भारत के इतिहास में कुछ ही व्यक्तित्व ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपनी दूरदृष्टि, दृढ़ संकल्प और समाज के प्रति समर्पण से युगों को प्रेरित किया। सुश्री मायावती जी, जिन्हें प्यार से “बहनजी” कहा जाता है, ऐसी ही एक अनन्य शख्सियत हैं। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की संस्थापक सदस्य के रूप में, उन्होंने न केवल सामाजिक समता और दलित उत्थान का पथ प्रशस्त किया, बल्कि स्थापत्य कला और ढांचागत विकास के क्षेत्र में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी। यमुना एक्सप्रेसवे से लेकर लखनऊ हाई कोर्ट के नए परिसर तक, उनकी परियोजनाएँ उनकी भव्य सोच, आधुनिक दृष्टिकोण और राष्ट्र के आर्थिक व सामाजिक उन्नति के प्रति उनके विजन का प्रतीक हैं। यह लेख विशेष रूप से लखनऊ हाई कोर्ट के नए परिसर के निर्माण में उनके योगदान पर केंद्रित है, जो उनकी स्थापत्य कला की उत्कृष्टता और आमजन के हित के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का जीवंत उदाहरण है।
बहनजी का स्वर्णिम युग
बहनजी का शासनकाल उत्तर प्रदेश के लिए एक स्वर्णिम युग था, जिसमें उन्होंने सामाजिक परिवर्तन, समावेशन और ढांचागत विकास के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किए। उनकी नीतियों और परियोजनाओं ने न केवल उत्तर प्रदेश को एक नई पहचान दी, बल्कि भारत के विकास के इतिहास में भी एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ा। उन्होंने राष्ट्र गौरव और महानायकों जैसे बाबासाहेब डॉ. बी.आर. अम्बेडकर और मान्यवर श्री कांशी राम साहेब आदि तमाम संतो, गुरुओं एवं महापुरुषों के नाम पर स्मारक, पार्क और योजनाएँ शुरू कीं, जो सामाजिक समता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बनीं। यमुना एक्सप्रेसवे, जो भारत का पहला एक्सप्रेसवे है, उनकी दूरदृष्टि का एक ऐसा प्रमाण है, जिसने उत्तर प्रदेश को आर्थिक उन्नति के पथ पर अग्रसर किया।
हालांकि, बहनजी के स्वर्णिम युग (शासनकाल) को वह सम्मान नहीं मिला, जो इसे मिलना चाहिए था। सामाजिक दुराग्रहों और राजनीतिक पूर्वाग्रहों ने उनके योगदानों को अक्सर पृष्ठभूमि में धकेल दिया। फिर भी, इतिहास साक्षी है कि उनकी परियोजनाएँ, जैसे लखनऊ हाई कोर्ट का नया परिसर, न केवल कार्यात्मक है, बल्कि भविष्य के लिए एक प्रेरणा भी है।
लखनऊ हाई कोर्ट का नया परिसर: बहनजी की दूरदृष्टि का साक्षी
हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच, जो इलाहाबाद हाई कोर्ट के अधीन कार्यरत है, का नया परिसर गोमतीनगर के विभूति खंड में स्थित है। इस भव्य और आधुनिक परिसर की नींव बहनजी के शासनकाल में 2010 में रखी गई थी। इस परियोजना को 2014 में पूरा हो जाना चाहिए था लेकिन बसपा की सत्ता हट जाने के कारण इस ऐतिहासिक परियोजना को पूरा होने में दो वर्ष का अधिक समय लग गया। हालांकि इसका औपचारिक उद्घाटन 19 मार्च 2016 को हुआ, जब बहनजी सत्ता में नहीं थीं, लेकिन इस परियोजना की डिजाइन, प्रारंभ, जमीन आवंटन, बजट व्यवस्था और निर्माण का प्रारंभिक चरण उनके नेतृत्व में ही पूरा हुआ। यह परिसर आज अपनी अत्याधुनिक सुविधाओं, पर्यावरण-अनुकूल डिजाइन और भव्यता के लिए जाना जाता है, जो बहनजी की स्थापत्य कला शैली और आमजन के हित के प्रति उनकी सोच को रेखांकित करता है।
