बहुजन आंदोलन का संक्रमण काल: एक नवीन भारत की ओर यात्रा
जीवन और आंदोलन का स्वाभाविक चक्र
जीवन का हर चरण एक निश्चित क्रम में संनादति है, ठीक वैसे ही जैसे सूर्योदय और सूर्यास्त प्रकृति के अनिवार्य नियम हैं। जिस प्रकार एक शिशु अपनी बाल्यावस्था से प्रौढ़ता की ओर अग्रसर होने के लिए तरुणावस्था के संक्रमण काल से गुजरता है, उसी प्रकार हर आंदोलन और समाज को भी अपने विकास के इस अनिवार्य पड़ाव से होकर निकलना पड़ता है। तरुणावस्था में जहाँ एक ओर शारीरिक और मानसिक द्वंद्व उभरते हैं, वहीं दूसरी ओर करियर, खेल-कूद और आत्म-चेतना के नए आयाम उद्घाटित होते हैं। ठीक इसी तरह, बहुजन आंदोलन और समाज आज अपने संक्रमण काल के उस दौर से गुजर रहा है, जहाँ चुनौतियाँ तो हैं, परंतु संभावनाओं का एक विशाल आकाश भी उसकी प्रतीक्षा में है।
संक्रमण काल: अनिवार्यता और चुनौतियाँ
कोई भी शिशु बाल्यावस्था की मासूमियत से सीधे प्रौढ़ता की परिपक्वता तक नहीं पहुँच सकता। उसे तरुणावस्था के उस उथल-पुथल भरे दौर से गुजरना ही पड़ता है, जहाँ हार्मोनल परिवर्तन, भावनात्मक उन्माद और जीवन के लक्ष्यों का द्वंद्व उसे आलोड़ित करते हैं। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। इसी प्रकार, कोई भी आंदोलन या समाज अपने उद्भव से सीधे परिपूर्णता तक नहीं पहुँच सकता। उसे भी अपने संक्रमण काल के उस कठिन मार्ग से होकर गुजरना पड़ता है, जहाँ पुरानी व्यवस्थाओं से टकराव, नई राहों की खोज और आत्म-संघर्ष उसे परिभाषित करते हैं। आज बहुजन आंदोलन और समाज इसी दौर में खड़ा है—एक ओर परंपरागत शोषण और अन्याय की जंजीरें उसे जकड़े हुए हैं, तो दूसरी ओर स्वतंत्रता और समानता का स्वप्न उसे प्रेरित कर रहा है।
दिशा-निर्देश: सफलता का आधार
जिस तरह एक तरुण अपने माता-पिता के अनुभव और मार्गदर्शन से इस द्वंद्वमय काल को पार कर जीवन में सफलता अर्जित करता है, उसी तरह बहुजन समाज के लिए भी इस संक्रमण काल से उबरने का मार्ग उसके नेतृत्व में निहित है। यदि एक बालक अपने माता-पिता की सीख को आत्मसात कर उनके दिशा-निर्देशों पर चलता है, तो वह न केवल चुनौतियों पर विजय पाता है, बल्कि अपने जीवन को एक सार्थक दिशा भी प्रदान करता है। ठीक इसी तरह, बहुजन समाज यदि अपनी माँ-पिता स्वरूपा नेता बहनजी के संदेश को हृदयंगम करता है, तो वह इस संक्रमण काल के भँवर से न केवल सुरक्षित बाहर निकलेगा, बल्कि एक नए युग का सूत्रपात भी करेगा। बहनजी का मार्गदर्शन वह प्रकाश है, जो बहुजन समाज को अंधेरे से उजाले की ओर ले जा सकता है।
बहुजन की शक्ति: एक समतामूलक समाज का स्वप्न
यह स्पष्ट है कि बहुजन आंदोलन का यह संक्रमण काल केवल एक संघर्ष का दौर नहीं, बल्कि एक स्वर्णिम भविष्य का प्रस्थान बिंदु है। यदि बहुजन समाज एकजुट होकर अपने नेतृत्व के आह्वान पर चलता है, तो वह देश के कारोबार की बागडोर अपने हाथों में ले सकता है। यह बागडोर केवल सत्ता की प्राप्ति तक सीमित नहीं होगी, बल्कि यह बहुजन के एजेंडे पर आधारित एक ऐसी शासन व्यवस्था होगी, जो समता, न्याय और सम्मान के सिद्धांतों पर टिकी होगी। ऐसा समाज, जहाँ शोषण की छाया न हो और हर व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुरूप अवसर प्राप्त हों, वही बहुजन आंदोलन का अंतिम लक्ष्य है। यह केवल एक आंदोलन की जीत नहीं, बल्कि एक सशक्त और समावेशी भारत राष्ट्र का निर्माण होगा।
निष्कर्ष: नवनिर्माण की ओर कदम
संक्रमण काल जीवन और आंदोलन का वह स्वर्णिम क्षण है, जहाँ पुरातन का अंत और नवीन का उदय होता है। बहुजन समाज आज इसी मोड़ पर खड़ा है। यह वह समय है जब उसे अपने अतीत के बंधनों को तोड़कर, अपने नेतृत्व के मार्गदर्शन में एक नई राह चुननी होगी। यह राह कठिन हो सकती है, परंतु असंभव नहीं। बहनजी के संकल्प और बहुजन की एकता के बल पर यह समाज न केवल अपने लिए, बल्कि संपूर्ण राष्ट्र के लिए एक उज्ज्वल भविष्य का सृजन कर सकता है। यह आंदोलन का संक्रमण काल नहीं, बल्कि एक नवीन भारत के उदय का प्रभात है।
(05.03.2024)