बहन जी पर टिप्पणियाँ: एक चालाक रणनीति
भारत के राजनीतिक परिदृश्य में बहुजन विरोधी दल और उनके नेता अक्सर अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए परम आदरणीया बहन कुमारी मायावती—बहुजन समाज की एकमात्र राष्ट्रीय नेता—पर अभद्र टिप्पणियाँ करते हैं। कभी अपशब्दों का प्रयोग, तो कभी दिखावटी प्रशंसा—ये सभी हथकंडे केवल सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए अपनाए जाते हैं। किंतु दुखद यह है कि बहुजन समाज का एक बड़ा वर्ग इन टिप्पणियों पर अनावश्यक प्रतिक्रिया देकर इन नेताओं को चर्चा के केंद्र में ला खड़ा करता है। परिणामस्वरूप, जो व्यक्ति पहले गुमनाम था, वह रातोंरात सुर्खियों में छा जाता है।
उदाहरण: सस्ती लोकप्रियता का खेल
लगभग एक वर्ष पूर्व दिल्ली की एक कांग्रेसी महिला ने बहन जी पर अपमानजनक टिप्पणी की। बहुजन समाज के कुछ भोले-भाले लोगों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी, जिससे वह महिला चर्चा का विषय बन गई। हमारा मानना है कि उसका उद्देश्य बहन जी को अपमानित करना नहीं, बल्कि उनके नाम का सहारा लेकर सस्ती प्रसिद्धि अर्जित करना था। बहुजन समाज ने अनजाने में उसकी इस मंशा को पूरा कर दिया। इसी तरह, उत्तर प्रदेश में भाजपा के एक उपाध्यक्ष—जो पहले अज्ञात था—ने बहन जी पर अति अपमानजनक और अमानवीय टिप्पणी की। इसकी गूँज संसद तक पहुँची। सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहन जी ने स्वयं इस गंभीर मुद्दे को उठाया, जिसके फलस्वरूप भाजपा को उसे पद से हटाना पड़ा। किंतु मनुवादी संकीर्णता के पोषक भाजपा नेतृत्व को यह टिप्पणी इतनी प्रिय लगी कि उस छुटभैये नेता की पत्नी को विधायक और फिर मंत्री बनाकर पुरस्कृत कर दिया गया। यह घटना बहन जी के विशाल व्यक्तित्व और प्रभाव को रेखांकित करती है—उन पर टिप्पणी कर लोग शोषक सरकारों में ऊँचे पद पा लेते हैं।
बहुजन समाज के भीतर से चुनौती
यह विडंबना केवल गैर-बहुजन समाज तक सीमित नहीं। बहुजन समाज में जन्मे कुछ चमचे भी अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए बहन जी पर आधारहीन आरोप लगाकर या ऊल-जलूल टिप्पणियाँ करके सुर्खियों में बने रहते हैं। एक अन्य कांग्रेसी नेता ने ट्विटर पर बहन जी के लिए भारत रत्न की माँग उठाकर सस्ती लोकप्रियता का खेल खेला। बहुजन समाज के कुछ लोगों ने इसे भी गंभीरता से लेकर उसे चर्चा में ला दिया। यह कितना हास्यास्पद है कि बहन जी वर्षों से मान्यवर कांशीराम साहेब के लिए भारत रत्न की माँग करती रही हैं, किंतु कांग्रेस ने उनकी सरकार में यह सम्मान नहीं दिया। अब वही कांग्रेसी बहन जी के नाम पर पाखंड रच रहे हैं। यह सब केवल चीप पब्लिसिटी का हिस्सा है, जिसे बहुजन समाज समझ नहीं पाता।
राजनैतिक अपरिपक्वता: एक कटु सत्य
इन घटनाओं से स्पष्ट है कि बहुजन समाज में सामाजिक चेतना तो जागृत हुई है—वह अपने शोषकों को पहचानने लगा है—किंतु राजनैतिक परिपक्वता का अभाव बना हुआ है। इस विषम और असमानतापूर्ण सामाजिक व्यवस्था में अपने मुद्दों और एजेंडे को आगे बढ़ाने की समझ बहुजन समाज में अभी तक विकसित नहीं हो पाई। वह अपनी ऊर्जा और समय अपनी नेता, पार्टी, महानायकों-महानायिकाओं के संघर्ष और विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाने के बजाय विरोधियों का विरोध करने में व्यय करता है, जिससे वे और चमक उठते हैं। यह नहीं जान पड़ता कि कब बोलना है और कब मौन रहना—यह राजनैतिक चेतना की कमी का प्रमाण है।
बहुजन समाज का मार्ग
बहुजन समाज को चाहिए कि वह अपनी एकमात्र राष्ट्रीय नेता परम आदरणीया बहन जी और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के प्रति अटूट विश्वास बनाए रखे। उनके आदर्शों, संघर्ष, शौर्य गाथाओं और बुद्ध-आंबेडकरी विचारधारा को जनमानस तक पहुँचाने पर ध्यान दे। जिन मुद्दों पर आवश्यक हो, वहाँ बहन जी स्वयं जवाब देंगी—चाहे वह टिप्पणी हो या कानूनी कार्रवाई। बहुजन समाज का दायित्व है कि वह हर परिस्थिति में अपनी नेता और पार्टी के साथ मजबूती से खड़ा रहे। विरोधियों की चालों को नजरअंदाज कर अपने एजेंडे को प्राथमिकता दे, ताकि सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति का मिशन आगे बढ़े।
निष्कर्ष: समतामूलक समाज की ओर
बहन जी का व्यक्तित्व और नेतृत्व बहुजन समाज के लिए एक प्रकाशस्तंभ है। उनकी महानता का लाभ विरोधी उठाते हैं, किंतु बहुजन समाज को अब परिपक्वता दिखानी होगी। अपनी शक्ति को संगठित कर, अनावश्यक प्रतिक्रियाओं से बचकर और अपने लक्ष्यों पर केंद्रित रहकर ही वह भारत में समतामूलक समाज की स्थापना कर सकता है। यह समय बहुजन समाज के लिए आत्ममंथन और राजनैतिक चेतना जागृत करने का है, ताकि वह अपने विरोधियों के जाल में फँसने के बजाय अपनी मंजिल की ओर बढ़ सके।
11.04.2021