Shanti Swaroop Bauddh: इतिहास निर्माण की अपनी एक गति तथा दिशा होती हैं जिसमें सामान्यतः व्यक्ति बहुत महत्वपूर्ण नहीं होते, लेकिन कुछ व्यक्ति अपने विशेष व्यक्तित्व से इतिहास निर्माण की प्रक्रिया में अपना विशेष योगदान देकर इस प्रक्रिया को गति प्रदान कर देते है, और उस समय विशेष पर अपनी अमिट छाप छोड़ देते हैं. इन्हीं लोगों की गिनती हम महान लोगों में करते हैं.
अगर ऐसे व्यक्ति लोकहित में मानवीयता के प्रचार-प्रसार में योगदान देते हैं तो इन्हें हम सामाजिक क्रांतिकारी की संज्ञा देते हैं. वही इतिहास उनके योगदान को याद करते हुए इनको अपना आदर्श स्वीकार करता है और उनके बताये हुए रास्तों पर चलकर अपने आप को कृतार्थ महसूस करता है. विकट परिस्थितियों में सच्चाई एवं नैतिकता का दामन जो व्यक्ति जितनी मजबूती से पकडे रहता है उसकी महानता एवं स्वीकारता भी उसी अनुपात में बढती जाती है. जो व्यक्ति अपने विलक्षण एवं विशेष प्रयासों से सामाजिक परिवर्तन के आन्दोलन में अभूतपूर्व योगदान देते हैं पववत्तक के रूप में याद किया जाता है.
माननीय शांति स्वरुप बौद्ध पिछले कई दशकों से बहुजन इतिहास, कला एवं संस्कृति को साहित्य-सृजन, लेखन, प्रकाशन एवं प्रचार-प्रसार से हिंदी भाषी प्रदेशों में घर-घर पहुंचाने का बुनियादी कार्य कर रहे थे. आज हिंदी भाषी क्षेत्रों में ब-मुश्किल ही कोई ऐसा जागरूक परिवार होगा जिसमें शांति स्वरुप जी के साहित्य के रूप में, उनके जय भीम कैलंडर, शगुन के लिफाफे, बहुजन नायक नायिकाओं के खूबसूरत पोस्टर (जिनमें अनेक उनके खुद के डिज़ाइन किये हुए हैं) बहुजन साहित्य की ऐतिहासिक एवं समकालीन मौलिक तथा अनुदित किताबें, मोमेंटो आदि न पहुंचा हो. कहना न होगा कि अपने जीवन काल में ही किसी न किसी रूप में माननीय शांति स्वरुप बौद्ध जी हर जागृत बहुजन परिवार का हिस्सा बन चुके थे.
6 जून 2020 को उनकी असामयिक मृत्यु, किसी आपदा से कम न थी. यह समाज की अपूर्णीय क्षति थी जिसने बहुजन समाज एवं हम सब साथियों को हिला कर रख दिया था. सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों से करोड़ों भारतीयों ने अपनी दुखद संवेदनाएं व्यक्त करते हुए माननीय शांति स्वरुप बौद्ध के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर की थी. सोशल मीडिया के इतिहास में बहुजन समाज का यह निःसंदेह सबसे बड़ा कृतज्ञता ज्ञापन था जिसमें हजारों लोगों ने अपने प्रोफाइल फोटो उनको समर्पित किये थे.
माननीय शांति स्वरुप बौद्ध जी विलक्षण प्रतिभा के धनी, महान बुद्धिवादी विद्वान, उच्च कोटि के चित्रकार, अपनी वाणी से श्रोताओं में ज़बरदस्त ऊर्जा, उत्साह एवं होंसला भर देने वाले एक ओजस्वी वक्ता थे. एक प्रकाशक के रूप में शांति स्वरुप बौद्ध जी का योगदान ऐतिहासिक है देश के विभिन्न क्षेत्रों से प्रख्यात एवं उदीयमान दोनों तरह के लेखकों को लिखने के लिए प्रोत्साहित करना जैसे उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया था. हजारों की संख्या में छपी सम्यक प्रकाशन की किताबें आज समाज की अनमोल धरोहर बन चुकी हैं.
दिल्ली में बौद्ध सांस्कृतिक सम्मेलन की शुरुआत करके अनेक वक्ताओं, कलाकारों तथा कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाना माननीय शांति स्वरुप बौद्ध जी की एक ऐतिहासिक उपलब्धि रही है. अमूमन मुझे भी हर बार इन उत्सव रूपी सम्मेलनों का हिस्सा बनने का अवसर मिला. इन सम्मेलनों की सार्थकता, भव्यता, प्रबंधन एवं विशालता शांति स्वरुप बौद्ध जी के व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब कहे जा सकते हैं. निश्चित ही ये आयोजन, देश के सबसे खूबसूरत सामाजिक सांस्कृतिक आयोजनों में अग्रणी हैं.
