आकाश नहीं, आगाज़ है: बहुजन आंदोलन का नवोदय और बसपा का संकल्प
एक नई सुबह का संकेत
“आकाश नहीं, आगाज़ है। देश की आवाज़ है।” यह पंक्तियाँ केवल शब्दों का संयोजन नहीं, बल्कि एक संपूर्ण इतिहास, संघर्ष और आशा की गाथा का प्रतीक हैं। भारतीय समाज के शोषित वर्गों का स्वर, जो सदियों से दबाया गया, आज बहुजन आंदोलन के रूप में एक नवीन प्रभात की ओर अग्रसर है। यह आंदोलन न तो क्षणिक उन्माद है, न ही सत्ता की अंधी दौड़; यह एक समतामूलक समाज के सृजन का वह संकल्प है, जिसकी नींव राष्ट्रपिता ज्योतिबा फूले ने रखी थी और जिसे समय-समय पर छत्रपति शाहूजी महाराज, बाबासाहेब आंबेडकर, मान्यवर कांशीराम और परम आदरणीया बहनजी ने संवारा। आज यह गाथा लोकनायक आकाश आनंद के नेतृत्व में एक नए युग का सूत्रपात कर रही है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: नेतृत्व का संकट और परिणाम
इतिहास साक्षी है कि ज्योतिबा फूले ने ‘सत्य शोधक समाज’ के माध्यम से सामाजिक सुधार का जो बीज बोया, वह समता और न्याय का प्रतीक बना। किंतु उनके महापरिनिर्वाण के पश्चात् उत्तराधिकारी के अभाव में यह संगठन बिखर गया और 1930 में कांग्रेस के षड्यंत्र ने इसके अवशेषों को भी अपने में विलय कर लिया। इस कमी को राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज ने पहचाना और फूले की वैचारिकी को आगे बढ़ाते हुए बाबासाहेब आंबेडकर को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। 1920 की ‘माड़ गाँव परिषद’ में शाहूजी ने बहुजन आंदोलन को एक मजबूत आधार प्रदान किया। बाबासाहेब ने इस विरासत को संविधान निर्माण, बौद्ध धम्म और सामाजिक-आर्थिक क्रांति के माध्यम से नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। किंतु उनके महापरिनिर्वाण से पूर्व उत्तराधिकारी की घोषणा न होने से उनकी ‘रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया’ (आरपीआई) और स्वतंत्र बहुजन राजनीति कांग्रेस के हाथों नष्ट हो गई।
पुनर्जनन: मान्यवर और बहनजी का योगदान
जब बहुजन आंदोलन और उसकी आत्मनिर्भर राजनीति इतिहास के पन्नों में दफन होने की कगार पर थी, तब मान्यवर कांशीराम और परम आदरणीया बहनजी ने इसे पुनर्जनन का वरदान दिया। ‘फूले-शाहू-आंबेडकर’ की वैचारिकी को पुनर्जनन देकर, बहुजन समाज को उसकी पहचान, संस्कृति और इतिहास से जोड़ा गया। मान्यवर ने देखा कि नेतृत्व का अभाव आंदोलन को कैसे नष्ट कर सकता है। जहाँ फूले और आंबेडकर के बाद कांग्रेस ने उनकी विरासत को कुचल दिया, वहीं शाहूजी के उत्तराधिकार ने इसे जीवित रखा। इस सबक को आत्मसात करते हुए मान्यवर ने अपने जीते-जी बहनजी को उत्तराधिकारी घोषित कर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को एक अटूट ढाल प्रदान की।
वर्तमान चुनौतियाँ और बहनजी का दूरदर्शी कदम
आज पुनः कांग्रेस और उसके सहयोगी बसपा को कमजोर करने के लिए षड्यंत्र रच रहे हैं। गोदी मीडिया, यूट्यूब चैनल्स और क्षेत्रीय दलों के चमचों के माध्यम से बहुजन समाज को गुमराह करने का प्रयास हो रहा है। इस नाजुक मोड़ पर बहनजी ने मान्यवर के मार्ग का अनुसरण करते हुए लोकनायक आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। यह निर्णय केवल एक घोषणा नहीं, बल्कि बहुजन आंदोलन और स्वतंत्र राजनीति को सुरक्षित करने का एक ऐतिहासिक कदम है। बहनजी ने आकाश आनंद को पहले देश भर में जन-जन तक पहुँचाया, उनकी रैलियों और साक्षात्कारों के माध्यम से उनकी प्रतिभा को उजागर किया। फिर, एक रणनीतिक कदम में, उनकी थोड़ी-सी अपरिपक्वता को अवसर में बदलते हुए उन्हें चुनाव के बीच से हटाकर उनकी माँग को बढ़ाया। आज आकाश आनंद ‘लोकनायक’ बन चुके हैं, और बसपा एक सशक्त भविष्य की ओर अग्रसर है।
निष्कर्ष: बहुजन समाज की जिम्मेदारी और भारत का नवनिर्माण
आकाश आनंद के नेतृत्व में बहुजन आंदोलन एक नए आगाज़ की ओर बढ़ रहा है। किंतु यह यात्रा केवल नेतृत्व की सफलता पर निर्भर नहीं; बहुजन समाज की एकता और जिम्मेदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। ‘फूले-शाहू-आंबेडकर’ की वैचारिकी को नवीन, सकारात्मक और रचनात्मक दिशा देकर, बसपा को मजबूत करना अब समाज का कर्तव्य है। यह वह समय है जब बहुजन समाज को अपनी सत्ता स्थापित कर, भारत राष्ट्र निर्माण में नए कीर्तिमान गढ़ने होंगे। यह आकाश नहीं, बल्कि एक आगाज़ है—देश की उस आवाज़ का, जो समता और न्याय का स्वप्न साकार करेगी।