ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में संत शिरोमणि गुरु रविदास जी एवं फैज़ अहमद फैज़ की जयंती पर परिचर्चा एवं संगोष्ठी का कार्यक्रम संपन्न हुआ. कार्यक्रम की अध्यक्षता पत्रकारिता विभाग के छात्र अर्णव कुमार सिंह ने की. विश्वविद्यालय परिसर के गोल चौराहे पर गुरु रविदास एवं फैज़ अहमद फैज़ की तस्वीर के साथ कई दर्जन छात्रों ने एकत्र होकर अपनी बात रखी.

कार्यक्रम का संचालन पत्रकारिकता एवं जनसंचार विभाग के शशि कांत ने किया. एल.एल.बी. के प्रथम वर्ष के छात्र आविष्कार ने कहा कि “संत रविदास ने सदैव अपने साहित्यों और आदर्शों में तार्किकता को बढ़ावा दिया. उन्होंने पाखंड के विरोध में अभिव्यक्ति की आजादी का समर्थन किया.” वहीं पत्रकारिता विभाग के द्वितीय वर्ष के छात्र सलमान ने समाज में सभी को समानता का अवसर, समाज सुधार, विवेक शक्ति, विभिन्न प्रकार की अनुभूति, मन पर नियंत्रण आदि विषयों पर गुरु रविदास के दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला. अर्णव कुमार सिंह ने फैज़ साहब का शेर “दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है, लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है” कहते हुए उनके विषय में चर्चा की. कार्यक्रम के समापन के दौरान भाषा विश्वविद्यालय के कुलानुशासक डॉ नीरज शुक्ल ने अपनी मौजूदगी दर्ज की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हवाला देते हुए कहा “संत शिरोमणि रविदास संत परंपरा के योगी, समाज सुधारक एवं मानवता के सच्चे मार्गदर्शक रहे हैं.” वहीं इस मौके पर विश्वविद्यालय के अध्ययनरत समस्त विभाग के छात्र मौजूद रहें और आयोजन को सफ़ल बनाया.
छात्रों ने संत रविदास ने बेगमपुरा की अवधारणा पर विशेष चर्चा की जिसमें बताया गया कि यह एक ऐसा शहर है जहां जाति-पात के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता. बेगमपुरा में सभी लोग समान होते हैं और वहां कोई दुख या चिंता नहीं होती. बेगमपुरा की अवधारणा 14वीं-15वीं शताब्दी में बताई थी. बेगमपुरा की अवधारणा के मुख्य बिंदु जिनपे छात्रों ने चर्चा की बेगमपुरा में सभी को भोजन मिलता है. वहां कोई कर नहीं लगता.वहां कोई श्रेणी-भेद नहीं होता.वहां कोई दुख, चिंता, या घबराहट नहीं होती.वहां कोई पीड़ा नहीं होती.वहां कोई जायदाद नहीं होती. वहां ऐसी सत्ता है जो सदा रहने वाली है. वहां लोग अपनी इच्छा से जहां चाहें जाते हैं. वहां जो चाहे कर्म (व्यवसाय) करते हैं. वहां महल (सामंत) किसी के भी विकास में बाधा नहीं डालते.
(रिपोर्ट: अरूण गौतम, धाकड़ टीवी)