भारत विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों, भाषाओं और जलवायु वाला देश है, परन्तु इस लेख के संदर्भ में इसे विभिन्न जातियों का देश कहना अधिक उचित होगा। हिन्दू धर्म की नींव जाति व्यवस्था पर टिकी है, जिसने भारत को कभी एक राष्ट्र के रूप में एकजुट नहीं होने दिया। इस व्यवस्था ने मुट्ठी भर तथाकथित उच्च जातियों को धार्मिक और सांस्कृतिक शासक बनाया, जबकि 85 प्रतिशत बहुजन समाज को सदा याचक की स्थिति में रखा। इस अमानवीय मनु व्यवस्था के खिलाफ समतावादी समाज की स्थापना के लिए बहुजन समाज में जन्मे संतों, गुरुओं, महानायकों और महानायिकाओं ने अपने-अपने कालखंड में बुद्ध की समता की राह को अपने संघर्षों से प्रकाशित किया। परिणामस्वरूप, यह समतामूलक समाज सृजन का आंदोलन धीमी गति से ही सही, लेकिन निरंतर आगे बढ़ रहा है।
इसी क्रम में गौतम बुद्ध, गुरु रविदास, कबीर दास और ज्योतिबा फूले से प्रेरणा लेते हुए बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अपनी विद्वता, संघर्ष और साहस से भारत के सहस्राब्दियों के इतिहास को बदल दिया। संविधान निर्माण के माध्यम से उन्होंने ऊर्ध्वाधर व्यवस्था को नष्ट कर समतावादी ढांचा स्थापित किया, वहीं धम्म दीक्षा के जरिए शूद्रों, दलितों, आदिवासियों और समता पसंद लोगों को बौद्ध मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। इसके फलस्वरूप, भारत ने राजनीतिक और कानूनी स्तर पर लोकतंत्र, समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व आधारित न्याय व्यवस्था को अपनाया, लेकिन सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्रों में यह बदलाव अभी अधूरा है। इसका कारण जाति आधारित सामाजिक व्यवस्था है, जो शोषित समाज की गुलामी और पीड़ा का मूल स्रोत बनी हुई है।
हमारे विश्लेषण में, व्यवस्थाएं शासक वर्ग द्वारा शुरू और समाप्त की जाती हैं। जाति व्यवस्था को हिन्दू संस्कृति के शासक वर्ग ने जन्म दिया, इसलिए इसे खत्म करने की जिम्मेदारी भी उनकी ही है। बाबासाहेब ने ‘ऐनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ में स्पष्ट किया कि जाति उन्मूलन का दायित्व उच्च जातियों का है। लेकिन सवाल यह है कि जिन उच्च जातियों ने जाति के आधार पर शोषित समाज को हजारों टुकड़ों में बांटकर अपनी सत्ता कायम की, वे इसे क्यों खत्म करेंगी? उन्हें इससे हर क्षेत्र में लाभ मिलता है, इसलिए वे इसे समाप्त करने को तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि 24 अप्रैल 1948 को लखनऊ में बाबासाहेब ने कहा, “राजनीतिक सत्ता ही वह मास्टर चाभी है, जिससे शोषित अपने उन्नति के सारे दरवाजे खोल सकता है।”
बाबासाहेब के इस संदेश को आगे बढ़ाते हुए उनके महापरिनिर्वाण के बाद मान्यवर कांशीराम और बहनजी ने शोषित जातियों को उनके इतिहास, संस्कृति और नायकों की वैचारिकी के आधार पर एकजुट कर बहुजन समाज का निर्माण शुरू किया। मान्यवर कांशीराम का कहना था, “दूसरे की खींची लाइन को मिटाने में ऊर्जा नष्ट करने के बजाय, उसके समानांतर अपनी गहरी और लंबी लाइन खींचनी चाहिए।” अर्थात्, सकारात्मक एजेंडे से ही स्वतंत्र अस्तित्व और अस्मिता स्थापित की जा सकती है। आलोचना से व्यवस्था नहीं बदलेगी, बल्कि नई व्यवस्था के लिए कार्य करना होगा। बुद्ध और अम्बेडकर ने भी अमानवीय व्यवस्था पर समय बर्बाद करने के बजाय मानवीय व्यवस्था के सृजन पर ध्यान दिया। बहनजी ने इस कार्यशैली को ‘सकारात्मक एजेंडा’ के रूप में अपनाकर समतामूलक समाज के आंदोलन को मजबूत किया।
