फूलन देवी के शहादत दिवस पर कवि बुद्ध प्रकाश बौद्ध जी ने अपनी कविता के माध्यम से फूलन देवी को नमन किया है. उनकी पूरी यात्रा को उन्होने चंद शब्दों में पिरो दिया है. आइए सुनते है उनकी यह शानदार और प्रेरणादयक रचना…
नारी गौरव फूलन बौद्ध को सादर नमन
आग धधकती जो सीने मे, उस को रहा बुझाना था ।
बहे अश्रु जो सदा जिंदगी, उनको तभी सुखाना था ।।
नहीं कभी भी डरी जगत मे, नहीं ह्रदय मे सोना था ।
दुर्ग तोड़ती सामन्तों का, उन्हें अधिक अब रोना था ।।1
क्रोध पालना अब तक आया, नहीं सहन अब होता ।
बर्फ बन चुका अतिशय जीवन, रहे धैर्य अब खोता ।।
क्रोध तरंगित अक्सर ज्यादा, हिलती मन की भीती ।
घृणा अधिक प्रति बढती जाती, भूल गयी जो प्रीती ।।2
घृणा बुलबुला कब फूटेगा, नहीं पता कुछ मुझको ।
फूट गया तब बचना मुश्किल, घायल होना सबको ।।
बेशरमों को नहीं फर्क अति, मिटता दिखता सीधा ।
जहर गन्दगी उनके भीतर, मृतक दिखे खुश गीधा ।।3
बहुत दुखाया जग दिल मेरा, सूख चुके सब आँसू ।
कैसे लूँ सब बदला उनसे, खुशी ताकि अति धाँसू ।।
अत्याचारी सबक सिखाना, ताकि नहीं जग दूजा ।
व्यभिचारी सब लगें ठिकाने, नहीं फूल खल पूजा ।।4
खुला सिंहनी जबड़ा जिसदिन, बाइस लाशें दिखती ।
पूरा बदला हुआ जगत जो, खुशी देख खल तिखती ।।
नीच जगत सब थर थर काँपे, सज्जन दिखी भलाई ।
नहीं डकैती कभी सभ्य जन, दुर्जन अधिक खिंचाई ।।5
आत्मसमर्पण करती फिर वो, जेल रही वो जाती ।
नीच सभी घर बाहर निकले, ज्यों मेंढक बरसाती ।।
निकल जेल जब संसद पहुँची, फूली दुर्बल छाती ।
दीक्षा भूमि पहुँच जल्द वह, दीक्षित हो घर आती ।।6
सीध न होती पूँछ श्वान जग, चाहे नलकी राखो ।
पागल रहता तब हो सीधी, ठीक नही हों लाखो ।।
बिन भौंके ही हमला करते, जब मानव बेध्यानी ।
लिया काट फूलन घर वापस, वीर गती मरदानी ।।7
नमन रहूँ फूलन सदा, महिला शक्ति प्रतीक ।
अत्याचारी खुद दमन, चली तोड़ कर लीक ।।
(रचनाकार – बुद्ध प्रकाश बौद्ध)