अखबार और टीवी मीडिया की ताकत का अंदाज लगाना आसान नही है और ना ही सोशल मीडिया की ताकत को आंकना आसान है. बात नवम्बर 2020 की होगी जब यूपी में10 राज्यसभा सीटों पर वोटिंग होनी थी. राज्यसभा चुनावों में जनता वोट नही करती, विधायकों की वोटों से राज्यसभा सांसद चुने जाते हैं. विधायकों की संख्या के हिसाब से भाजपा के 8 और सपा का 1 सांसद चुना जा सकता था और बची हुई 1 सीट पर अपने बलबुते जिताने के लिए किसी भी पार्टी के लिए पर्याप्त विधायकों की संख्या नही थी. ऐसे मे बहनजी चाहती थी कि अखिलेश यादव अपनी पत्नी डिंपल यादव को टिकट दें तो बसपा के समर्थन से वो संसद मे पहुँचे लेकिन उन्होंने ना कोई जवाब भिजवाया और ना ही डिंपल यादव को खड़ा किया.
बहनजी ने जब देखा कि 10वीं सीट पर कोई पार्टी पर्याप्त विधायक संख्या ना होने के कारण कैंडिडेट नही दे रही तो उन्होने 2 दिन पहले रामजी गौतम को टिकट देकर पर्चा भरवा दिया. ऐसे मे रामजी गौतम का भी निर्विरोध चुना जाना तय ही था लेकिन पर्चा भरने के अंतिम दिन भाजपा समर्थित बिजनेसमैन कैंडिडेट प्रकाश बजाज को सपा के विधायकों के समर्थन से निर्दलीय जिताने की कोशिशे भाजपा और सपा ने मिलकर की. लेकिन, फिर भी उनके बचे हुए विधायकों से बजाज नही जीत पा रहा था. ऐसे मौके पर अखिलेश यादव ने बसपा के 7 विधायक तोड़ दिये लेकिन फार्म पर भाजपा काटकर निर्दलीय लिखने के कारण नियमानुसार बजाज का पर्चा कैंसिल कर दिया जाता है और बसपा के रामजी गौतम निर्विरोध चुनकर संसद पहुँच जाते हैं.
बसपा के 7 विधायकों को तोड़ने वाले अखिलेश यादव को अगले विधानपरिषद चुनाव में सबक सिखाने के लिए बहनजी ने गुस्से मे मीडिया के सामने कहा था कि हमारे विधायकों की सपा को विधानपरिषद की एक सीट पर जरूरत पड़ सकती है, अखिलेश की पार्टी के कैंडिडेट को हराने के लिए जरूरत पड़ी तो भाजपा के कैंडिडेट को जीता देंगे लेकिन, अखिलेश को पार्टी विधायको को तोड़ने वाली इस हरकत के लिए सबक जरूर सिखायेंगे. सपा को हराने के लिए भाजपा को जिता देने वाली बात को टीवी अखबारों और सोशल मीडिया ने पूरे साल लोगों को समझाने में लगा दिया कि बसपा तो भाजपा को जिताने के लिए मैदान में है ताकि मुस्लिम, पिछड़ों और दलितों के वोट बट जाये. जबकि सच्चाई ये है कि बसपा ने विधानपरिषद सीट पर भी सपा के मुस्लिम कैंडिडेट को ही सपोर्ट किया था और जितवाया था.
सेक्यूलर कांग्रेसी समर्थक मीडिया हो या हिन्दुत्वी मीडिया दोनों ने अपने-अपने तरीके से लोगों को समझा भी दिया कि बसपा तो भाजपा की बी टीम है. परिणाम सामने हैं, एंटी इंकम्बेंसी के बावजूद भी भाजपा का 2-3% वोट बढ़ा है और बसपा का 10% वोट टूटकर सपा मे चला गया. जिस दिन बहनजी ने गुस्से में सपा को सबक सिखाने के लिए चाहे भाजपा को जिताने वाली स्टेटमेंट दी थी, मैंने तो उस दिन भी कहा था कि पता नही इस स्टेटमैंट की भरपाई कैसे होगी, होगी भी या नही होगी, एक स्टेटमेंट ने मुस्लिमों और गुमराह होने को तैयार खड़े दलितों के साथ अन्य पिछड़े वर्ग के बहनजी समर्थकों को अफवाहों में ऐसा लपेटा कि कभी 500 करोड़ में बहनजी को सौदा करने वाली, कभी राष्ट्रपति बनने वाली कहानियों में फंसाकर बसपा से सत्ता ही नही बल्कि, वजूद तक मिटाने की साजिशें रच दी गई. फिर दलित समाज तो मूर्खता पर अपना पहला हक समझता ही है, लेकिन अब ये पदवी दो कदम पीछे खड़ा मुस्लिम समाज ढ़ोने को तैयार खड़ा है.
बहनजी की एक गलती बहुत भारी पड़ गई, चुनाव वहीं से लड़ा जाना शुरू हो चुका था. जब तक आम दलित की आँख खुलती है तब तक दलितों के दलाल समाज में अपनी हड्डी की कीमत अदा करने के लिए झूठे आरोपों और गंदगी का पिटारा खोलकर बदबू फैला चुके होते हैं और अब तो जय भीम बोलकर छलावे रचे जाते है. हर दलित, पिछड़े, मुस्लिम के कानों तक गूँज पहुँच रही थी कि बसपा भाजपा की बी टीम है. ये बहनजी की पहली एतिहासिक गलती थी और दूसरी गलती चुनाव के लिए बड़ी रैली करने में बहुत देरी करना. ऐसा नही है कि पार्टी खत्म हो गई, वापसी भी जल्द करेंगे लेकिन ये हार बहुजन आंदोलन के लिए किसी 8.5 डिग्री वाले भूकम्प से कम नही है. बसपा की लड़ाई भाजपा, सपा, कांग्रेस से ज्यादा तो लिबरल मीडिया और हिन्दुत्वी मीडिया से है.
(लेखक: एन दिलबाग सिंह, ये लेखक के अपने विचार हैं.)