हालांकि, आत्मनिर्भर अस्मिता ही शोषित समाज की सत्ता स्थापित कर सकती है, लेकिन बहुजन समाज आज बसपा से भटककर भाजपा-सपा जैसे नकारात्मक एजेंडों में उलझ रहा है। इसका अपना कोई सकारात्मक एजेंडा नहीं है। बहुजन समाज जागरूक तो हुआ है, पर इतना अनुशासित नहीं कि अपने एजेंडे को पहचान सके। यही कारण है कि ओबीसी, एससी-एसटी और अल्पसंख्यक समुदाय हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण और रामचरितमानस जैसे मुद्दों में फंस जाते हैं। मनुवादी संगठन जुमलों के जरिए बहुजन समाज को भटकाने और उनके एजेंडे को दफन करने में सफल हो जाते हैं।
लोकसभा चुनाव-2024 के संदर्भ में भाजपा और सपा ने रामचरितमानस के सहारे धार्मिक उन्माद और ध्रुवीकरण की नींव रखी है। यदि यह षड्यंत्र सफल हुआ, तो भाजपा/कांग्रेस को सत्ता और सपा जैसे दलों को विपक्ष में स्थान मिलेगा, लेकिन बहुजन समाज को कुछ नहीं मिलेगा। ओबीसी समाज को यह सोचना चाहिए कि ऐसे नकारात्मक एजेंडों से उनके हित कैसे पूरे होंगे? हिन्दू धर्म के ग्रंथों में शूद्रों को नीच माना गया है, फिर ओबीसी इस धर्म में क्यों बने रहना चाहता है? सुधार की जिम्मेदारी हिन्दू धर्म के ठेकेदारों की है, न कि गुलामों की। गुलामों का पहला कर्तव्य अपनी गुलामी की बेड़ियों को पहचानकर उनका बहिष्कार करना है।
बाबासाहेब ने धम्म दीक्षा के जरिए रास्ता दिखाया। ओबीसी समाज को डॉ. रामस्वरूप वर्मा और ललई यादव जैसे व्यक्तियों से प्रेरणा लेकर हिन्दू धर्म का त्याग कर बौद्ध मार्ग अपनाना चाहिए। रामचरितमानस की आलोचना से कुछ हासिल नहीं होगा, बल्कि मानवीय मूल्यों के प्रचार-प्रसार से ही समतामूलक व्यवस्था बनेगी। बहुजन समाज को तय करना है कि वह हिन्दू शास्त्रों पर विवाद में उलझेगा या आत्मनिर्भर सत्ता के लिए बाबासाहेब के मार्ग पर चलेगा।
31 जनवरी 2023 को बहुजन समाज संग अन्य सभी न्याय पसंद लोगों को सचेत करते हुए सर्वसमाज की सबसे लोकप्रिय नेता बहनजी कहती हैं कि ‘संकीर्ण राजनीतिक व चुनावी स्वार्थ हेतु नए-नए विवाद खड़ा करके जातीय व धार्मिक द्वेष, उन्माद-उत्तेजना व नफरत फैलाना, बायकाट कल्चर, धर्मान्तरण को लेकर उग्रता आदि भाजपा की राजनीतिक पहचान सर्वविदित है किन्तु रामचरितमानस की आड़ में सपा का वही राजनीतिक रंग-रूप दुःखद व दुर्भाग्यपूर्ण है। रामचरितमानस के विरुद्ध सपा नेता की टिप्पणी पर उठे विवाद व फिर उसे लेकर भाजपा की प्रतिक्रियाओं के बावजूद सपा नेतृत्व की चुप्पी से स्पष्ट है कि इसमें दोनों पार्टियों की मिलीभगत है ताकि आगामी चुनावों को जनता के ज्वलन्त मुद्दों के बजाए हिन्दू-मुस्लिम उन्माद पर पोलाराइज किया जा सके। उत्तर प्रदेश में विधानसभा के हुए पिछले आमचुनाव को भी सपा-भाजपा ने षडयंत्र के तहत मिलीभगत करके धार्मिक उन्माद के जरिए घोर साम्प्रदायिक बनाकर एक-दूसरे के पूरक के रूप में काम किया, जिससे ही भाजपा दोबारा से यहाँ सत्ता में आ गई। ऐसी घृणित राजनीति का शिकार होने से बचना जरूरी है।’
