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Saturday, April 19, 2025

किस्सा कांशीराम का #14: यदि सब चमार नौकर बनकर सरकार की सेवा में ही लगे रहे तो अपने समाज की सेवा कौन करेगा?

...मैं भी कभी नौकरी करता था, और आप भी नौकरी कर रहे हो. यदि सारे चमार पढ़-लिखकर नौकरियाँ ही करते रहे या सरकारों की सेवा में ही लगे रहे तो अपना समाज जो हर क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है, उस समाज की सेवा कौन करेगा?

किस्सा कांशीराम का: बात 1975 की है. मान्यवर साहेब कांशीराम के एक साथी थे, शिव धीर, जो दिल्ली परिवहन में बस कैंडेक्टर थे. उन दिनों साहेब लगभग प्रतिदिन बस में सफ़र करके आंदोलन का काम करते थे और अख़बारों के दफ़्तरों में प्रेस नोट देने जाते थे.

शिव धीर की बस में जब भी साहेब बैठे शिव धीर ने उनसे किराया नहीं लिया. साहेब के साथ उसकी अच्छी खासी पहचान हो गई थी. शिव और साहेब आंदोलन की बातें साझा किया करते.

एक रोज़ शिव ने साहेब को हरभजन लाखा के बारे में बताया. लाखा पंजाब के करनाणा के एक गाँव से थे और अब दिल्ली में निवास करते थे. साहेब को लाखा से मिलना उपयोगी लगा.

शिव धीर साहेब को अपने चेतक स्कूटर पर बैठाकर लाखा के घर ले गए जहाँ हरभजन लाखा के छोटे भाई शिंगारा राम लाखा (जिसे साहेब ने आगे चलकर उत्तरप्रदेश का केन कमिश्नर लगाया था) भी मौजूद थे.

साहेब ने बात शुरू की. ‘‘लाखा जी, आप क्या करते हो?’’

“मैंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की है और अब बेंगलुरु में एयर फ़ोर्स में नौकरी करता हूँ.” लाखा ने जवाब दिया.

लाखा जी, मैं भी कभी नौकरी करता था, और आप भी नौकरी कर रहे हो. यदि सारे चमार पढ़-लिखकर नौकरियाँ ही करते रहे या सरकारों की सेवा में ही लगे रहे तो अपना समाज जो हर क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है, उस समाज की सेवा कौन करेगा?

हर तरफ़ अपने लोगों पर अन्याय हो रहा हैं. अपने समाज की औरतों की आबरू पर हाथ डाला जाता है. न ही कोई अपील सुनी जाती है और न ही कोई दलील. फिर आजादी की यह तीसरी लड़ाई आपके बिना कौन लड़ेगा?”

साहेब ने आगे कहा, “ मैं वर्षों महाराष्ट्र में लगाकर और फेल होकर दिल्ली आया हूँ और अब आप जैसे साथियों के सहयोग से बाबासाहेब अम्बेडकर के आंदोलन को पूरे उत्तर भारत में फैलाना चाहता हूँ. न घर से कोई पैसा लेना है और न ही कोई पैसा देना है. अपने लोगों में जाकर सिर्फ़ इतना ही कहना है कि आप हमें खाने के लिए रोटियाँ दे दो और हम आपके हिस्से की लड़ाई लड़कर इन काले अंग्रेजों से अपने समाज को आज़ादी लेकर देंगे.”

और भी बहुत सी बातें हुईं. साहेब की गंभीर बातें सुनकर लाखा ने उसी वक़्त नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और पूरी तरह साहब के साथ आंदोलन में समर्पित हो गए.

याद रहे, वे लाखा ही थे जिन्होंने भारतीय संसद में सरेआम कहा था कि, “जुगराज सिंह तूफ़ान अगर आतंकवादी होता तो उसके शहीदी समागम में 5 लाख से भी अधिक लोग पहुँचते?”

यहाँ ये भी बता दें की जुगराज सिंह तूफ़ान मात्र 19 वर्ष की उम्र में पुलिस के हाथों शहीद हुए थे. वजह ये थी की साल 1984 में इंदिरा गांधी के आदेश पर दरबार साहेब (अमृतसर) पर हमला सहा नहीं गया. वे अन्याय के ख़िलाफ़ उठखड़े हुए और शहीद हो गए. मीडिया और सरकार ने बहुत उछाला की जुगराज सिंह तूफ़ान एक आतंकवादी है.

लाखा आगे चलकर 1989 और 1996 में, पंजाब की फ़िल्लौर लोकसभा चुनाव क्षेत्र से सांसद रहे. समाज के लोगों ने उन्हें ‘बाबा बोहड़’ यानी बरगद के वृक्ष जैसा मज़बूत व्यक्ति के ख़िताब से नवाज़ा.

बिना मज़बूत संगठन के कोई भी लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती – साहेब कांशीराम

#kissakansiramka

— दैनिक दस्तक —

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