बहनजी का निर्णायक योगदान
बहनजी का योगदान इस परियोजना को साकार करने में निर्णायक रहा। उनके योगदान को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
- परियोजना की शुरुआत और प्राथमिकता
बहनजी सरकार ने 2010 में लखनऊ हाई कोर्ट के नए परिसर के निर्माण को प्राथमिकता दी। यह परियोजना उनके प्रशासन के तहत लखनऊ को एक आधुनिक प्रशासनिक और न्यायिक केंद्र के रूप में विकसित करने की व्यापक दृष्टि का हिस्सा थी। उनकी यह सोच थी कि एक आधुनिक और सुगम न्यायिक ढांचा समाज में विश्वास और समता को मजबूत करता है। - जमीन आवंटन
बहनजी सरकार ने लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) के माध्यम से गोमतीनगर के विभूति खंड में लगभग 32 एकड़ जमीन का आवंटन सुनिश्चित किया। गोमतीनगर उस समय लखनऊ का तेजी से विकसित हो रहा क्षेत्र था, और इस प्रमुख स्थान का चयन उनकी दूरदर्शिता को दर्शाता है। यह निर्णय न केवल परिसर की पहुंच को सुगम बनाता है, बल्कि लखनऊ के शहरी विकास को भी गति देता है। - बजट और संसाधन
इस परियोजना के लिए सैकड़ों करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों और बजट की व्यवस्था बहनजी सरकार द्वारा की गई। उत्तर प्रदेश राज्य निर्माण निगम लिमिटेड (UPRNNL) और लोक निर्माण विभाग (PWD) को समयबद्ध तरीके से कार्य पूरा करने के लिए स्पष्ट निर्देश दिए गए। उनकी प्रशासनिक दक्षता ने परियोजना को गति प्रदान की। - आधुनिक और भव्य दृष्टि
बहनजी ने लखनऊ में कई भव्य और आधुनिक ढांचागत परियोजनाओं को बढ़ावा दिया, जैसे बाबासाहेब डॉ. बी.आर. अम्बेडकर और मान्यवर श्री कांशी राम साहेब आदि तमाम संतो, गुरुओं एवं महापुरुषों के नाम पर स्मारक। हाई कोर्ट का नया परिसर भी उनकी इस नीति का हिस्सा था। इसमें डिजिटल कोर्टरूम, हरित भवन मानक, और उन्नत सुरक्षा प्रणालियों जैसी सुविधाओं पर विशेष जोर दिया गया। यह परिसर न केवल कार्यात्मक है, बल्कि लखनऊ की वैश्विक पहचान को बढ़ाने वाला भी है। - प्रशासनिक समन्वय
बहनजी सरकार ने परियोजना के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के प्रशासनिक अधिकारियों और लखनऊ बेंच के न्यायाधीशों के साथ प्रभावी समन्वय स्थापित किया। उनकी सक्रियता ने निर्माण कार्य में तेजी लाई और बाधाओं को दूर किया।
परिसर की विशेषताएँ
लखनऊ हाई कोर्ट का नया परिसर आधुनिकता, पर्यावरण संरक्षण और कार्यकुशलता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- डिजिटल कोर्टरूम: ई-कोर्ट और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधाएँ, जो न्यायिक प्रक्रिया को त्वरित और पारदर्शी बनाती हैं।
- हरित भवन मानक: ऊर्जा संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण पर बल, जो इसे पर्यावरण-अनुकूल बनाता है।
- विशाल परिसर: वकीलों, पक्षकारों और कर्मचारियों के लिए बेहतर सुविधाएँ, जैसे पार्किंग, लाइब्रेरी और कैंटीन।
- सुरक्षा: उन्नत सुरक्षा प्रणालियाँ और सीसीटीवी निगरानी, जो परिसर को सुरक्षित और विश्वसनीय बनाती हैं।
बहनजी की स्थापत्य कला: भव्यता और उपयोगिता का समन्वय
