33.6 C
New Delhi
Monday, June 9, 2025

पढे लिखे साथियों ! मेहनतकश गरीबों को नशे से बर्बाद होने से बचा लो….

 लॉकडाउन मे शराब की दुकानों के खुलते ही जो भीड़ लगी वह गरीब की जिंदगी में कई सवाल खड़े करती है. दूसरी ओर सड़कों, खेतों, गलियों में थकी मांदी सफाई या मजदूरी करने वाली महिलाएं भी गुटखे की गुलाम होती जा रही हैं.

खेतों में काम करने वाले दलित, आदिवासी, पिछडे मजदूर, तपती धूप में सड़क पर डामर से सने मेहनतकश साथी, गांवों में बेरोजगार दलितों की भीड़, गंदे जानलेवा नालों की सफाई करते कामगार तथा  बस्तियों में गुटखें खाते, शराब के पव्वे गटकते , डोडा पोस्त व अफीम को चाटते लोग दुखी जीवन की यातना भोग रहे है.

कुछ सालों पहले तक हमारी बस्तियों की आबोहवा काफी अच्छी थी.नशे का चलन ज्यादा नहीं था लेकिन अब हालात काफी डरावने हो गये है. अस्पताल हमारी कौम के मरीजों से भरे रहते है. शराब के कारण पारिवारिक ताना बाना बिखर रहा हैं. युवा पीढी के साथ महिलाएं व बुर्जुग भी  गुटखे की गिरफ्त में आ चुके है.

कल तक जो मेहनतकश छाछ राबड़ी से कलेवा करते थे उन्हें गुटखें की हैवी डोज खाये बिना संडास ही नहीं लगती है. जबड़े जकड़ गये है. आधे लोग तो अधमरा जीवन ढो रहे है. टीवी फिल्मों के विज्ञापन भी यही सीखा रहे है कि गुटखा खाना शान की निशानी है और इसी नकली शान के लिए मेहनतकश वर्ग मारा जा रहा है. गांवों में नाश्ते में गुटखे का गोला मुंह में दबाकर लोग मजदूरी करने जाते है.

इस धीमे जहर के प्रचार में विज्ञापन कहते है कि यह तो मुहं में खुशबू पैदा करता है, प्यार का इजहार प्रभावी होता है. ऐसे में भला युवा पीढी क्यों चूकेगी.आखिर यह डरावना माहौल हमें किस अंधकार की ओर ले जा रहा है.

दलित बस्तियों में हर घर में कोई सदस्य खाट पकड़े हुए है. कोई गुटखे तंबाकू के कारण मुहं की गाठों की पीड़ा भोग रहा है तो कोई शराब के कारण लिवर सिर्रोसिस से ग्रस्त है. कल तक ऐसे मोहल्लों में अस्सी बरस पार के कई बुर्जुग मिल जाते थे लेकिन अब तो सत्तर पार करना भी मुश्किल हो गया है.

आरक्षण की बदौलत जो दलित ऊंचे औहदों पर पहुंचें, शहर की पॉश कालोनियों में बस गये उन्होंने भी दूसरों की देखादेखी कई अंग्रेजी नशे पाल लिये. सामाजिक कार्यों में पांच रूपये नहीं देते लेकिन रोज शाम को सैकड़ों की विदेशी शराब गटक जाते है. फास्ट फूड तथा फिजिकल एक्सरसाइज की कमी के कारण हमारी कौम के धनी बच्चों को मोटापा जकड़ रहा है.

गांवों में जातीय पंचों की बैठक डोडा पोस्त के घोल व अफीम की मनुहार के बिना पूरी ही नहीं होती है. कल तक यह शौक दूसरों के थे लेकिन गांव में ठाले बैठे बहुजनों ने भी इसे गले लगा लिया. महंगा अफीम परिवार के हर काम काज का हिस्सा बन गया है.

नशीली चीजें बनाने वाले और इनका प्रचार प्रसार करने वाले लोग पांच रूपये के पौष्टिक अंडे को तो धर्म विरोधी बताते है लेकिन जानलेवा गुटखे को जीवन की शान कहते है. धार्मिक आयोजन कर धार्मिक होने का स्वांग रचते है लेकिन नशा फैलाने का अमानवीय काम करते है और सिर्फ धन के लिए बेगुनाह को नशे में झोंक देते है.

भोजन में प्राकृतिक चीजों का उपभोग करने वाले गांव की साफ हवा में हैल्दी रहने वाले मेहनतकश की रगों में कोला, गुटखा, शराब का जहर घोलने में ये मुम्बईया फिल्म स्टार, क्रिकेटर भी पीछे नहीं है. खुद फलों का ज्यूस पीते है, पौष्टिक भोजन खाते हैं और विज्ञापन में गरीब को कुरकुरे खाकर ठंडा कोला पीने की नसीहत देते है. इन्हें सिर्फ पैसा चाहिए चाहे वह गरीबों की मौत की कीमत पर ही क्यों न हो. आस्ट्रेलिया के क्रिकेटर भारतकी गरीब बस्तियों के बच्चों के कल्याण कार्यक्रमों करते है जबकि हमारे स्टार उनका उल्टा काम करते है. यह कितना अमानवीय है कि जो लोग फिल्म स्टार व क्रिकेटर को दीवानगी की हद तक प्यार करते है वे अपने प्रशंसकों के लिए मौत के सामान का विज्ञापन करते है.

