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Saturday, April 19, 2025

मान्यवर साहेब पर कँवल भारती के आधारहीन आरोप

कँवल भारती द्वारा अनुवादित हमने पहली किताब ‘मिस मेयो कैथरीन’ का शोधग्रंथ ‘मदर इण्डिया’ पढ़ा। इसके बाद इनकी लिखी कई किताबों संग फॉरवर्ड प्रेस (17 अप्रैल, 2017) पर ‘जमीन के सवाल और डॉ अम्बेडकर’ पढ़ा। तथागत बुद्ध, संत शिरोमणि जगतगुरु रैदास, जगतगुरु कबीरदास के दर्शन व हिंदी साहित्य में आलोचना के क्षेत्र में कँवल भारती का योगदान उम्दा है। कँवल भारती मण्डल मसीहा मान्यवर कांशीराम साहेब द्वारा सम्पादित अखबारों व पत्रिकाओं में भी लिखते रहें हैं। इसके बावजूद बहुजन आन्दोलन के संदर्भ कँवल भारती बुद्ध, कबीर, रैदास, बाबासाहेब तक ही सीमित रह गये। साथ ही, कँवल भारती स्वतंत्र व परतंत्र दलित राजनीति को समझने में भी पूरी तरह से विफल रहें हैं। बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण के पश्चात् भारतीय राजनीति में, दलित राजनीति के संदर्भ में, कँवल भारती दलित मुद्दों से इतर दलित विरोधी मुद्दों को ही बढ़ाने में सहयोगी रहें हैं। यदि राजनीति के क्षेत्र में इनके विचारों पर गौर किया जाय तो कोई भी समझ सकता है कि हिंदी साहित्य में कँवल भारती का महत्वपूर्ण योगदान है और वे एक बड़ा स्तम्भ जरूर हैं, इसके बावजूद यदि ये कहा जाय कि कँवल भारती दलित राजनीति के क्षेत्र में एक नवसिखिये व संकुचित समझ वाले बुद्धिजीवी जैसे हैं, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा। यदि इसी कड़ी में मान्यवर साहेब के संदर्भ में कँवल भारती के आरोपों को देखा जाय तो वे सभी तथ्यहीन, निराधार व बचकाना ही साबित होते हैं।

फिलहाल कँवल भारती का पहला आरोप है कि मान्यवर साहेब ने दलितों की मुक्ति की क्रांतिकारी सैद्धांतिकी डा. आंबेडकर की दलित राजनीति में थी, जिसे कांशीराम की बहुजन सैद्धांतिकी ने उलट दिया था। कँवल भारती यहाँ यह समझने में चूक गये कि बाबासाहेब ने पहले बहिष्कृत हितकारणी संभा (20 जुलाई 1924) का गठन किया। इसके बाद स्वतंत्र मजदूर पार्टी (15 अगस्त 1936) बनाया। यह स्वतंत्र मजदूर पार्टी (आईएलपी) एक बड़ा फलक था जिसमे दलितों के साथ-साथ अन्य कामगर लोगों के मुद्दों शामिल थे। आईएलपी आर्थिक तंगी व तात्कालिक वातावरण के चलते सफल नहीं हो सका। इसके बाद बाबासाहेब ने शेड्युलकास्ट फेडरेशन (1942) का गठन किया। अपने जीवन के अंतिम दौर में बाबासाहेब ने शेड्युलकास्ट फेडरेशन से आगे बढ़ें और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इण्डिया (आरपीआई) बनाया। अब कँवल भारती को खुद से सवाल करना चाहिए कि क्या स्वतंत्र मजदूर पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इण्डिया सिर्फ दलितों की पार्टी थी? क्या इनके एजेण्डे सिर्फ दलितों के एजेंडे थे या सर्व समाज के? यदि आईएलपी, आरपीआई सिर्फ दलितों के मुद्दों व राजनीति तक सीमित था तो शेड्यूलकास्ट फेडरेशन में क्या बुराई थी? कँवल भारती यह कैसे भूल गए कि कांग्रेस व अन्य मनुवादी दलों ने बाबासाहेब के हिमायल से भी ऊंचे कद को संकुचित करने के लिए पहले उन्हें सिर्फ दलितों का नेता कहा, इसके बाद उनकों महारों के नेता के तौर पर प्रचारित किया। क्या बाबासाहेब का आन्दोलन और उनका योगदान सिर्फ दलितों के लिए था? क्या बाबासाहेब का चिंतन सभी भारतीयों के लिए नहीं था? थॉट्स ऑन पाकिस्तान में बाबासाहेब ने सैकड़ों राष्ट्रों में बंटे भारत को एक राष्ट्र बनाने के लिए जो विमर्श शुरू किया था क्या वह सिर्फ दलितों के लिए था? यदि कँवल भारती बाबासाहेब को सिर्फ दलित राजनीति तक सीमित करना चाहते हैं तो यह बाबासाहेब के अतुलनीय योगदान को संकुचित करना है, जोकि बाबासाहेब के विरोधी बाबासाहेब के ज़माने से लेकर आज तक करते आ रहें हैं। इस प्रकार मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि कँवल भारती खुद दलितों की पिच पर कांग्रेस, भाजपा, सपा व अन्य मनुवादी विचारधारा वाले संगठनों के फ़ायदे के लिए बैटिंग कर रहें हैं। जहाँ तक रही बात मान्यवर साहेब की बहुजन राजनीति (बसपा) की तो यह कुछ और नहीं बल्कि उन उद्देश्यों को समर्पित है जो बाबासाहेब आईएलपी, आरपीआई के जरिये पूरा करना चाहते थे। मतलब कि मान्यवर साहेब ने असफल रही आईएलपी, आरपीआई को बसपा, बहुजन सैद्धांतिकी व राजनीति के तौर सफल बनाकर बाबासाहेब के मिशन को त्वरित गति प्रदान की है, आत्मनिर्भर दलित-बहुजन राजनीति को पंख लगा दिया है। इसलिए कँवल भारती द्वारा मान्यवर साहेब पर लगाया गया पहला आरोप पूरी तरह से निराधार है।

