42.1 C
New Delhi
Saturday, April 19, 2025

धन तेरस का दिन मेहनतकश का धन ज्योतिष व्यापारी की तिजोरी भरे टना टन: एम एल परिहार

पंडित ज्योतिष और व्यापारी की चालाक धूर्त सांठगांठ के सबसे सटीक उदाहरण है धार्मिक त्योहार. मेहनतकशों के सारे लोक पर्वों को धर्म का जामा पहना कर बारह महीने खूब मजे से लूटा जा रहा है और भ्रमित भोले लोग भी मजे से लूटे जा रहे है.

आड़े दिन एक एक घड़ी का मुहूर्त निकालने वाला ज्योतिषी धन तेरस व दिवाली के नाम पर व्यापारियों को पूरी छूट देने के लिए सप्ताह भर का मुहूर्त बताता है और हर साल वही घोषणा करता है कि खरीदारी का ऐसा शुभ संयोग तो कई सालों मे एक बार आता है.

मिठाई और साजो सामान के व्यापारी अपना जाल फैला कर तैयार रहते है. ग्राहक कहीं से भी बच कर इनके चंगुल से निकल नहीं सकता. मिलावटी मिठाइयां बेचने वालों की तो पांचों अंगुलियां घी में रहती है.

मिलावटी मार्केट चिल्लाता है शुभ मुहूर्त है त्योहार है. शॉपिंग करो वरना जीवन व्यर्थ है. यदि पैसा नहीं हो तो व्यापारी के ही भाई की फाइनेंस कंपनी से कर्ज लो लेकिन खरीदो. टीवी खरीदो, ड्राइंग रूम से लेकर संडास तक में 56 इंच का टीवी लगाओ. डायमंड सोने के गहने खरीदो, भले पहले से ही बैंक लॉकर लबालब हो.

कपड़े रखने के लिए भले ही दूसरा मकान खरीदना पड़े लेकिन नई फैशन के कपड़ें खरीदो. घर में रखने की जगह नहीं हो तो भी लोन लेकर लंबी-लंबी कारें खरीदो. बर्तन भांडों से रसोई भर दो, पिज्जा बर्गर से पेट भरो, खूब फूलो… लेकिन शॉपिंग जरूर करो.

व्यापारी अच्छी तरह जानता है कि व्यापार करने से ही धन आता है. लेकिन मेहनतकश भोले समाज को यह भ्रम है कि धन लक्ष्मी पूजन से आता है. इसलिए वह हर दिवाली घर के दरवाजे रात भर खुले रखता है लेकिन धन कभी नहीं आता है उल्टा चला जाता है.

गरीब मेहनतकश के श्रम का शोषण कर अमीर बने रईस की देखादेखी मध्यम वर्ग व मेहनतकश दलित किसान बहुजन आदिवासी भी दिखावे के लिए धर्म त्योहार के ढोंग में शामिल हो जाता है. फुले, साहू, अंबेडकर की नेक कमाई को वह आडंबरों व पाखंडों में लूटाता है. उसे नहीं पता कि वह चाहे कितना ही बड़ा अफसर है लेकिन जेब तो मंदिर व मार्केट में ही खाली होती हैं. धन उधर सिर्फ़ जाता ही जाता है, कभी आता नहीं है.

हम मेहनतकश श्रमण संस्कृति के लोग धरती की कोख मे भांत-भांत के फल, फूल और अन्न उपजाते है. हर फसल पकने की खुशी में लोक पर्व को उमंग व उल्लास से मनाते थे. बाजार की अनावश्यक चीजों को खरीदने का न ढोंग था न दिखावा, न धर्म का लबादा. धान्य तेरस के दिन ही हम बच्चे, माता बहनों के साथ गांव की पहाड़ी की कोख से सफेद मिट्टी में आवल झाड़ी के पीले फूलों के गुच्छे को लगाकर लाते थे और उसी से घर की लिपाई पुताई करते थे. प्रकृति का वंदन और संस्कृति का सृजन का दौर था वह. लेकिन धर्म व व्यापार के धंधेबाजों ने सबकुछ विकृत कर दिया है.

खास बात यह भी है कि धर्म व धन का यह गठजोड़ ही मजबूत होकर हर बार सत्ता के सिंहासन तक पहुंचता है. फिर गरीब, मेहनतकश व शोषित समाज को हांसिएं पर पटक कर धन सम्पदा के सारे संसाधनों पर सांप की तरह कुंडली मारे बैठा रहता हैं. इसी कारण देश में आर्थिक विषमता की खाई दिनोंदिन बढती जा रही हैं. देश की अकूत सम्पत्ति या तो मंदिरों में हैं या कुछ धन्ना सेठों के पास. धर्म के नाम पर मेहनतकश के श्रम का धन यूं ही लूटा जा रहा है.