 नशीली चीजों के निर्माताओं, प्रचार करने वाले खिलाड़ियों, फिल्म स्टारों व मीडिया की धन कमाने की होड़ में गरीब मेहनतकश फंसता जा रहा है. मनोरंजन की ओट में उसे नशा,हिंसा व फूहड़ता परोसी जा रही है. वह अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई को नशे में बर्बाद कर रहा है. ऐसे परिवारों में बच्चे पढ नहीं पाते है, परिवार के झगड़ों से जीवन नरक बन जाता है. कई रोगों को ढोते हुए शरीर कंकाल बन जाता है.

 इसलिए समय रहते इन मेहनतकश गरीब लोगों को इस दुखदायी जीवन से नहीं बचाया तो आने वाली पीढियां हमें कतई माफ नही करेगी. हमारे आस पास नशे के शिकार भाईयों को सही रास्ते पर लाने की कोशिश करना हमारा फर्ज है. सुख शान्ति के लिए निर्व्यसनी व पहला सुख निरोगी काया का महत्व बताना जरूरी है.

आज गौतम बुद्ध के पंचशीलों के पालन की सख्त जरूरत है ताकि सभी लोग नशे से दूर हो प्रेम, शील, दया, करूणा व मैत्री के रास्ते पर चलकर स्वस्थ व खुशहाल समाज का निर्माण कर सकें.

सबका मंगलं हो……सभी निरोगी हो

(लेखक :डॉ एम एल परिहार, ये उनके निजी विचार है)

Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

सामाजिक परिवर्तन दिवस: न्याय – समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का युगप्रवर्तक प्रभात

भारतीय समाज की विषमतावादी व्यवस्था, जो सदियों से अन्याय और उत्पीड़न की गहन अंधकारमयी खाइयों में जकड़ी रही, उसमें दलित समाज की करुण पुकार...

धर्मांतरण का संनाद: दलित समाज की सुरक्षा और शक्ति

भारतीय समाज की गहन खोज एक मार्मिक सत्य को उद्घाटित करती है, मानो समय की गहराइयों से एक करुण पुकार उभरती हो—दलित समुदाय, जो...

‘Pay Back to Society’ के नाम पर छले जाते लोग: सामाजिक सेवा या सुनियोजित छल?

“Pay Back to Society” — यह नारा सुनने में जितना प्रेरणादायक लगता है, व्यवहार में उतना ही विवादास्पद होता जा रहा है। मूलतः यह...

प्रतिभा और शून्यता: चालबाज़ी का अभाव

प्रतिभा का वास्तविक स्वरूप क्या है? क्या वह किसी आडंबर या छल-कपट में लिपटी होती है? क्या उसे अपने अस्तित्व को सिद्ध करने के...

सतीश चंद्र मिश्रा: बहुजन आंदोलन का एक निष्ठावान सिपाही

बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कानूनी सलाहकार सतीश चंद्र मिश्रा पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। कुछ लोग उनके बीएसपी के प्रति...

राजर्षि शाहूजी महाराज से मायावती तक: सामाजिक परिवर्तन की विरासत और बहुजन चेतना का संघर्ष

आज का दिन हम सबको उस महानायक की याद दिलाता है, जिन्होंने सामाजिक न्याय, समता और बहुजन उन्नति की नींव रखी — राजर्षि छत्रपति...

मान्यवर श्री कांशीराम इको गार्डन: बहनजी का पर्यावरण के लिए अतुलनीय कार्य

बहनजी ने पर्यावरण के लिये Start Today Save Tomorrow तर्ज पर अपनी भूमिका अदा की है, अपने 2007 की पूर्ण बहुमत की सरकार के...

जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी: जातिगत जनगणना पर बहुजन विचारधारा की विजयगाथा

भारत की राजनीति में एक ऐतिहासिक क्षण आया है-जिसे बहुजन आंदोलन की सबसे बड़ी वैचारिक जीत के रूप में देखा जा सकता है. कैबिनेट...

कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा

बहनजी के दूरदर्शी नेतृत्व, बौद्ध धम्म के प्रति अनुराग और सामाजिक समावेश की अमर गाथा कुशीनगर—शांति और करुणा का वैश्विक केंद्र कुशीनगर, वह पावन धरती जहाँ...

बहनजी की दूरदृष्टि: लखनऊ हाई कोर्ट परिसर का भव्य निर्माण

भारत के इतिहास में कुछ ही व्यक्तित्व ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपनी दूरदृष्टि, दृढ़ संकल्प और समाज के प्रति समर्पण से युगों को प्रेरित...

साम्प्रदायिकता का दुष्चक्र और भारतीय राजनीति की विडंबना

भारतीय राजनीति का वर्तमान परिदृश्य एक गहन और दुखद विडंबना को उजागर करता है, जहाँ साम्प्रदायिकता का जहर न केवल सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न...

सपा की नीति और दलित-बहुजन समाज के प्रति उसका रवैया: एक गंभीर विश्लेषण

भारतीय सामाजिक संरचना में जातिवाद और सामाजिक असमानता ऐसी जटिल चुनौतियाँ हैं, जिन्होंने सदियों से समाज के विभिन्न वर्गों, विशेषकर दलित-बहुजन समुदाय को हाशिए...