कँवल भारती का दूसरा आरोप है कि मान्यवर साहेब की बहुजन राजनीति ने दलित राजनीति को पतन की तरफ धकेल दिया। ऐसे आरोप लगाने से पहले कँवल भारती को यह स्पष्ट करना चाहिए था कि बाबासाहेब के बाद क्या दलितों के किसी भी दल के पास अपना कोई आत्मनिर्भर एजेंडा था? क्या ये दल स्ववित्त पोषित थे या फिर कांग्रेस आदि के रहमो-करम पर निर्भर थे? क्या इन दलों के पास अपनी स्वतंत्र रणनीति रही है या फिर कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा आदि के इशारे पर ही चलते रहें हैं? आरपीआई व अन्य दलित पार्टियाँ बाबा-बाबा करते-करते गाँधी (कांग्रेस व अन्य मनुवादी पार्टियों) की चौखट पर पहरेदारी क्यों करने लगते हैं? यदि कँवल भारती इन सभी सवालों पर गौर करते तो उनको जरूर महसूस होता कि बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण के बाद मान्यवर साहेब (आज सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहनजी) ही एक मात्र महानायक हैं जिन्होंने दलित ही नहीं बल्कि स्वतंत्र वैचारिकी (अम्बेडकरिज़्म) की ठोस बुनियाद पर स्ववित्त पोषित संगठन (बसपा) के माध्यम से आत्मनिर्भर रणनीति द्वारा स्वतंत्र एजेण्डे के साथ समतामूलक समाज सृजन कर भारत राष्ट्र निर्माण हेतु ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ की नीति के आधार पर बाबासाहेब की मंशानुरूप दलित राजनीति से आगे बहुजन राजनीति को नवीन व सकारात्मक आयाम दिया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि कँवल भारती का दूसरा आरोप भी पूरी तरह बेबुनियाद, तथ्य व सच्चाई से परे है।