अब ज़रूरत है वैज्ञानिक चेतना की, मानवतावादी मानव कल्याण के धम्म की. सच तो यह है कि धनवंतरी तो गुप्ताकाल में एक भिक्खु आरोग्य सदन के मुख्य वैद्य थे लेकिन बाद में काल्पनिक कहानी गढ़ कर उनके स्वरूप को ही विकृत कर दिया.

सबका मंगल हो…सभी प्राणी सुखी हो

(लेखक: डॉ एम एल परिहार, ये लेखक के अपने विचार हैं)

Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

बहुजन एकता और पत्रकारिता का पतन: एक चिंतन

आज भारतीय पत्रकारिता का गौरवशाली इतिहास रसातल की गहराइयों में समा चुका है। एक ओर जहाँ पत्रकार समाज में ढोंग और पाखंड के काले...

बहुजन आंदोलन: नेतृत्व मार्गदाता है, मुक्तिदाता नहीं

बहुजन आंदोलन की पावन परंपरा का प्रारंभ जगद्गुरु तथागत गौतम बुद्ध से माना जाता है। इस ज्ञानदीप्त परंपरा को सम्राट अशोक, जगद्गुरु संत शिरोमणि...

हुक्मरान बनो: बहुजन समाज के लिए एक सकारात्मक दृष्टिकोण

भारतीय राजनीति के विशाल पटल पर बहुजन समाज की स्थिति और उसकी भूमिका सदा से ही विचार-विमर्श का केंद्र रही है। मान्यवर कांशीराम साहेब...

भटकाव का शिकार : महार, मुस्लिम और दलित की राजनीतिक दुर्दशा

स्वतंत्र महार राजनीति का अंत महाराष्ट्र में महार समुदाय, जो कभी अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान के लिए जाना जाता था, आज अपने मुद्दों से भटक...

बौद्ध स्थलों की पुकार: इतिहास की रोशनी और आज का अंधकार

आज हम एक ऐसी सच्चाई से पर्दा उठाने जा रहे हैं, जो न केवल हमारी चेतना को झकझोर देती है, बल्कि हमारे समाज की...

सपा का षड्यंत्र और दलितों की एकता: एक चिंतन

भारतीय राजनीति का परिदृश्य एक विशाल और जटिल कैनवास-सा है, जहाँ रंग-बिरंगे सामाजिक समीकरणों को अपने पक्ष में करने हेतु विभिन्न दल सूक्ष्म से...

हिंदुत्व, ध्रुवीकरण और बहुजन समाज: खतरे में कौन?

प्रस्तावना: एक गढ़ा हुआ नैरेटिव पिछले कुछ दशकों से भारत में यह नैरेटिव गढ़ा गया है कि हिंदुत्व खतरे में है। इस कथन ने जनमानस...

देहुली दलित नरसंहार, मैनपुरी

परिचय देहुली दलित नरसंहार, जो 18 नवंबर 1981 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले (तत्कालीन फिरोज़ाबाद क्षेत्र) के देहुली गाँव में हुआ, भारत के इतिहास...

कौन है भंते विनाचार्य जिसने महाबोधि महाविहार मुक्ति का बिगुल छेड़ दिया है?

सदियों से ब्राह्मणवाद के शिकंजे में कैद महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन में भंते विनाचार्य जी के साथ पूरा देश खड़ा हो गया है. भंते...

महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन को मिला बसपा का साथ; सांसद रामजी गौतम ने उठाए सवाल

महाबोधि आंदोलन: बिहार के बोधगया में स्थिति विश्व धरोहर “महाबोधि महाविहार” की मुक्ति के लिए चल रहे आंदोलन को अब बहुजन समाज पार्टी का...

“मन चंगा तो कठौती में गंगा” भाषा विश्वविद्यालय में संत रविदास पर परिचर्चा एवं संगोष्ठी लखनऊ

ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में संत शिरोमणि गुरु रविदास जी एवं फैज़ अहमद फैज़ की जयंती पर परिचर्चा एवं संगोष्ठी का कार्यक्रम संपन्न...

बहुजन आंदोलन में उतराधिकारी की जरूरत

जब बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का उल्लेख होता है, तो विरोधियों की उपस्थिति तो स्वाभाविक है ही, किंतु बहुजन समाज के स्वघोषित चिंतक, कार्यकर्ता...