किस्सा कांशीराम का 02: 1987 में जब इलस्ट्रेटेड वीकली के पत्रकार ने साहेब को सवाल किया कि आप कहते हो कि आपने कभी भी विदेश से पैसा नहीं लिया. आप के इस दावे में कितनी सच्चाई है? तो मान्यवर साहब का जवाब था कि मैं जब अप्रैल 1985 में इंग्लैंड गया तो मुझे बर्मिंघम गुरु रविदास गुरुद्वारा (यू.के.)की तरफ से पैसे देने की पेशकश की गई. लेकिन, मैंने आदर सहित मना कर दिया.
हालांकि इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, बूटा सिंह और यहां तक कि बाबू जगजीवन राम ने भी अपने-अपने स्रोतों से पैसा वसूल किया था.
देखा जाए तो इंग्लैंड में चमारों की गिनती 70 हजार के करीब है. साहेब इसलिए भी सचेत थे क्योंकि जालंधर के एक अंबेडकरी ने साहेब के जाने से पहले ही इंग्लैंड के सभी गुरु घरों व सभाओं को पत्र लिखकर कहा था कि कांशीराम इंग्लैंड की धरती से पैसे इकट्ठे करने आ रहा है, उसको कोई भी पैसा ना दिया जाए. यहां तक कि जिस दिन साहेब लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे जाकर उतरे, उस दिन यह शख्स भी लंदन जाकर उतरा.|फर्क केवल इतना था कि साहेब इंग्लैंड की धरती से महज 17 दिन रह कर खाली हाथ वापस अपने बहुजन समाज के लोगों में आ गए, और यह अंबेडकरी पूरे 6 महीने तक वहां रहकर अपने लिए पौंड इकट्ठे करता रहा.
1985 में इस अंबेडकरी ने साहेब के खिलाफ 12-13 पन्नों का दुष्प्रचार से भरा एक पेंफलैट भी निकाला था. तो साहेब ने इस शख्स के बारे में यह भी खुलासा किया था कि इसने मेरे खिलाफ अखबारों के संपादकों को अनाप-शनाप लिखने के लिए प्रेरित किया था. 24 अक्टूबर 1982 को साहेब ने जालंधर स्थित “पूना धिक्कार दिवस” रैली की समाप्ति के मौके पर 50 हजार लोगों के इकटठ् में उस की खिल्ली उड़ाते हुए भी कहा था कि जालंधर में एक ‘भौंका’ भी रहता है. जब कुछ वर्करों ने साहेब से इसका मतलब पूछा तो उनका सटीक जवाब था कि जो बिना किसी बात के ही भौंकता रहे.
इंग्लैंड की धरती से स्पॉन्सर करने वाले बुजुर्ग फकीर चौहान तकखर के मुताबिक यहां लोगों में जो आपस में कुछ शंकाऐं थीं, साहेब ने अपनी सूझबूझ के साथ सारी की सारी दूर कर दीं व सब भाईचारे के लोगों को प्यार के साथ रहने का उपदेश दिया. जबकि दूसरी तरफ उस अंबेडकरी को उसके चेलों चपटों के अलावा किसी ने भी अच्छी तरह से मुंह ना लगाया.
इससे पहले जब साहेब अमेरिका के 10 दिनों के दौरे पर भी गए थे तो भी उन्होंने कोई भी पैसा लेने से मना कर दिया था. क्योंकि, मूवमेंट के उभार के साथ ही कांग्रेस ने साहेब को बदनाम करने के लिए आरोप लगाना शुरू कर दिया था कि कांशीराम को अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए (CIA) से फंडिंग होती हैं. साहेब इतने सचेत थे कि विदेश से जो लोग धन देने की पेशकश कर रहे थे हो सकता है वह कांग्रेस के ही एजेंट हों ताकि बाद में साहेब को बदनाम किया जा सके. पर साहेब डंके की चोट पे हमेशा यह बात कहते थे कि जिस दिन भारत की तीनों इंटेलिजेंस एजेंसी साबित कर देंगीं कि कांशीराम के नाम से एक मरला भी जमीन का है यां किसी बैंक में अकाउंट है तो मैं अपनी मूवमेंट को अलविदा कह कर एक तरफ हो जाऊंगा.
आरपीआई के मुकाबले मुझे बहुजन समाज पार्टी इसलिए खड़ी करनी पड़ी ताकि कहीं बहुजन समाज कांग्रेस का पिछ्लगगू ना बन के रह जाए.
(स्रोत: मैं कांशीराम बोल रहा हूँ का अंश; लेखक: पम्मी लालोमजारा, किताब के लिए संपर्क करें: 95011 43755)