समाज से ताल्लुक रखने वाले अपराधियों एवं असमाजिक तत्वों को भी संरक्षण मिला। वैसे तो इनकी नर्सरी में हिन्दू समाज के अपराधी भी हैं लेकिन ये सपा, राजद आदि हिन्दूवादी दलों संग जातिवादी मीडिया और हिन्दू समाज का कमाल है कि मुस्लिम अपराधियों के नाम से पूरी मुस्लिम कौंम बदनाम हो गई। यदि सपा और राजद जैसे दल संविधान सम्मत शासन प्रणाली को अपनाते तो अपराधिक व असामाजिक तत्व संसद और विधानसभा के बजाय सलाखों के पीछे होते और कौंम विशेष बदनाम होने से न सिर्फ बच जाती बल्कि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण खत्म हो जाता, भाजपा जैसे राष्ट्र विरोधी दल कभी सत्तारूढ़ नहीं हो पाते। अब मुस्लिम समाज को आत्मचिंतन करना होगा कि संविधान सम्मत शासन कौन स्थापित कर सकता है? संविधान सम्मत शासन स्थापित करने वाले दल के साथ सम्पूर्ण मुस्लिम समाज को एकसाथ, एकमुश्त पूरी प्रतिबद्धता एवं निष्ठा से कदम से कदम मिलाकर सत्ता की तरफ कूच करना होगा।
पश्चिम बंगाल : ममता बनर्जी ने भाजपा को किया स्थापित
गुमराहत में ममता बनर्जी की वकालत करने वाले लोग क्या इस बात को भूल गए हैं कि जिस पश्चिम बंगाल में भाजपा का वजूद तक नहीं था, उसी पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोट के लिए ममता बनर्जी ने मुस्लिम समाज में भाजपा का भय दिखा कर भाजपा को पश्चिम बंगाल का मुख्य विपक्षी दल बना दिया है। अब अहम सवाल यह उठता है कि क्या पश्चिम बंगाल की जनता ममता बनर्जी और भाजपा के इस आंतरिक साठगांठ को समझ पायी है?

ममता बनर्जी और भाजपा की जातिगत और मनुवादी समानता, उनकी मिलीभगत और मीडिया के जातिवादी चरित्र को रेखांकित करते हुए सुविख्यात समाज विज्ञानी प्रो विवेक कुमार (23 दिसम्बर 2020) सवाल पूछते हैं कि “क्या प्रगतिशल मीडिया और सोशल मीडिया ममता का यह सच जनता को बताएगा कि त्रिणामूल कांग्रेस (TMC) का गठन 1998 में हुआ। 1999 और 2004 में टीएमसी ने बीजेपी के साथ मिलकर (चुनाव से पहले : Pre-Poll Alliance) गठबंधन में चुनाव लड़ा। 2006 में ममता ने विधानसभा का चुनाव भी बीजेपी के साथ मिल कर लड़ा। 1999 में तो ममता बनर्जी बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में रेल मंत्री और 2004 में कोयला मंत्री भी रही हैं। परन्तु, आज वो सबसे बड़ी धर्मनिपेक्ष बताई जा हैं। फिर भी मीडिया, कुछ तथाकथित बहुजन बुद्धिजीवी, दलित और बहुजन हितैषी सोशल मीडिया नवीस इस पर कोई लेख नही लिख रहे हैं, और ना ही कोई टॉक शो ही कर रहे हैं। क्या इसलिए कि वो उच्च वर्णीय महिला है, और जैसे सभी उच्च वर्णीय लोगो के लिए अवसरवाद सामान्य प्रक्रिया है वैसे ही उनके लिए भी?’
मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवियों की दलित विरोधी मानसिकता के संदर्भ में प्रो विवेक कुमार (12 मार्च 2022) लिखते हैं कि ‘ममता बनर्जी ने गोवा में पहली बार चुनाव लड़कर 5.2% वोट लिया, कांग्रेस को 4 सीटों (बिनौलिम, नवेलिम, पोरवोरिम, तिविम) पर सीधे-सीधे नुकसान पहुंचा कर बीजेपी की सरकार बनवा दी परन्तु ममता को बीजेपी की ‘बी’ टीम क्यों नहीं कहा जा रहा है? यह जातिवादी मानसिकता नहीं तो और क्या है।’
ऐसे में देश की जनता को ममता बनर्जी, आरएसएस एवं भाजपा की आपसी सांठगांठ को पहचानने की जरूरत है। साम्प्रदायिक मामलों में प्रतिक्रिया करने के बजाय अपने मूल व सकारात्मक एजेण्डे वाले राष्ट्रीय बहुजन दल के साथ चलना होगा। अब अहम सवाल यही है कि क्या मुस्लिम कौंम ममता बनर्जी (टीएमसी) के चाल-चरित्र को पहचान पायेगा? क्या मुस्लिम समाज संविधान सम्मत शासन स्थापित करने वाले दल (बसपा) के साथ आयेगा?
