दिल्ली धम्म दीक्षा प्रकरण: बहुजन समाज का भटकाव और बसपा की राह
वर्ष 2022 में दिल्ली के धम्म दीक्षा प्रकरण ने बहुजन समाज को सड़कों पर उतार दिया। दिल्ली से दूर रहने वाले दलित भी सोशल मीडिया के माध्यम से समर्थन व्यक्त कर इस आंदोलन को ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं। किंतु इस उन्माद के बीच कुछ मूलभूत प्रश्न अनुत्तरित हैं। बहुजन समाज और अन्य जागरूक नागरिकों को निम्नलिखित तीन बिंदुओं पर चिंतन करना आवश्यक है: प्रथम, भाजपा से न केवल दिल्ली, अपितु संपूर्ण भारत त्रस्त है। द्वितीय, कांग्रेस की स्थिति इतनी क्षीण है कि उसके पुनर्जनन की संभावना न्यून है। तृतीय, सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) के खोखले वादों और कथनी-करनी के अंतर से जनता निराश और विमुख हो चुकी है। इन परिस्थितियों में बहुजन समाज को स्वयं से यह प्रश्न करना चाहिए: “दिल्ली में ऐसा कौन है जो एक सशक्त विकल्प बन सकता है और निर्णायक बहुजन मतों को अपनी ओर आकर्षित कर सत्ता का नवीन समीकरण रच सकता है?” इसका उत्तर स्पष्ट है—बहुजन समाज पार्टी (बसपा)।
बसपा के राष्ट्रीय संयोजक श्री आकाश आनंद जनता के बीच जाकर बेबाकी से अपनी बात रख रहे हैं। अखिल भारतीय स्तर पर उनका सीधा संवाद यह संकेत देता है कि वे दिल्ली की पीड़ित जनता के लिए एक मजबूत विकल्प के रूप में उभर रहे हैं। बसपा की नीति, मिशन के प्रति समर्पण और उत्तर प्रदेश में बहनजी मायावती के शासन की गूंज भारत भर को आकर्षित करती है, और दिल्ली इसका अपवाद नहीं है। दिल्लीवासी सस्ती और उच्चस्तरीय शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ चाहते हैं, जो राजधानी होने के बावजूद जनसामान्य को सुलभ नहीं हैं। इस संदर्भ में बसपा और आकाश आनंद दिल्ली के लिए सर्वोत्तम विकल्प हैं।
भाजपा इस तथ्य से परिचित है कि दिल्ली में बहुजन समाज का वोट बैंक सत्ता का निर्धारण करता है। इसलिए उसने आम आदमी पार्टी—जिसे वह अपनी सहयोगी शक्ति मानती है—के लिए रणनीति तैयार की है। आप के नेता अरविंद केजरीवाल और तत्कालीन मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने इस प्रकरण में प्रमुख भूमिका निभाई। मुख्यधारा के मीडिया ने चिंगारी भड़काकर स्वयं को पृथक कर लिया, जिससे गुमराह बहुजन समाज का विश्वास गौतम पर बना रहे। इस बीच, कुछ बहुजन मीडिया संस्थानों ने इसे अवसर बनाकर अपनी दुकानदारी चमकाई, क्योंकि इसके ग्राहक वही भ्रमित बहुजन हैं, जिनकी संख्या देशभर में विशाल है। बाबासाहेब ने सत्ता को परिवर्तन का माध्यम बताया था, और मान्यवर कांशीराम ने इसे “गुरु किल्ली” कहा था (स्रोत: बहुजन संगठक, 10 मई 1990)। किंतु मनुवादी दल (भाजपा, कांग्रेस, आप) यह सुनिश्चित करने में जुटे हैं कि बहुजन समाज सत्ता तक न पहुँचे। हिंदू-मुस्लिम विभाजन से दलितों को भटकाना संभव नहीं था, इसलिए धम्म और 22 प्रतिज्ञाओं को मुद्दा बनाया गया। परिणामस्वरूप, बहुजन वोट खंडित हो रहा है। सवर्ण और ओबीसी मत, जो बसपा की संविधानसम्मत कानून व्यवस्था और शिक्षा-स्वास्थ्य के ऐतिहासिक कार्यों से प्रभावित थे, अब मनुवादी दलों के पक्ष में एकजुट हो रहे हैं। दलित समाज सड़कों पर धम्म के लिए संघर्ष कर रहा है, जबकि सत्ता प्राप्त कर वह स्वतंत्रता के साथ 22 प्रतिज्ञाएँ ले सकता है और धम्म को अंगीकार कर सकता है।