बहनजी की स्थापत्य कला शैली में भव्यता और उपयोगिता का अनूठा समन्वय है। उनकी परियोजनाएँ न केवल सौंदर्य की दृष्टि से आकर्षक हैं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। लखनऊ हाई कोर्ट का नया परिसर इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने न्यायिक व्यवस्था को आधुनिक और कुशल बनाने की दिशा में सोच-विचार कर कदम उठाए। यह परिसर न केवल लखनऊ की शान बढ़ाता है, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश के लिए एक मिसाल प्रस्तुत करता है। उनकी यह सोच कि एक मजबूत ढांचागत विकास समाज और राष्ट्र को प्रगति की ओर ले जा सकता है, इस परियोजना में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
अनदेखा योगदान: सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियाँ
दुर्भाग्यवश, बहनजी के इस ऐतिहासिक योगदान को वह सम्मान नहीं मिला, जो इसे मिलना चाहिए था। इसके पीछे कई कारण हैं:
- मीडिया द्वारा ब्लैकआउट/ब्लैकमेल: बहनजी द्वारा निर्मित स्मारकों और जातिवादियों द्वारा उत्पन्न किए गए विवादों को मीडिया ने नकारात्मकता के साथ पूर्णतः कवरेज प्रदान किया, जिसके परिणामस्वरूप हाई कोर्ट नवीन परिसर जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य पृष्ठभूमि में धकेल दिए गए। मीडिया के जातिवादी चरित्र ने बसपा के गठन के प्रारंभ से ही इसके प्रति केवल नकारात्मकता का ही प्रसार किया। प्रारंभ में ब्लैकआउट और बाद में ब्लैकमेलिंग की रणनीति के कारण बहनजी को उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए वह सम्मान और मान्यता प्राप्त नहीं हो सकी, जिसकी वे सच्ची हकदार हैं।
- उद्घाटन का समय: परिसर का उद्घाटन सन् 2016 में संपन्न हुआ, किन्तु इस बीच उत्तर प्रदेश में बसपा के स्थान पर एक नई सरकार सत्ता में आ चुकी थी। परिणामस्वरूप, उद्घाटन तत्कालीन सरकार द्वारा किया गया और बहनजी के अमूल्य योगदान को सभी ने नजरअंदाज कर दिया, जो कि एक ऐतिहासिक अन्याय है।
- राजनीतिक पूर्वाग्रह: बहनजी की दलित पहचान और उनके प्रति मीडिया हाउसों का नकारात्मक व जातिवादी रुख उनके सकारात्मक योगदानों को कमतर दिखाने का कारण बना।
- प्रचार की कमी: बहनजी अथवा उनकी पार्टी ने इस परियोजना को, अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुरूप, व्यक्तिगत उपलब्धि के रूप में प्रचारित नहीं किया, जिसके फलस्वरूप यह मीडिया के विमर्श में उभरकर सामने नहीं आ सका।
- न्यायिक तटस्थता: जजों ने परियोजना को एक सामूहिक सरकारी प्रयास के रूप में देखा, न कि किसी एक नेता की उपलब्धि के रूप में, जिसके कारण बहनजी का नाम विशेष रूप से उल्लेखित नहीं हुआ। हालांकि उद्घाटन के समय इसका विस्तृत जिक्र किया जा सकता था।