डीएमके भी रही है भाजपा की सहयोगी

आज कल बाबासाहेब, मान्यवर साहेब के नाम पर टीआरपी, सब्सक्राइबर्स बटोर कर भारत के दलित, आदिवासी और पिछड़ों को गुमराह कर, उनको उनके सकारात्मक एजेण्डे से भटकाने वाले कुछ एसोसिएट प्रोफेसर जो एकैडमिक क्षेत्र में कम यूट्यूब की पत्रकारिता में ज्यादा लिप्त हैं, एढ्याग के टीचर जो पिछड़े वर्ग से आते हैं और पिछड़े वर्ग के बजाय चमारों और महारों को बहुजन आन्दोलन पर भाषण दे रहे हैं, पैसे लेकर ट्विटर, फेसबुक आदि पर साम्प्रदायिक, जातिवादी एजेण्डा चलाने स्वघोषित पत्रकार एवं ब्रह्मण मामलों के स्वघोषित विद्वान लोग मिलकर तमिलनाडु के मौजूदा मुख्यमंत्री एम. के.स्टैलिन को सेक्युलर बताकर जनता को गुमराह कर रहे हैं। क्या ये बिके हुए लोग जनता को यह बतायेंगे या फिर क्या जनता यह जानती है कि अटल बिहारी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनवाने में स्टैलिन की डीएमके पार्टी की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। क्या पिछड़े वर्ग को इस बात का इल्म भी है कि स्टैलिन की डीएमके पार्टी की इसी महत्वपूर्ण भूमिका के मद्देनजर डीएमके के सांसदों – मुरासोली मॉरन (वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, 1999-2002); टी आर बालू (पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, 1999-2004); ए राजा (ग्रामीण विकास मंत्रालय 1999-2000 तथा स्वास्थ्य एवं परिवार मंत्रालय 2000-2004) और एम कन्नाप्पन (नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय 1999-2004); को भाजपा ने अपनी केन्द्र की सरकार में मंत्री बनाया था।
भाजपा के साथ उसकी केन्द्र की सरकार में शामिल रही डीएमके पार्टी और उसके मुखिया को आज सेक्युलर घोषित किया जा रहा है। क्या पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक समुदाय और शोषित समाज, पैसा लेकर एजेण्डा चलाने वाले दिल्ली स्थित तथाकथित बहुजन चिंतकों को पहचान पा रही है? यदि नहीं तो इससे सीधा फायदा भाजपा और उसके मनुवादी एवं दलित विरोधी तथाकथित सेक्युलर दलों को ही मिलेगी और जनता लोग फिर उसी तरह से ठगी जायेंगी जैसे कि अभी तक ठगी जाती रही है।
भारत की जातिवादी मीडिया, दलित विरोधी लोगों के चाल-चरित्र एवं साम्प्रदायिक ताकतों को कटघरे में खड़ा करते हुए प्रो विवेक कुमार लिखते हैं कि ‘जैसे ही उ. प्र. में चुनाव की सुगबुगाहट भी होगी तो ये सब के सब बसपा सुप्रीमो पर टूट पड़ेंगे कि मायावती ने बीजेपी से मिल कर तीन-तीन बार सरकार बनाई। पता नही इनको ममता, नीतीश, नायडू, डीएमके, टीआरएस, अकाली दल आदि, जिन्होने समय-समय पर बीजेपी से मिल कर चुनाव लड़ा और सरकारें बनाई, मंत्रालय लेकर सत्ता भोगने वाले, धर्मनिरपेक्ष क्यों लगते हैं?
