38.2 C
New Delhi
Monday, June 9, 2025

घर में लगे चित्र से चरित्र का बोध होता है

एक बार गर्मी की छुट्टी में एक आदमी अपनी जीवनसंगिनी एवं बच्चे के साथ शहर से घर जा रहा था. बस से उतरने के बाद गाँव का रास्ता पकड़ कर पैदल जा रहा था. अधिक धूप होने के कारण एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा. रास्ते के दूसरी तरफ बाबासाहेब डॉ.अंबेडकर और तथागत बुद्ध की प्रतिमा लगी थी.

प्रतिमा को देखकर बच्चे ने पूछा पापा ये किसकी प्रतिमा है?

पिता ने कहा ये प्रतिमा बाबासाहेब डॉ.अंबेडकर की है. बेटा इन्ही की बदौलत शिक्षा पायी, नौकरी पायी. इन्ही के बदौलत आपको अच्छे स्कूल में पढ़ा पा रहा हूँ. इतना ही नही आपकी मम्मी को अच्छी साड़ी तथा सुन्दर गहने दे पा रहा हूँ. यहाँ तक की हमारा समाज आज जो सम्मानित तरीके से जीवन जी रहा है, वो इन्हीं की देन है.

अच्छा पापा और वह दूसरी प्रतिमा किसकी है? बेटा वह तथागत बुद्ध की जो बाबासाहेब के गुरु और आदर्श थे. बाबासाहेब डॉ.अंबेडकर इन्ही के द्वारा दिए गये धम्म को मानते थे.

बेटा बोला अच्छा तो पापा बताइए हमारे घर में इनकी फोटो क्यों नहीं है. पिता थोड़ा सहमते हुए बोला, बेटा! गलती हो गयी.

पापा हमारे घर मे जो फोटो लगे है जिनकी आप सुबह शाम पूजा करते है वो किसके है और ये हमारे लिए तथा हमारे समाज के लिए क्या किए हैं?
पिता थोड़ा लड़खड़ाती जुबान से बोला बेटा वो तो हमारे तथा हमारे समाज के लिए कुछ नही किए है. अच्छा वो किस धर्म के लोगो की फोटो है और उस धर्म ने हमारे समाज को क्या दिया?

बेटा वो तो…धर्म के लोगो के फोटो है और उन लोगो ने हमारे लोगो को कुछ नही दिया है और उस धर्म ने हमारे समाज को अन्याय अत्याचार अपमान दिया. यहाँ तक की हमे अछूत बनाकर तिरस्कृत कर दिया.

पापा यह कैसी बिडम्बना है कि जिस धर्म ने हमारे समाज के साथ अन्याय, अत्याचार, अपमान किया. यहाँ तक की अछूत बनाया. उसके लोगो को आप पूजते है और उस धर्म को मानते है और जिसने आपको सब कुछ दिया उन महापुरूषों की फोटो तक नहीं लगाई. उनके बताए गए धम्म को नहीं मानते यह बड़े ही दुख की बात है.

पापा मुझे आपको पापा कहने मे शर्म महसूस हो रहा है.

बेटा मुझसे गलती हो गई मुझे माफ कर दो.

पापा इस गलती को आप स्वयं सुधारिए.

वो कैसे?

अभी वापस घर चलकर बाबासाहेब डॉ.अंबेडकर और तथागत बुद्ध की फोटो लगाईए और अन्य फोटो हटाए. नहीं तो मैं आज के बाद उस घर में नही जाउँगा!

पिता ने तुरन्त वापस जाकर वैसा ही किया जैसा बेटे ने कहा था!

साथियों कहने का यह तात्पर्य है कि अपने घरो में तथागत बुद्ध, बाबासाहेब डॉ.अंबेडकर तथा अपने सभी महापुरूषों की फोटो रखे और उनके बारे में अपने बच्चो को बताए ताकि आने वाली पीढ़ी बाबासाहेब डॉ.अंबेडकर के मिशन और राष्ट्र का निर्माण मे योगदान दे सके.