कँवल भारती का तीसरा आरोप है कि मान्यवर साहेब ने मूलनिवासी बनाम विदेशी का एजेण्डा चलाया परन्तु कँवल भारती ने यह नही बताया है कि यदि मान्यवर साहेब ने इस एजेण्डे का कहीं जिक्र किया भी है तो कहाँ, और किस संदर्भ में? हमने मान्यवर साहेब के संदर्भ में जो भी अध्ययन किया है, उसमें पाया है कि मान्यवर साहेब ने देश की शोषित आबादी को भारतीय सामाजिक व्यवस्था और तात्कालिक राजनीति समझाते हुए सवर्ण-अवर्ण, सछूत-अछूत, अपर कास्ट-लोवर कास्ट, मनुवाद-ब्राह्मणवाद जैसे शब्दों का प्रयोग जरूर किया है लेकिन मूलनिवासी बनाम विदेशी जैसा कोई एजेण्डा कभी नहीं चलाया है, ना ही यह कभी बसपा के मंच से बोला गया, ना बसपा या बहनजी ने इसका समर्थन किया है। यदि कँवल भारती की बातों को थोड़ी देर के लिए सच मान भी लिया जाय तो भी यदि कभी इस एजेण्डे का मान्यवर साहेब ने जिक्र भी किया होगा तो वह देश को बाँटने वाले चेहरों (तिलक, गाँधी, जवाहिरलाल आदि) को उजागर करने के लिए ही किया होगा। मूलनिवासी बनाम विदेशी का एजेण्डा तिलक, गाँधी, नेहरू, सांकृत्यायन का था जिन्होंने अपने सवर्ण हित के मद्देनजर जरूरत के अनुसार इसका इस्तेमाल किया है। इसका बहुजन राजनीति और मान्यवर साहेब से कोई सरोकार नहीं है। हाँ यह सत्य जरूर है कि मूलनिवासी बनाम विदेशी का एजेण्डा कांग्रेस के पैसे से पंजीकृत बामसेफ़ (जिससे मान्यवर साहेब का कोई लेना-देना नहीं था), समय-समय पर भाजपा व सपा द्वारा वित्त पोषित संगठनों ने स्वतंत्र बहुजन राजनीति (बसपा) को कमजोर करने के लिए चलाया है। मान्यवर साहेब का आन्दोलन समतामूलक समाज सृजन का आन्दोलन है। समतामूलक समाज सृजन करने हेतु संघर्षरत महानायक मण्डल मसीहा मान्यवर साहेब विघटनकारी एजेण्डा कैसे चला सकतें हैं। अतः कँवल भारती द्वारा मान्यवर साहेब पर लगाया गया तीसरा आरोप भी तथ्यहीन, निराधार, बचकाने व आत्मतुष्टिकरण हेतु मात्र है।

दलित-बहुजन राजनीति के संर्दभ में कँवल भारती के लेख, विचार आदि से ऐसा प्रतीत होता है कि कँवल भारती दलित-बहुजन समाज की परतंत्र राजनीति के समर्थक हैं, जोकि गाँधी (पूना पैक्ट) के आमरण अनशन का मूल उद्देश्य था जबकि बाबासाहेब समतामूलक समाज सृजन कर भारत राष्ट्र निर्माण हेतु अपनी स्वतंत्र वैचारिकी व आत्मनिर्भर एजेण्डे के तहत स्ववित्त पोषित संगठन के जरिये अपनी स्वतंत्र राजनीति चाहते थे जिसे बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण के बाद मान्यवर साहेब (आज बहनजी) ने बसपा के माध्यम से आगे बढ़ाया है।

उपरोक्त चर्चा से स्पष्ट है कि मान्यवर साहेब पर कँवल भारती द्वारा लगाये गए सभी आरोप निराधार ही नहीं बल्कि मनुवादियों से प्रेरित हैं। कँवल भारती के मिथ्यारोप बाबासाहेब की आत्मनिर्भर राजनीति से खुद कँवल भारती के भटकाव का परिणाममात्र है। ऐसे भटकाव के दल-दल में सिर्फ कँवल भारती ही नहीं हैं बल्कि तमाम बुद्धिजीवी, प्रोफ़ेसर, अधिकारी, कर्मचारी व पढ़े-लिखे लोग हैं जो बाबासाहेब, मान्यवर साहेब से इतर कांग्रेस, भाजपा, सपा, राजद, जदयू, टीएमसी, आप आदि सभी मनुवादी दलों व मनुवादियों द्वारा पोषित राजनैतिक दलों में बैठें हैं। अंततः हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि कँवल भारती हिंदी साहित्य के क्षेत्र में मजबूत स्तम्भ जरूर है परन्तु बाबासाहेब की स्वतंत्र राजनीति, जिसे मान्यवर साहेब और आज बहनजी आगे बढ़ा रहीं है, के संदर्भ उनकी समझ बाबासाहेब से नहीं बल्कि गाँधी से प्रेरित तथा कांग्रेस, भाजपा, सपा जैसी मनुवादियों की गिरफ्त में है।


— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)


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