किसी जन समुदाय पर गौर किया जाय तो किसी मुद्दे, एजेण्डे या विचारधारा को लेकर एक सामान्य पैटर्न देखने को मिलता है कि कितनी भी जनहित की बात क्यों ना हो 33℅ लोग पक्ष में (A ग्रुप), 33℅ खिलाफ में होते हैं (B ग्रुप) और 33℅ ऐसे होते हैं कि उनको कोई फर्क ही नहीं पड़ता है (C ग्रुप)। इन सबके बीच बाकी का 1℅ ही डिसाइंडिंग होता है (D ग्रुप)। इस D ग्रुप को कहानी सुनना अच्छा लगता है। इसको कहानी में मजा आना चाहिए, बस। जिसने इसको इसके मजे को ध्यान में रखकर कहानी सुना दी, वह विजयी है।
भारत में आज भी दो-तिहाई से ज्यादा लोग वोटिंग सिस्टम में भाग नहीं लेते हैं। मतलब कि सामान्य तौर पर कहा जाय तो चुनावी प्रक्रिया में सिर्फ ग्रुप A, B और D ही भाग लेते हैं। मतलब कि (33℅+33℅+1℅) 67℅ लोग ही चुनावी प्रक्रिया में अपनी भूमिका निभाते हैं। भारत निर्वाचन आयोग के मुताबिक़ लोकसभा आमचुनाव-2024 में राष्ट्रीय स्तर पर वोटिंग 65.79℅ रहा है जो कि इसी 67℅ के आस-पास है।
इससे एक बात और समझी जा सकती है कि ग्रुप C को कोई मतलब नहीं है कि कौन जीत रहा या कौन हार रहा है। किसकी सरकार है, कौन विपक्ष में हैं, इसको कोई फर्क नहीं पड़ता है। यह वर्ग वोट नहीं करता है। वोटिंग के दिन छुट्टी सेलिब्रेट करता है। इसलिए इसकी चर्चा करना समय की बर्बादी है। अब ऐसे में जब सम्पूर्ण समाज की स्थिति इतनी दैनीय हो तो वंचित समाज की स्थिति का सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है।
अब यदि स्वतंत्र अम्बेडकरवादी राजनीति की बात करें तो यही पैटर्न इस शोषित समाज पर भी लागू होता है। अब इस महौल में आत्मनिर्भर तौर पर, भारत जैसे विषमतावादी व जातिवादी देश में वंचित समाज की विचारधारा पर आधारित आत्मनिर्भर राजनीति कितनी कठिन होती है उसका जीता-जागता उदाहरण बसपा की मौजूदा स्थिति से जाहिर होता है। बसपा की डगर अगर कठिन है तो यकीनन आत्मनिर्भर बहुजन राजनीति की राह कठिन है। मतलब बाबासाहेब के मिशन की राह कठिन है।
आज बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर की चर्चा कुछ ज्यादा जरूर है लेकिन बाबासाहेब की वैचारिकी आधारित राजनीति कमज़ोर पड़ी है। इसके लिए संगठनात्मक व संरचनात्मक खामियां हो सकती हैं लेकिन यह सच है कि शोषित समाज में अम्बेडकरी विचारधारा से जुड़ाव रखने वाले लोगों की तादाद भी काफी 33℅ से नीचे चली गई है। जो लोग इस 33℅ फीसद में से भटके हैं वे 1℅, जिसे कहानी सुनना पसंद है, के साथ जुड़े हैं। इस प्रकार 33℅ विरोध वाले ग्रुप और 1℅ कहानी सुनने वाले ग्रुप (+अम्बेडकरवाद से भटका समुदाय) ने मिलकर आज अम्बेडकरवादी आत्मनिर्भर राजनीति को हासिये पर धकेलने में लगा हुआ है।
इन सबके बीच, पिछले दो दशक में कहानी सुनने वाले ग्रुप D में घातांकीय इजाफा हुआ है। ये ग्रुप 1℅ से काफी ज्यादा बढ़ चुका है। यही कारण है कि स्वतंत्र विचारधारा वाले दल (बसपा) हासिये पर हैं और बिना वैचारिक जमीन वाले दल सत्ता में हैं या सदन में।