लेकिन इतिहास इस बात का साक्षी है कि बहनजी ने इस परियोजना की संकल्पना की, इसकी नींव रखी और इसे मूर्त रूप प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। यद्यपि उनके योगदान को प्रायः उपेक्षित किया गया, तथापि उत्तर प्रदेश में उनके शासनकाल में निर्मित कार्यों की भव्यता, उत्कृष्टता, शैली और विशालता को देखकर कोई भी सहज ही यह अनुमान लगा सकता है कि ये कृतियाँ उनके नेतृत्व में ही साकार हुई हैं। बहनजी ने भव्य, विशाल और उत्कृष्ट निर्माण को एक विशिष्ट पहचान दी, जो आज एक ब्रांड के रूप में प्रतिष्ठित है। इस पहचान की विशेषता यह है कि लोग किसी भी भवन, स्मारक या इमारत को देखते ही समझ जाते हैं कि इसका निर्माण बहनजी के कुशल मार्गदर्शन में हुआ है। निस्संदेह, उनकी यह उपलब्धि समय के साथ और अधिक मान्यता प्राप्त करेगी। हमें पूर्ण विश्वास है कि इतिहास लखनऊ हाईकोर्ट के निर्माण हेतु महान विभूति बहनजी को कुछ इस तरह से ही याद करेगा:
अवध की पावन धरती, गोमती लहरें गाती हैं,
बहना ने स्वप्न सँजोए, जो इतिहास सजाती हैं।
न्याय का भव्य आलय, गोमती तट पर ठहरा,
बहनजी की दूरदृष्टि, संकल्प अमर, अटल, गहरा।
स्मारकों में भव्यता, एक्सप्रेस-वे की रफ्तार,
वंचितों के उत्थान को, समर्पित उनका संसार।
समय के स्वर्णिम पन्नों पर, अंकित है उनका नाम,
मायावती, भारत शिल्पी, सशक्त, अभिराम।
निष्कर्ष
बहनजी का लखनऊ हाई कोर्ट के नए परिसर के निर्माण में योगदान उनकी दूरदृष्टि, स्थापत्य कला के प्रति प्रेम और राष्ट्र गौरव के प्रति समर्पण का प्रतीक है। यह परियोजना न केवल न्यायिक व्यवस्था को सशक्त बनाती है, बल्कि भारत के स्थापत्य इतिहास में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। बहनजी को विश्व के महान स्थापकों में शुमार किया जाता है क्योकि उन्होंने अपने कार्यों से राष्ट्र के गौरव को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं। उनकी यह उपलब्धि हमें सिखाती है कि सच्चा नेतृत्व वह है, जो समाज के हर वर्ग के लिए समान अवसर और सुविधाएँ सुनिश्चित करे। लखनऊ हाई कोर्ट का नया परिसर इस बात का जीवंत प्रमाण है कि बहनजी ने न केवल दलित समुदाय के उत्थान और उनके इतिहास एवं संस्कृति को संरक्षित, सुरक्षित एवं संवर्धित करने हेतु कार्य किया, बल्कि समग्र समाज के विकास के लिए भी ऐतिहासिक कदम उठाए। इतिहास निश्चित रूप से बहनजी को इस भव्य और महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए याद रखेगा, और उनकी यह विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।
साथ ही, जातिवादी समाज की संकीर्ण दृष्टि ने भले ही बहनजी के स्वर्णिम शासन और उनकी स्थापत्य कला के वैभव को उपेक्षित किया, किंतु समय का चक्र सत्य को सदा उजागर करता है। उनकी दूरदर्शिता और संकल्प ने अवध की धरती को न केवल न्याय और समृद्धि का नया आलोक प्रदान किया, अपितु स्थापत्य कला के माध्यम से इतिहास के पन्नों पर अमर छाप अंकित की। आने वाले युग में विश्व निश्चित ही उनके योगदान को श्रद्धा और गौरव के साथ स्मरण करेगा। विशेष रूप से इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ का भव्य निर्माण और लखनऊ की नवीन भव्यता में उनका योगदान अविस्मरणीय है।
अवध की माटी गूँजे, गोमती तट सँवारे,
बहनजी के स्वप्न, इतिहास के रंग उभारे।
न्याय संस्थान खड़ा, लखनऊ गर्वित गाया,
इलाहाबाद खंडपीठ, उनका संकल्प सजाया।
जाति की दीवारों ने, उनके वैभव को ठुकराया,
किंतु समय साक्षी है, सत्य स्वयं उभर आया।
स्मारक, सड़क, सपने, वंचितों का उत्थान,
मायावती का यश, गाएगा सदा विश्व महान।
(लखनऊ खंडपीठ, इलाहाबाद हाईकोर्ट इलाहाबाद, दिनाँक – 21.04.2025)