गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय Gautam Buddha University (511 एकड़ एरिया, 50000 हरे भरे पेड़, 2000 करोड़ रुपये की लागत), गौतम बुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश का मुख्य अकादमिक ब्लाक है. जिसमें तथागत बुद्ध द्वारा प्रतिपादित सम्यक जीवन के लिए आठ मग्गो को आधार मानकर बनाये गए आठ संकाय नजर आ रहे हैं.
यह विश्वविद्यालय (महाविहार) नालंदा, तक्कसिला (तक्षशिला), विक्कमसिला (विक्रमशिला), जगदल्ला, ऊदंतपुरी, सोमपुरा, वल्लभी एवं पुस्पागिरी जैसे विश्व विख्यात एवं विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों की महान बौद्धिक परम्परा को आगे बढ़ाता हुआ, बौद्ध स्थापत्य कला की एक अद्भुत एवं उत्कृष्ट कलाकृति का जीता जागता उदाहरण है. यह वर्तमान में दुनिया का शायद सबसे खूबसूरत शैक्षिक परिसर है. इतना सुरुचिपूर्ण एवं व्यवस्थित कि देखते ही मन को भा जाये. यहां बना बौधिसत्व डा. आंबेडकर पुस्तकालय, गोलाकार मध्य में स्थित तथागत बुद्ध की प्रतिमा के ठीक पीछे स्थित है संस्था के बौद्धिक सिरमौर के रूप में ‘बुद्धि ही सबकुछ है‘ एवं ‘बुद्धि साधना मानवीय जीवन का महानतम उपक्रम है‘. जैसे कालजयी दर्शन एवं सिद्धांतों को चरितार्थ करता हुआ नजर आता है.
2000 स्टूडेंट्स के एक साथ बैठकर अध्ययन करने की सुविधा के साथ यह पुस्तकालय, एशिया का सबसे बड़ा, लगभग दो लाख स्कायर फुट कार्पेट एरिया में बना हुआ है. यह भारत का एक मात्र विश्वविद्यालय है जो अपने छात्रो को अंतिम सत्र में विश्व के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों (अमेरिकन-यूरोपियन) भेजता था. हालांकि इस स्कीम को पिछली सरकार (सपा) ने बन्द करा दिया था जिसके लिए उसे माफ करना मुश्किल है. इस योजना को पुनः शुरू करने तथा अन्य सभी विश्व विद्यालयो में लागू करने की सख्त जरूरत है.
विशाल स्तूपाकार जोतिबा फूले मेडिटेशन सेंटर बहुत ही भव्य एवं विलक्षण है जो विश्वविद्यालय को एक अलग ही पहचान देता है। स्टूडेंट्स के आलआउट विकास के लिए मान्यवर कांशीराम खेल कूद परिसर आधुनिक अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं से सुसज्जित है.
ब्रिटिश पार्लियामेंट के बाहर स्थित लंदन स्क्वायर की तर्ज पर बना सामाजिक परिवर्तन प्रतीक स्थल, जहां सामाजिक परिवर्तन आंदोलन के नौ पुरोधाओं की बहुत ही खूबसूरत बोलती हुई प्रतिमाएं एंव विश्वविद्यालय का औचित्य सिलालेख स्थापित है, बहुत ही सुखद एवं भव्य मजंर बनाता हैं. प्रशासनिक भवन के सामने, बाबासाहेब द्वारा 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में भिक्खु चंदामणि महाथेरो एवं चार अन्य भिक्खुओं से दिक्खा लेते हुए बना विहार प्रेरणादायक एवं निहायत ही सौम्य एवं सुरुचिपूर्ण है.
दुनिया की सभी महान शिक्षण संस्थानों की तरह यह भी पूरी तरह एक आवासीय विश्वविद्यालय है. जहां 5000 स्टूडेंट्स के लिए 19 आधुनिक सिंगल सीटिड होस्टल (6 लडकियों व 13 लडकों) हैं. सामाजिक परिवर्तन के लिये प्रतिबद्ध क्रान्तिकारियों के संघर्ष, बलिदान एवं विरासत को समर्पित ये छात्रावास सावित्रीबाई फूले, रमाबाई अम्बेडकर, महामाया, बिरसा मुंडा, कबीर साहेब, संत रविदास, गुरु घासी दास ,साहूजी महाराज, नारायणा गुरु आदि के नाम पर रखे गये हैं. साथ ही टीचर्स के लिए 750 सुरुचिपूर्ण, सुविधाजनक एवं सम्मानजनक पंचसील आवासीय परिसर का निर्माण किया गया है. और भी बहुत कुछ है यहां जो अद्भुत, अकल्पनीय एवं विशेष है.
एक बार, 2011 में जब यह विश्वविद्यालय लगभग तैयार हो चुका था, तो मेरे साथ प्रोफेसर तुलसीराम जी, जो अन्यथा बहनजी के बहुत ही निर्मम आलोचक रहे हैं, कई अन्य साथियों के साथ GBU आये थे. विश्वविद्यालय की भव्यता, विशालता, स्थापत्य कला एवं सैद्धांतिकी को देखकर बेबस ही सर की आंखें नम हो आई थी और फिर भाव-भिवोर संजीदा होकर कहने लगे कि इस ऐतिहासिक कार्य के लिए मायावती के हजार खून माफ. मुझे भी अंदर ही अंदर संतुष्टि का कुछ एहसास हुआ कि तुलसी राम सर को GBU लाना सार्थक रहा, क्योंकि उनसे अनेकों बार बहुत तीक्ष्ण बहसें हुईं थीं. उसके बाद सर काफी समय तक विश्वविद्यालय से अधिकारिक तौर पर जुड़े रहे और विश्वविद्यालय के विकास में अपना अमूल्य सहयोग दिया. कहना न होगा कि अब उनके नज़रिये में महत्वपूर्ण बदलाव आ चुका था.
तमाम मतभेदों तथा राजनैतिक परिवर्तनों के बावजूद, अगर आज भी आप गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय (Gautam Buddha University) आयेंगे, तो निश्चित ही आप अपना नज़रिया बदलने पर मजबूर हो जायेंगें. देश को ऐसे हजारों विश्वविद्यालयों की जरूरत है.
(प्रस्तुती: प्रोफेसर राजकुमार)