आज इक्कीसवीं सदी मे भी दलित और आदिवासी समाज गैर बराबरी की लड़ाई धरातल पर लड़ ही रहा है, इनमे से अधिकतर के पास ले देकर कुछ सरकारी नौकरियाँ और छोटे मोटे काम धंधे ही है. देश की आजादी के बाद भी देश की सम्पतियों पर कुछ ही वर्गो का कब्जा रहा और ये लोग आज इन्ही सम्पतियों की चौकीदारी में लगे हैं या दूसरे के खेतों और फैक्ट्रियों में मजदूर का काम कर रहे हैं. वैसे तो नाम के लिए दलित आदिवासियों के आरक्षण वाले हजारों विधायक, सैकड़ों सांसद, राज्यपाल और राष्ट्रपति तक मिल जायेगें लेकिन ये अधिकतर गुँगे बहरे तो अपनी-अपनी पार्टियो के रिमोट कंट्रोल से चलने वाले लोग ही साबित हुए हैं.
देश भर मे दलितों/महादलितों के साथ मारपीट की घटनाए नॉन स्टॉप होती रहती हैं लेकिन, दलितों के लिए मीडिया ब्रैंडिड नेता सिर्फ उन्ही केसों में टीवी कैमरे के सामने तड़क भड़क वाले ब्यान देते दिखते है जो कहीं से भी समाधान नही दिखता. हाथरस और नेमावर जैसे कांड तो रोज हो रहे है, हमारी दलित आदिवासी उत्पीड़न पर योजनाएं एवम सोच विचार सिर्फ कैमरे के इर्द गिर्द तक नही हो सकती, इन्हे योजनाबद्ध तरीके से रोकने पर काम करने की सख्त जरूरत है. क्योकि इस तथाकथित सभ्य समाज के लिए खेतों में काम कर रहे मजदूरों व अन्य आर्थिक व सामाजिक तौर पर कमजोर वर्गो का उत्पीड़न आम बात है. गरीब दलित आदिवासियों पर अपराध करने वालों में हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई और प्रशासन कोई पीछे नही रहना चाहता.
मान्यवर कांशीराम साहेब कहा करते थे कि सवाल ये नही है कि दलित आदिवासियों पर अपराध होते है, सवाल ये है कि दलित आदिवासियों पर अपराध होते ही क्यों है?
अपराध रोकने है तो अपनी वोटों से अपने हको की लड़ाई लड़ने वाली विचारधाराओं वाली सरकारों को चुनो. ये जो कुछ लोग काला चश्मा और गमझा पहनकर आलतु फालतु की बात करते हैं, ये समाधान नही है – यकीन ना हो तो दलित उत्पीड़न पर NCRB के आकड़े उठा के देख लो.
राष्ट्रपति या राज्यपाल बनने या मनुवादी विचारधारा वाली पार्टियों के सांसद विधायक बनने से कुछ नहीं बदलेगा. लेकिन, अम्बेड़करवादी विचारो पर अमल करने वाले दलित आदिवासी SP, DM, CM, PM होने से जरूर बहुत कुछ बदलता है. ये राजनैतिक बदलाव ही आपकी जरूरतों को बिना कहे वो सब समझता है जिसकी आपको सही में सबसे ज्यादा जरूरत होती है.
अम्बेड़करवादी विचारधारा वाले लोगों को अगर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री चुना जायेगा तो उनको बताने की जरूरत नही पड़ती कि बैकलॉग वेकैंसी भरो या लाखो एकड़ खेती की जमीन गरीब और जरूरतमंदो में बटवाओ या फिर महापुरुषों के नाम पर सैकड़ों स्कूल, कालेज, हस्पताल या युनिवर्सिटीयों का निर्माण करके लोगों में सामाजिक और राजनैतिक चेतना जागृत करो ताकि एक समतामूलक समाज बनने की दिशा में भारत आगे बढ़े.
सिर्फ 4.5 महीने के अंदर किसी बिगड़े हुए प्रदेश से डेढ़ लाख से ज्यादा आवारा, बदमाशो और असामाजिक तत्वो को जेल में बंद करके गरीबो का शोषण रोक दे, ऐसी शक्ति किसी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री में ही होती है और ऐसा कारनामे देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य में एक दलित महिला मुख्यमंत्री कर चुकी है.
आप अपनी वोट को बेईमानो और दलालो से बचाकर इस्तेमाल करोंगे तो सही में ही अच्छी सरकार चुनी जायेगी वरना कोई ना कोई तो सरकार चुनी ही जानी है. इसी बदलाव के लिए बाबासाहेब ने लोगो को शिक्षित करने, संगठित करने व संघर्ष करने को कहा था, हजारो संगठन बनाकर वोटों के गलत इस्तेमाल से अम्बेड़करवादी विचारधारा की राजनीतिक शक्ति को खत्म करने को नही कहा था.
शक्तिशाली समाज बनाना है तो शोषित समाज को अपनी वोटों की कीमत समझनी होगी, अपने हको के लिए लड़ने वाले अम्बेड़करवादी प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री चुनने के लिए दम लगाना होगा. आपकी वोटों को पाने के लिए राष्ट्रपति या राज्यपाल के कुछ पद देने के लिए तो मनुवादी पार्टीयाँ हमेशा से ही तैयार मिलेगी. इसलिए अपने समाज को शिक्षित कीजिए, संगठित होकर राजा चुने – इसके बाद तुम पर अपराध करने वालो के हौसले जल्द ही टूट जाने है.
(लेखक: एन दिलबाग सिंह, यह लेखक के अपने विचार हैं)