हर साल फरवरी के दूसरे रविवार को सामान्यतः बुद्ध जयंती पार्क में बौद्ध पारिवारिक उत्सव मनाकर विशेषतः बच्चों एवं युवाओं में सामाजिक एवं धम्म जाग्रति का प्रचार प्रसार शांति स्वरुप बौद्ध जी का एक अन्य महत्वपूर्ण प्रयास रहा जिससे समाज अपनी ऐतिहासिक विरासत से रूबरू होता रहा है.
रन फॉर अम्बेडकर माननीय शांति स्वरुप बौद्ध जी की एक अन्य सार्थक पहल रही है जिसमें देश भर के हजारों युवा दिल्ली आकर अपनी उपस्थिति सार्वजनिक रूप से अपने वैचारिक प्रतीकों के साथ कराते रहे हैं. हजारों की संख्या में विभिन्न आकार के नीले एवं पंचशील के मनमोहन झंडों के साथ सफ़ेद टी-शर्ट पहने जोशीले नौजवानों का उत्साह एवं सम्पूर्ण छटा अनायास ही मन को मोह लेती है. इस प्रकार के आयोजन हमारी समृद्ध विरासत, गौरवशाली संस्कृति एवं सुद्रढ़ होते समाज का चित्रण बखूबी करते हैं.
अनेक बार उन्हें सुनकर हमेशा कुछ न कुछ नया सीखने को मिला. जब भी उनसे मिलना हुआ जैसे ज्ञान का असीम सागर हो, विषय छेड़ते जाइये और ज्ञान के मोती बटोरते जाइये. शब्दों के चयन को लेकर उनसे अधिक जागरूक व्यक्ति कोई विरला ही होगा, क्योंकि शब्दों की सार्थकता एवं महत्व साहित्य की शिखर शख्सियत होने के नाते वह बखूबी समझते थे. आंबेडकर भवन दिल्ली में 15-16 साल पहले उन्हें पहली बार सुना था, वह श्री शब्द क्यों इस्तेमाल नहीं करना चाहिए पर व्याख्यान दे रहे थे. आज भी उनके शब्द हूबहू याद हैं सर कह रहे थे पागल कहिये, दीवाना कहिये या गधा कहिये, लेकिन श्री कभी न कहिये. विशेषतः भंते चंदिमा जी के सानिध्य में सर से समता बुद्ध विहार, उनके निवास स्थान पश्चिम विहार में हुई तमाम मुलाकातें हमेशा याद रहेंगी. अकसर दयाल सिंह कालेज में सरदार दयाल सिंह मजीठिया का एक चित्र जो उन्होंने बनाया था, का जिक्र करते थे क्योंकि मैं वहाँ पढाता हूँ और सर वहाँ से पढ़े थे.
उनका स्नेह मेरे ऊपर हमेशा बना रहा, उनसे बहुत कुछ सीखा, बहुत कुछ सीखना रह गया. 6 जून को उनके स्मृति दिवस पर हजारों लोगों ने देश भर के अलग-अलग हिस्सों में अपने-अपने तरीके से उन्हें याद किया. किस प्रकार से कोई व्यक्ति अपने चारित्रिक गुणों एवं सामाजिक योगदान के चलते एक संस्था बन जाता है. यह हम शांति स्वरुप बौद्ध जी के जीवन से सीख सकते हैं. वह बड़े फक्र के साथ बताते थे कि स्वयं बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने उनका नाम शांति स्वरूप बौद्ध रखा था. निश्चित ही उन्होंने बाबासाहेब के दिये नाम को सार्थक किया और ता-उम्र भारत को प्रबुद्ध भारत बनाने में अपनी तमाम ऊर्जा एवं विद्वता को समर्पित किया. मुझे भी फक्र है कि ऐसे गुणी सामाजिक कार्यकर्ता का कुछ सानिध्य मेरे भी हिस्से में आया, निश्चित ही उनके प्रयासों से बाबासाहेब के कारवाँ को गति मिली है. गैर राजनीतिक जड़ो को मजबूत करने का जो कार्य आज आन्दोलन एवं समाज की बहुत बड़ी जरूरत है उसमें शांति स्वरुप बौद्ध जैसे व्यक्ति निश्चित ही मील का पत्थर साबित होंगे. उनके बहुआयामी प्रयासों को सतत नमन.
(लेखक: प्रो राज कुमार, यह लेखक के अपने विचार हैं)