कांग्रेस, भाजपा और सपा जैसे मनुवादी दल लगातार देश के गरीब, पिछड़े, दलित और आदिवासी समाज को गुमराह करके उन्हें उन्माद की भट्टी में धकेलने की फिराक में हैं ताकि लोकसभा आम चुनाव-2024 को जाति और धर्म के आधार पर ध्रुवित कर चुनावी गणित बनाई जा सके। 3 फरवरी 2023 को बहनजी ओबीसी, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समाज को आगाह करते हुए कहती हैं कि – ‘देश में कमजोर व उपेक्षित वर्गों का रामचरितमानस व मनुस्मृति आदि ग्रंथ नहीं बल्कि भारतीय संविधान है जिसमें बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर ने इनको शूद्रों की नहीं बल्कि एससी, एसटी व ओबीसी की संज्ञा दी है। अतः इन्हें शूद्र कहकर सपा इनका अपमान न करे तथा न ही संविधान की अवहेलना करे।’
आगे बहुजन समाज को कांग्रेस, भाजपा और सपा जैसे संकीर्ण मानसिकता वाले दलों से सचेत करते हुए बहनजी कहती हैं कि – ‘इतना ही नहीं, देश के अन्य राज्यों की तरह यूपी में भी दलितों, आदिवासियों व ओबीसी समाज के शोषण, अन्याय, नाइन्साफी तथा इन वर्गों में जन्मे महान संतों, गुरुओं व महापुरुषों आदि की उपेक्षा एवं तिरस्कार के मामले में कांग्रेस, भाजपा व समाजवादी पार्टी में कोई किसी से कम नहीं है।’
सपा की जातिवादी सोच को रेखांकित करते हुए पिछड़े वर्ग की सर्वमान्य नेता बहनजी कहती हैं कि – ‘सपा प्रमुख द्वारा इनकी वकालत करने से पहले उन्हें लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस के दिनांक 2 जून सन् 1995 की घटना को भी याद कर अपने गिरेबान में जरूर झाँककर देखना चाहिए, जब सीएम बनने जा रही एक दलित की बेटी पर सपा सरकार में जानलेवा हमला कराया गया था।’
बहनजी देश की शोषित जनता के प्रति कांग्रेस, भाजपा, सपा, टीएमसी, आप, राजद व जदयू आदि की नकारात्मक मंशा को चिन्हित करते बहनजी कहती हैं कि – देश में एससी, एसटी, ओबीसी, मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों आदि के आत्म-सम्मान एवं स्वाभिमान की क़द्र बीएसपी में ही हमेशा से निहित व सुरक्षित है, जबकि बाकी पार्टियाँ इनके वोटों के स्वार्थ की खातिर किस्म-किस्म की नाटकबाजी ही ज्यादा करती रहती हैं।’
संक्षिप्त में कहें तो 31 जनवरी 2023 को बहनजी ने चेतावनी दी कि भाजपा और सपा की मिलीभगत से रामचरितमानस विवाद को हिन्दू-मुस्लिम उन्माद के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। 3 फरवरी 2023 को उन्होंने कहा कि बहुजन समाज का आधार संविधान है, न कि रामचरितमानस या मनुस्मृति। कांग्रेस, भाजपा और सपा जैसे दल शोषित समाज को भटकाने में लगे हैं, लेकिन बसपा ही उनकी अस्मिता की रक्षा कर सकती है। शूद्रों को समझना होगा कि रामचरितमानस जैसे चुनावी मुद्दे उनकी क्रांति नहीं, बल्कि भ्रान्ति है। सकारात्मक एजेंडा ही उन्हें सत्ता दिला सकता है। इसलिए नकारात्मक मुद्दों से दूर रहकर बसपा के साथ डटे रहना उनकी नैतिक जिम्मेदारी है। यदि वे ऐसा कर सके, तो सरकार बहुजन समाज की ही बनेगी।
स्रोत और संदर्भ :
- “लखनऊ गेस्ट हाउस काण्ड,” द हिन्दू, 3 जून 1995।
- डॉ. बी.आर. आंबेडकर, “ऐनिहिलेशन ऑफ कास्ट,” संकलित रचनाएँ, खण्ड 1, 1936।
- डॉ. बी.आर. आंबेडकर, “बुद्ध एंड हिज धम्म,” संकलित रचनाएँ, खण्ड 11, 1956।
- मान्यवर कांशीराम, “सकारात्मक रेखा,” बहुजन संगठक, 10 मई 1990।
- बहनजी, “रामचरितमानस पर षड्यन्त्र,” बसपा आधिकारिक बयान, 31 जनवरी 2023।
- बहनजी, “संविधान ही शूद्रों का ग्रन्थ,” बसपा आधिकारिक बयान, 3 फरवरी 2023।