बहनजी
संघर्षों की प्रतिमूर्ति,
ममता की मूरत,
परिवर्तन की चेतना,
बहुजनों की सूरत।
चप्पल घिसीं, राहें फटीं,
फिर भी बढ़ती रहीं अडिग,
हर गली, हर चौखट जाकर,
जगाया स्वाभिमान निष्कलंक।
बिखरे सपनों को समेटा,
नई राहें, नया उजाला,
चार बार शासक बनकर,
बदला उत्तर प्रदेश का आलम।
सदियों की जंजीरें तोड़ीं,
इतिहास को नया रूप दिया।
समाज की उपेक्षित आवाज़,
सदैव अडिग रहीं, कभी न हार मानी।
पर उन्होंने हर जंजीर तोड़ी,
हर रूढ़िवादी सोच को मिटा दिया,
शिक्षा, स्वाभिमान और संघर्ष के बल पर,
इतिहास में अपनी पहचान गाढ़ी ।
शासन ऐसा चलाया
विरोधी भी नकार न सके,
जनता की जुबां पर मिसाल बनकर छा गईं,
भारत ने देखा एक ऐसा दौर,
जहाँ शासन नहीं, न्याय राज करता था।
अशोक-सा संकल्प लिया,
एक समता का दीप जलाया,
बहुजन संस्कृति पुनर्जीवित कर,
हर सिर को ऊँचा उठाया।
(रचनाकार: दीपशिखा इन्द्रा – 04-02-2025, 11: 09 AM)