ग्रुप D में हुए इजाफे को इस बात से भी समझा जा सकता है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की, बंगाल में टीएमसी की, बिहार में जदयू और राजद की, उड़ीसा में बीजेडी की, उत्तर प्रदेश में सपा की, कई राज्यों व केन्द्र में कांग्रेस की कोई आत्मनिर्भर विचारधारा नहीं है लेकिन वो या तो सत्ता में हैं या फिर विपक्ष में। इसका मतलब है कि बहुतायत आबादी ग्रुप A से निकलकर ग्रुप D का हिस्सा बन रही है। इस प्रकार ग्रुप ग्रुप B वाले, जो कि पहले से अम्बेडकर विरोधी है, ग्रुप D के साथ मिलकर या तो सत्ता में हैं या फिर सदन में।
अब यदि उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश की तरफ़ नजर डालें तो स्पष्ट है कि ग्रुप A में 9℅ लोग हैं जो अम्बेडकर की स्वतंत्र राजनीति के पैरोकार हैं। ग्रुप B 33℅ जबकि ग्रुप D (1℅+24℅) 25℅ हो चुका है। और, अब उत्तर प्रदेश में देखा जाय तो आज की तारीख में अम्बेडकर के साथ 9℅ लोग हैं तो अम्बेडकर के खिलाफ, अम्बेडकर, संविधान और लोकतंत्र के नाम पर बहकने और इनकी तिजारत करने वाले दलों के साथ वालों की तादाद 58℅ है। मतलब कि बाबासाहेब को जानने और उनके नाम की तिजारत करने वालों और उनके नाम पर भटकने वालों की तादाद बढ़ी है परन्तु बाबासाहेब की स्वतंत्र वैचारिकी पर चलने वालों की तादाद तेजी से घटी है। ऐसा कहना ज्यादा उचित होगा कि आज बाबासाहेब को जानने वाले ज्यादा हैं परन्तु मानने वाले बहुत कम। मतलब कि आज ग्रुप A में कम लोग बचे हैं जिनकी तादाद उत्तर प्रदेश में 9℅ तक आ चुकी है। यही वजह है कि आज उत्तर प्रदेश की विधानसभा और लोकसभा के संदर्भ में देखिये तो यही 58℅ फीसदी वाले या तो सत्ता में हैं या फिर सदन में।
अब ग्रुप A वालों की जिम्मेदारी बनती है कि वे इस ग्रुप A से निकल कर ग्रुप D में शामिल लोगों फिर से बाबासाहेब के मिशन और आन्दोलन से जोड़ते हुए ग्रुप A को 33 ℅ तक ले जायें। यह कार्य जितनी जल्दी हो जाता है बाबासाहेब के मिशन को आगे बढ़ने में उतनी ही आसानी होगी।
फिलहाल, अब आम लोगों को भी सोचना होगा कि आप किसके साथ हैं, आपने लोकसभा आमचुनाव-2024 में किसका साथ दिया, आपने जिसका साथ दिया क्या वे अम्बेडकर, संविधान और लोकतंत्र को सचमुच मानते हैं या फिर इनके नाम पर आपको ठग लिया? क्या बहुजनो नायकों के नाम पर बने जिले, संस्थानो, अस्पतालों, विकास कार्यकर्मों को मिटाने वाले, मंडल कमीशन का विरोध करने वाले, बाबासाहेब को भारत रत्न ना देने वाले और मान्यवर साहेब के महापरिनिर्वाण पर एक भी दिन का राष्ट्रीय अवकाश घोषित ना करने वाले लोग बहुजन समाज के कभी हितैषी हो सकते हैं? या क्या कभी ये बाबासाहेब, मान्यवर साहेब और बहनजी के एजेंडे को समझ कर उस पर कार्य कर सकते हैं? यह सब आपके आत्ममंथन का विषय है।
— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)