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Saturday, April 19, 2025

कविता: उम्मीदों का आकाश

उम्मीदों का आकाश

उम्मीदों का आकाश उठा,
एक नया सूरज चमक पड़ा।
वंचितों की आँखों में सपने,
हर दिल में हौसला खड़क पड़ा।

तेज़ हैं, तर्रार हैं,
शोषितों की ललकार हैं।
बाबासाहेब के वैचारिक वारिस,
संघर्षों की तलवार हैं।

मान्यवर साहेब, बहनजी के शिष्य,
अब लिखेंगे नया अध्याय।
फिर से हर जन-जन खुशहाल होगा,
गूँजेगा बहुजन स्वाभिमान का गान।

सबको मिलेगा शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास,
हर सपना साकार होगा।
 संविधान का दीप जलाकर,
नया बहुजन युग तैयार होगा।

लेकर आए हैं आकाश,
इक नई रोशनी, नया विश्वास।
अब रुकेगी नहीं ये क्रांति की धार,
बढ़ेगा बस समता का उजास।

(रचनाकार – दीपशिखा इन्द्रा, 04-02-2025, 9:11 AM )

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