(स्रोत: सोशल मीडिया से प्राप्त पोस्टट)

— दैनिक दस्तक —

Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

सामाजिक परिवर्तन दिवस: न्याय – समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का युगप्रवर्तक प्रभात

भारतीय समाज की विषमतावादी व्यवस्था, जो सदियों से अन्याय और उत्पीड़न की गहन अंधकारमयी खाइयों में जकड़ी रही, उसमें दलित समाज की करुण पुकार...

धर्मांतरण का संनाद: दलित समाज की सुरक्षा और शक्ति

भारतीय समाज की गहन खोज एक मार्मिक सत्य को उद्घाटित करती है, मानो समय की गहराइयों से एक करुण पुकार उभरती हो—दलित समुदाय, जो...

प्रतिभा और शून्यता: चालबाज़ी का अभाव

प्रतिभा का वास्तविक स्वरूप क्या है? क्या वह किसी आडंबर या छल-कपट में लिपटी होती है? क्या उसे अपने अस्तित्व को सिद्ध करने के...

जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी: जातिगत जनगणना पर बहुजन विचारधारा की विजयगाथा

भारत की राजनीति में एक ऐतिहासिक क्षण आया है-जिसे बहुजन आंदोलन की सबसे बड़ी वैचारिक जीत के रूप में देखा जा सकता है. कैबिनेट...

साम्प्रदायिकता का दुष्चक्र और भारतीय राजनीति की विडंबना

भारतीय राजनीति का वर्तमान परिदृश्य एक गहन और दुखद विडंबना को उजागर करता है, जहाँ साम्प्रदायिकता का जहर न केवल सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न...

कविता: सोचो, क्या होता तब… दीपशिखा इंद्रा

सोचो, क्या होता तब... जब मनुवादी व्यवस्था आज भी नारी समाज पर थोप दी जाती? क्या वह छू पाती आसमान? क्या देख पाती कोई...

बहुजन एकता और पत्रकारिता का पतन: एक चिंतन

आज भारतीय पत्रकारिता का गौरवशाली इतिहास रसातल की गहराइयों में समा चुका है। एक ओर जहाँ पत्रकार समाज में ढोंग और पाखंड के काले...

पुस्तक समीक्षा: “बहुजन सरोकार (चिंतन, मंथन और अभिव्यक्तन)”, प्रो विद्या राम कुढ़ावी

प्रो. विद्या राम कुढ़ावी एक ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्होंने लेखनी को केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे समाज के उत्पीड़ित,...

बहुजन आंदोलन: नेतृत्व मार्गदाता है, मुक्तिदाता नहीं

बहुजन आंदोलन की पावन परंपरा का प्रारंभ जगद्गुरु तथागत गौतम बुद्ध से माना जाता है। इस ज्ञानदीप्त परंपरा को सम्राट अशोक, जगद्गुरु संत शिरोमणि...

हुक्मरान बनो: बहुजन समाज के लिए एक सकारात्मक दृष्टिकोण

भारतीय राजनीति के विशाल पटल पर बहुजन समाज की स्थिति और उसकी भूमिका सदा से ही विचार-विमर्श का केंद्र रही है। मान्यवर कांशीराम साहेब...

भटकाव का शिकार : महार, मुस्लिम और दलित की राजनीतिक दुर्दशा

स्वतंत्र महार राजनीति का अंत महाराष्ट्र में महार समुदाय, जो कभी अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान के लिए जाना जाता था, आज अपने मुद्दों से भटक...

बौद्ध स्थलों की पुकार: इतिहास की रोशनी और आज का अंधकार

आज हम एक ऐसी सच्चाई से पर्दा उठाने जा रहे हैं, जो न केवल हमारी चेतना को झकझोर देती है, बल्कि हमारे समाज की...