सदियों से ब्राह्मणवाद के शिकंजे में कैद महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन में भंते विनाचार्य जी के साथ पूरा देश खड़ा हो गया है.
भंते विनाचार्य एक प्रमुख बौद्ध भिक्खु और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो महाबोधि महाविहार की मुक्ति के लिए सक्रिय रूप से आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं. यह आंदोलन महाबोधि मंदिर अधिनियम, 1949 (BT Act 1949) को रद्द करने और महाविहार का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्ध समुदाय को सौंपने की मांग करता है, जिसे वर्तमान में ब्राह्मण और बौद्ध दोनों मिलकर संचालित करते हैं.
भंते विनाचार्य के इस आंदोलन को देशभर के बौद्ध समुदाय का व्यापक समर्थन मिल रहा है, जिसमें महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार और तेलंगाना के लोग सक्रिय रूप से शामिल हो रहे हैं. उनका उद्देश्य महाबोधि महाविहार को ब्राह्मण महंत के कब्जे से मुक्त कर बौद्ध भिक्खुओं को सौंपना है, ताकि बौद्ध धर्मावलंबियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हो सके.

भंते विनाचार्य बचपन से ही क्रांतिकारी विचारों के धनी रहे. उन्होंने अन्याय और शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाने की प्रेरणा अपने परिवेश से ही प्राप्त की. शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने सांसारिक मोह-माया को त्यागकर जनकल्याण के मार्ग पर चलने का निर्णय लिया. बहुजन समाज के अधिकारों के लिए संघर्ष करना उनका जीवन उद्देश्य बन गया. उन्होंने अन्याय और अत्याचार से पीड़ित समाज के उत्थान के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया. इस संघर्ष में उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा, लेकिन उनका संकल्प अडिग रहा.
समय के साथ उन्होंने महसूस किया कि हिंसक क्रांति से अधिक प्रभावी मार्ग अहिंसा और धम्म का प्रचार-प्रसार है. इसके बाद उन्होंने बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के दिखाए मार्ग पर चलते हुए बौद्ध धम्म के प्रचार का संकल्प लिया. उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में धम्म देशना देना शुरू किया और बहुत कम समय में वे पूरे भारत में लोकप्रिय हो गए. उनके प्रवचनों ने लाखों लोगों को बुद्ध के करुणा और शांति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया.
लेकिन जब उन्हें ज्ञात हुआ कि भगवान बुद्ध की ज्ञान स्थली, महाबोधि महाविहार, बोधगया पर ब्राह्मणों का कब्जा है, तो वे चुप नहीं रह सके. यह देखकर उनका हृदय व्यथित हो उठा कि जहाँ स्वयं तथागत बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया, वहां आज बौद्धों को उनके अधिकार से वंचित किया जा रहा है. उन्होंने अपनी टीम के साथ बोधगया का दौरा किया और वहीं से एक ऐतिहासिक आंदोलन का शंखनाद कर दिया. उन्होंने प्रण लिया कि जब तक महाबोधि महाविहार को ब्राह्मणों के कब्जे से मुक्त नहीं करा लिया जाता, तब तक उनका संघर्ष अनवरत जारी रहेगा.
भंते विनाचार्य के इस अद्वितीय प्रयास ने बौद्ध समाज को जागरूक किया और उन्हें अपने धर्मिक स्थलों पर अधिकार के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी. उनका जीवन त्याग, संघर्ष और धम्म प्रचार का एक अनुपम उदाहरण है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बना रहेगा.
(लेखक: अरुण गौतम; ये लेखक के अपने विचार है)