अपना देश 1947 में आजाद हुआ और लगभग 2-3 साल की कड़ी मेहनत व संसदीय बहसों के बाद 26 नवम्बर 1949 को डॉ भीमराव अम्बेड़कर ने राष्ट्रपति महोदय को भारत का संविधान तैयार करके सौंपा जो 26 जनवरी 1950 से लगभग पूरे देश मे लागु कर दिया गया.
संविधान के अनुसार अब भारत एक लोकतांत्रिक देश होगा जिसमे जनता द्वारा चुनी हुई सरकारे केंद्र और राज्यों में शासन करेगी. वैसे 1947 में देश आजादी से लेकर 2014 तक केंद्र मे कांग्रेसी सरकारों का ही बोलबाला रहा है और इन कांग्रेसी सरकारों को चुनने में दलित आदिवासी वर्गों का लगभग एकतरफा वोट कांग्रेस को जाता रहा है.
लेकिन, हैरानी की बात ये है कि इनकी वोटों से हर बार सत्ता पर कब्जा करने वाली कांग्रेसी सरकारों ने कभी संविधान रचियता, जातिवाद छुआछूत व अस्पृश्यता पर कठोर कानून बनवाने वाले और देश की लगभग एक चौथाई आबादी को बराबरी का हक व प्रतिनिधित्व दिलवाने वाले डॉ अम्बेड़कर कभी भी इनको “भारतरत्न” चुने जाने के लायक नही समझे गए.
उनसे पहले 21 लोगों को भारतरत्न सम्मान दिया जा चुका था, उसके बाद ये सम्मान जनता दल की गैर कांग्रेसी सरकार ने 1989 में मान्यवर काशीराम व बसपा की सरकार के समर्थन के बदले की गई माँग के तहत दिया गया था. क्योंकि, 1989 में बसपा देश में एक राजनैतिक धुरी बनती जा रही थी.
1989 में मायावती जी समेत बसपा के तीन सांसद थे. बाकी पार्टियों की तरह बहनजी और बाकी दो सांसद मंत्रीपद पाने के चक्कर में आज के नेताओं की तरह बिकने को कदापि तैयार नही थे.
बसपा की दूसरी डिमांड पिछड़ों के प्रतिनिधित्व के लिए मंडल कमीशन लागु करने की थी ताकि इनको रिजर्वेशन मिलने पर पिछड़े वर्गो को भी शिक्षा व नौकरियों मे उनकी उचित हिस्सेदारी मिले.
मान्यवर काशीराम व बहनजी के सोचने का तरीका बाबासाहेब की समानता व समता की नीति पर था. मान्यवर काशीराम ने पिछड़े वर्गो के लिए मंडल कमीशन की सिफारिशे लागू करवाने के लिए देश भर में 300 से ज्यादा ताबड़तोड़ जनसभाएं की थी.
मुझे ये जानकर दुख होता है कि कांग्रेसी सरकारों को दलित, शोषित और वंचितों के मसीहा डॉ अम्बेड़कर कभी भी भारत रत्न सम्मान के लायक नही समझे गए. जबकि, उनसे पहले मिले 21 लोगों में से वो किसी भी तरह से उनसे कम योग्य नही थे. बल्कि, कईयो का तो अब तक लोग नाम तक नही जानते होंगे.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, सी राजगोपालाचारी, सीवी रमन, भगवान दास, एम विश्ववरैया, जवाहरलाल नेहरू, गोविंद बल्लभ पंत, डीके कार्वे, बीसी रॉय, पुरूषोतम दास टंडन, राजेन्द्र प्रसाद, जाकिर हुसैन, पीवी काने, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गाँधी, वीवी गिरी, के कामराज, मदर टेरेसा, आचार्य विनोबा भावे, खान अब्दुल गफ्फार और एमजी रामाचंद्रन वो शख्सियत थे जिनको भारत रत्न सम्मान 1990 में वीपी सिंह सरकार बनने से पहले वाली कांग्रेसी सरकारों ने दिया.
कमाल की बात तो ये है कि ज्यादातर दलिततों, आदिवासियों को लगता है कि 14 अप्रैल को डॉ अम्बेड़कर की मूर्ति पर फूल चढ़ाने वाले उनके सम्मान में झुकते हैं. डॉ अम्बेड़कर आधुनिक भारत के निर्माता है, अगर इन्होने जीवनभर संघर्ष ना किये होते तो दलित आदिवासियों के घरो में आई.ए.एस, आई.पी.एस, सांसद, विधायक, डॉक्टर, इंजीनियर की तो छोड़ ही दो, सवर्णो के घर की बेटियाँ भी पाँच सात क्लास पढ़ने के लिए आजाद होती, मुझे तो इसमे भी शक है.
हर देश में हर धर्म में कट्टर लोग होते हैं जो धर्म की आड़ में हमेशा कमजोर वर्गो और औरतों पर तालिबानी फरमान जारी करने के जोश में ही रहते हैं और ये तालिबानी फरमान मौका मिलते ही सामाजिक बंधन, सामाजिक नियम और सामाजिक बहिष्कार के रूप में दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और औरतों पर थोपे जा रहे हैं. कुछ मामलों में ये तालिबानी सोच के लोग संविधान की चपेट में आकर उनकी सही जगह जेल की सलाखों के पीछे पटक दिए जाते हैं और कहीं-कहीं ये तालिबानी सोच के लोग सामाजिक व आर्थिक रूप से कमजोर वर्गो व औरओं की चुप्पी व डर के कारण जेल की सलाखों से बचे रहते हैं. इसी चिढ़ और खीज में ये लोग चोरी छिपे डॉ अम्बेड़कर के स्टेचू वगैरा तोड़कर अपनी गिरी हुई मानसिकता का परिचय देते हुए मिलते हैं.
(लेखक: एन दिलबाग सिंह; ये लेखक के अपने विचार हैं)