बहुजन समाज के लोगों को यह समझने की जरूरत है कि कैसे मीडिया और सोशल मीडिया पर भी लोग दलित-बहुजन राजनीति को टारगेट करते हुए बसपा के लिए अलग मापदंड रखते हैं और अन्य सभी पार्टियों के लिए अलग मापदंड रखते हैं।’
बहुजन विरोधी दुष्प्रचार करते हैं कि बसपा ने भी भाजपा के साथ सरकार बनाई है। जातिवादी मीडिया एवं तथाकथित बुद्धिजीवी लोग जनता को यह क्यों नहीं बताते हैं कि बसपा किसी के पास समर्थन मांगने नहीं गई थी बल्कि मुलायम सिंह के गुण्डाराज से त्रस्त कांग्रेस, कम्युनिस्ट आदि सभी दल एक साथ मान्यवर साहेब के पास आये और गुण्डाराज से मुक्ति की इल्तजा करते हुए बिना शर्त समर्थन देने के लिए तैयार हो गए। सरकार बनने के बाद बसपा ने उत्तर प्रदेश के सभी गुण्डों को जेल में कैद कर संविधान सम्मत शासन स्थापित कर उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश की राह की तरफ उन्मुख कर दिया।
जनता को लोग यह क्यों नहीं बताते हैं कि मान्यवर साहेब ने 19 जून 1995 को मुख्यमंत्री आवास, लखनऊ, पर बुलाई गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट कर दिया था कि पर ‘हमारी सरकार एक दिन चले या दो दिन चले, पर चलेगी बसपा की नीतियों, सिद्धान्तों और कार्यक्रमों के आधार पर।’ (A-LEF Series-1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन-सिद्धांत एवं सूत्र, पेज नंबर-155)
बहनजी ने कांग्रेस, भाजपा, कम्युनिस्ट, लोकदल आदि के बिना शर्त समर्थन पर सरकार बनायीं। संविधान सम्मत शासन, प्रशासन व अनुशासन को स्वतंत्र नीति के तहत अपनी शर्तों व सिद्धांतों के अनुरूप लागू किया। परन्तु जातिवादी मीडिया और तथाकथित बहुजन पत्रकार, बुद्धिजीवी ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी को जनता तक नहीं पहुंचाते है क्योंकि ऐसा करने के लिए इनको बसपा विरोधियों द्वारा भारी भुगतान मिलता है। ऐसे में बसपा के कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वे सच्चाई से पिछड़े, दलित, आदिवासी व अल्पसंख्यक समुदाय को अवगत करायें।
फिलहाल, ऊपर की विस्तृत चर्चा से यह तो स्पष्ट हो चुका है कि टीएमसी, सपा, राजद, जदयू आदि ने भाजपा के साथ मिलकर भारत का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण किया है। दलित, मुस्लिम और पिछड़ों का वोट लेकर उनको सुरक्षा देने के बजाय असुरक्षित वातावरण में धकेल कर इनका लगातार दोहन करने का काम किया है। ऐसे में तथाकथित सेक्युलर लोग देश को बांटने वालों में कौन सा भविष्य देख रहे हैं? जनता को यह याद रखना चाहिए कि ‘इन दलों का समर्थन करना या इनके गठजोड़ को सत्ता देना मतलब कि मनुवादी ताकतों को ही सत्तासीन करना है।’
स्पष्ट है कि यदि भाजपा सत्ताच्युत हो भी गई तो भी सत्ता में मनुवादी ही रहेगा। कितना हास्यास्पद है कि शोषित कौंम को जिनसे दूर रहने की जरूरत है, शोषित समाज के तथाकथित विद्धान और दिशाहीन भीड़ उन मनुवादियों की ही पैरवी कर रही है। नफरत एवं उन्माद में कैद शोषितों की भीड़ शासन सत्ता अपने हाथ में लेने के बजाय मनुवादियों के ही हाथों में सौंपने के लिए चीख रही है। ऐसे में इनके आपसी आंख-मिचौली में उलझ कर यदि शोषित वर्ग ध्रुवीकृत होता है तो भी सत्ता में ‘मनुवादी’ ही होगें।
निष्कर्षत:
यदि बाबासाहेब की विचारधारा को सत्ता में देखना चाहते हैं, संविधान सम्मत शासन व लोकतंत्र की मजबूती चाहते हैं तो मान्यवर साहेब और बहनजी द्वारा बनाई बसपा‘ के साथ खड़े हो जाओं, वोट करों, भारत का ‘अम्बेडकाराइजैशन‘ खुद-ब-खुद हो जायेगा। संविधान भी सुरक्षित हो जायेगा और लोकतंत्र भी मजबूत होगा। शिक्षा, शांति, समृद्धि, सुरक्षा का वातावरण होगा और विकास की धारा भी बहेगी। स्पष्ट है कि बसपा ही भाजपा का समुचित व न्यायपूर्ण विकल्प है।

अब जनता के पास भाजपा और बसपा ही दो विकल्प है। चुनाव जनता को करना है कि उसे भाजपा, कांग्रेस, सपा, राजद, जदयू, टीएमसी, डीएमके, आप आदि का साम्प्रदायिक देश चाहिए या बसपा का समतामूलक समाज चाहिए?
(यह लेखक के अपने विचार हैं)