यदि बहुजन समाज सत्ता प्राप्त कर अपनी शर्तों पर धम्म दीक्षा लेता है, तो यह टिकाऊ होगा। प्रमाणपत्र सहज उपलब्ध होंगे, सुविधाएँ प्राप्त होंगी, और धम्म का प्रचार व्यापक स्तर पर सौहार्द के साथ हो सकेगा। किंतु वर्तमान में धम्म के नाम पर जो उन्माद मचा है, उसका लाभ मनुवादी दलों को ही होगा। बहुजन समाज को इससे प्रत्यक्ष हानि होगी। यह प्रकरण भाजपा और आप की पूर्वनियोजित रणनीति का हिस्सा है, जिसमें बहुजन समाज मनुवादियों की पिच पर खेलते हुए शून्य पर आउट होकर पवेलियन लौटेगा। दिल्ली की सत्ता बहुजन के हाथों से फिसलकर पुनः मनुवादी दलों के पास चली जाएगी। इस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि जिस दलित मंत्री (राजेंद्र पाल गौतम) के पक्ष में बहुजन सड़कों पर हैं, वह अपनी पार्टी और केजरीवाल के खिलाफ एक शब्द नहीं बोल रहा। उल्टे वह केजरीवाल का बचाव कर रहा है। यदि केजरीवाल में बाबासाहेब के प्रति सम्मान होता, तो वह अपने मंत्री के पक्ष में खड़ा होता और इस्तीफा नहीं देने देता। इस प्रकरण में गौतम को दलित समर्थन मिल गया, केजरीवाल ने सवर्ण-ओबीसी को संतुष्ट कर दिया, और भाजपा ने अपनी सहयोगी ‘आप’ की स्थिति मजबूत कर ली। किंतु सड़कों पर उतरे दलितों को क्या प्राप्त हुआ?
भारत की साम्प्रदायिक शक्तियों के पुराने षड्यंत्रों से सबक लेना आवश्यक है। जिस प्रकार भाजपा, सपा, राजद, टीएमसी और जदयू ने हिंदू-मुस्लिम विभाजन के नाम पर ओबीसी और मुस्लिम मतों को मोहरा बनाकर सत्ता हथियाई, उसी प्रकार दलित और आदिवासी समाज की स्वतंत्र राजनीति को समाप्त करने के लिए धम्म को हथियार बनाया जा रहा है। यह दलित भावनाओं के साथ खिलवाड़ है, जिसका उद्देश्य उन्हें सत्ता से वंचित रखना है। बहुजन समाज को अपने महानायकों से प्रेरणा लेनी चाहिए। बाबासाहेब ने कहा था, “सत्ता ही वह साधन है जो सामाजिक परिवर्तन लाएगी।” (स्रोत: आंबेडकर, “अनहिलेशन ऑफ कास्ट,” 1936)। सत्ता के संरक्षण में बहुजन समाज स्वतंत्र रूप से अपने धम्म को अंगीकार कर सकता है। किंतु उन्माद में डूबा बहुजन समाज इन शिक्षाओं को समझने को तैयार नहीं है जबकि बसपा, जो एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी और बहुजन आंदोलन की संवाहक है, निरंतर इसे इसके मिशन से अवगत करा रही है।
अतः समय और समीकरण को देखते हुए दिल्ली सहित देशभर के बहुजन समाज को बसपा को केंद्र में रखकर आगे बढ़ना होगा। बसपा ही वह शक्ति है जो भाजपा, आप, कांग्रेस और अन्य दलों को परे कर केंद्र और राज्यों में संविधानसम्मत शासन, प्रशासन और अनुशासन स्थापित कर सकती है। बहुजन समाज को इस भटकाव से मुक्त होकर सत्ता की ओर अग्रसर होना चाहिए, तभी समतामूलक समाज का स्वप्न साकार होगा।
स्रोत और संदर्भ :
- मान्यवर कांशीराम, “सत्ता: गुरु किल्ली,” बहुजन संगठक, 10 मई 1990, अंक 5, वर्ष 8।
- डॉ. बी.आर. आंबेडकर, “अनहिलेशन ऑफ कास्ट,” 1936, संकलित रचनाएँ, खंड 1, पृ. 42।
- “दिल्ली धम्म दीक्षा प्रकरण,” दैनिक जागरण, 10 अक्टूबर 2022।
- बसपा आधिकारिक बयान, “दिल्ली प्रकरण पर प्रतिक्रिया,” 2022।
- प्रो. विवेक कुमार, “बहुजन राजनीति और धार्मिक भटकाव,” इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली, 2020।
— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)