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Saturday, December 21, 2024

Ambedkarnama #03: गुलाम को गुलामी का एहसास करा दो तो वह विद्रोह कर उठेगा, बाबासाहेब ने ऐसा क्यों कहा था?

बाबासाहेब अंबेडकर का मिशन रोटी, कपड़ा और मकान तक सीमित नहीं था. बल्कि मान-सम्मान, स्वाभिमान अर्थात आत्मसम्मान के लिए ज्यादा था. बाबासाहेब इस संदर्भ में कहते थे कि अपमान भरी 100 वर्ष की जिंदगी जीने से सम्मानपूर्वक केवल 2 दिन जिंदगी जीना बेहतर है.

Ambedkarnama: इंसान की बुनियादी आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा और मकान ही नहीं बल्कि कुछ और भी हैं. यदि रोटी, कपड़ा और मकान ही इंसान की बुनियादी आवश्यकता होती तो फिर प्रतिवर्ष हजारों ऐसे लोग आत्म हत्या क्यों कर लेते हैं जिनकी रोटी, कपड़ा, मकान की कोई समस्या नहीं होती है?

वास्तविकता यह है कि रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा कुछ अन्य भी है जो इंसान के लिए सबसे महत्वपूर्ण है और वो है इज्जत, मान-सम्मान, स्वाभिमान अथवा आत्म-सम्मान.

इस सम्बंध में बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था कि मुर्दा केवल वह नहीं जो मर गया, एक मुर्दा वह भी है जिसका जीवित रहते हुए आत्मसम्मान मर गया.

बाबासाहेब अंबेडकर का मिशन रोटी, कपड़ा और मकान तक सीमित नहीं था. बल्कि मान-सम्मान, स्वाभिमान अर्थात आत्मसम्मान के लिए ज्यादा था. बाबासाहेब इस संदर्भ में कहते थे कि अपमान भरी 100 वर्ष की जिंदगी जीने से सम्मानपूर्वक केवल 2 दिन जिंदगी जीना बेहतर है.

विदेशी मूल के आर्य लोगों ने भारत के मूलनिवासियों को गुलाम बनाने के बाद सबसे पहले बेरोजगार बनाया और कहा कि तुम्हें कुछ भी करने की जरूरत नहीं है. तुम लोग हमारी सेवा करते रहो एवं सेवा के बदले में तुम्हें खाने को रोटी और तन ढकने को कपड़ा हम देंगे. धीरे-धीरे पूरा शोषित समाज आर्यों की सेवा में लग गया और बदले में रूखा-सूखा भोजन एवं फटे पुराने कपड़े मिलने लगे. जिससे पूरा समाज लाचारी वाला जीवन बिताने लगा. पेट की भूख बहुत बुरी होती है क्योंकि इसी पर जीवन टीका हुआ रहता है और कोई भी जीव आसानी से मरना नहीं चाहता है. इसलिए, शोषित समाज भी अपना जीवन बचाने के लिए आर्यों का दास बन गया और दास तथा गुलाम के लिए इज्जत, मान-सम्मान, स्वाभिमान अथवा आत्म-सम्मान लागू नहीं होता है.

आज भी ये विदेशी आर्य शोषित समाज को दास और गुलाम की नजरों से ही देखते हैं. तभी तो मूल निवासियों को रोटी, कपड़ा, मकान में ही उलझाये रखना चाहते हैं. ये लोग नरेगा में मिट्टी उठाने वाले रोजगार की गारंटी योजना तो चलाना चाहते हैं लेकिन सरकारी नौकरी के लाखों पद जान बूझकर खाली रखते हैं. ये लोग लाल पीला कार्ड बनाकर सस्ता अनाज तो देना चाहते हैं लेकिन अनाज पैदा करने के लिए खेती नहीं देना चाहते हैं. बल्कि जिनके पास थोड़ी सी भी खेती है उसे भी छिनने की योजना बनाते रहते हैं.

(लेखक: रमेश गौतम, धम्म प्रचारक)

— Dainik Dastak —

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