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Saturday, December 21, 2024

जयंति विशेष: माता रमाबाई के त्याग और समर्पण को बंया करती एक शानदार कविता ‘माता रमाबाई’

Ramabai Ambedkar: रमाबाई अम्बे‌ड़कर, जिन्हे प्यार और सम्मान से लोग माता रमाबाई और मां रमा भी कहते हैं, का जन्म महाराष्ट्र के एक गांव दाभोल में 07 फरवरी 1898 को हुआ था. माता रमाबाई के पिता का नाम भीकू धात्रे और माता का नाम रुक्मिणी था. इनका विवाह विश्व रत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बे‌ड़कर से हुआ. जिन्होने भारत में रहने वाले वचितों और अछूतों के मानवीय हक-अधिकारों की लड़ाई लड़ी और उन्हे वास्तविक आजादी दिलाई.

डॉ भीमराव अम्बेड़कर को बाबासाहेब बनाने में माता रमाबाई का अहम योगदान है और पूरा बहुजन समाज उनके इस बलिदान के कारण ही आज समानता का जीवन जीने का लुत्फ ले पा रहा है. उनके योगदान को सिर्फ शब्दों से बयां नही किया जा सकता है. फिर भी रचनाकार ‘बुद्ध प्रकाश बौद्ध’ जी ने अपनी लेखनी के माध्यम से माता रमाबाई के जीवन संघर्ष को शब्दों में पिरोने का काम किया है. पेश है आपके लिए उनके द्वारा रचित कवित ‘माता रमाबाई’ …

करें भलाई जिंदगी, मरें नहीं उपकार ।
यशोधरा बाई रमा, आज मात संसार ।।1

पिता करोंड़ो के बने, बाबा साहब आप ।
मात रमा पीछे नहीं, पड़ी आपकी छाप ।।2

यशोधरा यदि रोकती, रहती अगर विरुद्ध ।
मिले मौत सिद्धार्थ ही, नहीं जगत को बुद्ध ।।3

रमा मार करती अगर, माँग नहीं जब पूर ।
भीम न पढ पाते कभी, फिर कैसे मशहूर ।।4

सावित्री बाई फुले, पति सह सबहित जान ।
बिना जनें जननी जगत, अनगिनती संतान ।।5

शेख फातिमा मात सब, नहीं धर्म दीवार ।
भ्रात जगत उस्मान ही, परहित ही दीदार ।।6

जन्म दिवस माता रमा, नमन करूँ हर बार ।
बाबा का सहयोग अति, आज सुखी संसार ।।7

मात रमा उर सब बसी, नमन करे संसार ।
जीवन भर संघर्ष जग, झुकने से इनकार ।।8

पत्नी कैसे हो जगत, इसकी बनी मिसाल ।
सेवा करती पति सदा, कन्धा साथ बहाल ।।9

नहीं माँग जीवन कभी, गहना कपड़ा ध्यान ।
पति इज्जत करती रही, क्रोध रहा ही म्यान ।।10

पति पढते परदेश पर, पत्नी नही किवांड़ ।
गोबर उपला बेचकर, भोजन रोज जुगाड़ ।।11

चारों बच्चे मौत मुख, जाते दवा अभाव ।
नीर नयन पीती सदा, नहीं बात ही ताव ।।12

खुद फाँके करती रही, पैसे भेज विदेश ।
पति भूखा सोए नही, दिया सदा निर्देश ।।13

दुखड़े अपने सब छिपा, करती जग संघर्ष ।
किया परिश्रम रात दिन, होए पति उत्कर्ष ।।14

पगड़ी साड़ी बन गई, छुप दर्शन पति मान ।
नयन नीर बाबा बहुत, देख त्याग बलिदान ।।15

पत्नी वह समझे सभी, पति मन सब उद्गार ।
पुत्र कफन को धन नहीं, फटती साड़ी नार ।।16

मात रमा करता नमन, आज दलित संसार ।
बिना आप सहयोग के, भीम न सागर पार ।।17

माता पत्नी में अधिक, दिखता नारी त्याग ।
सुत साजन आकाश में, जागे उनका भाग ।।18

माता पत्नी मे बहुत, दिखा त्याग बलिदान ।
सुत साजन सो सूरमा, सुनो शोक दिनमान ।।19

त्याग मूर्ति माता रमा, आज नाम आकाश ।
नत मस्तक श्रृद्धा सुमन, देता बुद्ध प्रकाश ।।20

(रचनाकार: बुद्ध प्रकाश बौद्ध जिला – सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश)

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