Sant Ravidas Quotes in Hindi: गुरुओं के गुरु संत शिरोमणी गुरु रैदास ने अपनी लेखनी से इंसानियत के लिए पैरवी की है. उन्होने मनुष्यों में आपसी भेदभाव और असमानता को तोड़ने के लिए लेखनी चलाई. वहीं उनके समय में (आज भी खास परिवर्तन नही हुआ है) व्याप्त जातिवाद और ऊँच-नीच पर लेखनी की कैंची चलाकर उसे काटने का प्रयास किया है. उनके द्वारा बेगमपुरा की कल्पना करना इसका साक्ष्य है. गुरु रविदास जयंति (Ravidas Jayanti 2024) पर उनके अनुयायी पूरे भारत (खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, यूपी) से बनारस उनकी जन्मस्थली पर जुटते हैं और उन्हे शीश नवाते हैं. यहाँ पेश है गूर रविदास के कुछ खास दोहे या कहें संत रविदास के अनमोल विचार.
संत रविदास के अनमोल विचार
1.
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात. रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात.
अर्थात जिस प्रकार केले के तने को छीला तो पत्ते के नीचे पत्ता, फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ नही निकलता, लेकिन पूरा पेड़ खत्म हो जाता है. ठीक उसी तरह इंसानों को भी जातियों में बांट दिया गया है, जातियों के विभाजन से इंसान तो अलग-अलग बंट ही जाते हैं, अंत में इंसान खत्म भी हो जाते हैं, लेकिन यह जाति खत्म नही होती.
2.
मन ही पूजा मन ही धूप, मन ही सेऊं सहज स्वरूप.
अर्थात निर्मल मन में ही ईश्वर वास करते हैं, यदि उस मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है तो ऐसा मन ही भगवान का मंदिर है, दीपक है और धूप है. ऐसे मन में ही ईश्वर निवास करते हैं.
3.
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन, पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन.
अर्थात किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए नहीं पूजना चाहिए क्योंकि वह किसी ऊंचे कुल में जन्मा है. यदि उस व्यक्ति में योग्य गुण नहीं हैं तो उसे नहीं पूजना चाहिए, उसकी जगह अगर कोई व्यक्ति गुणवान है तो उसका सम्मान करना चाहिए, भले ही वह कथित नीची जाति से हो.
4.
रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच. नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच.
अर्थात कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है, आदमी अपने कर्मों के कारण नीचा होता है.
5.
ऐसा चाहूँ राज मैं जहाँ मिले सबन को अन्न, छोट बड़ो सब सम बसे रैदास रहे प्रसन्न.
अर्थात मैं ऐसा राज चाहता हूँ जहाँ सभी लोगों को भरपेट खाना मिले और सभी लोग किसी भी कारण से भेदभाव से बचे तथा समान रूप से रहें तो रैदास खुश रहेंगे. गुरु रैदास ने ऐसे राज के रूप में बेगमपुरा की कल्पना की है.
6.
जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बास. प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास.
अर्थात जिस रैदास को देखने से लोगों को घृणा आती थी, जिनके रहने का स्थान नर्क-कुंड के समान था, ऐसे रविदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना, ऐसा ही है जैसे मनुष्य के रूप में दोबारा से उत्पत्ति हुई हो.
7.
मन चंगा तो कठौती में गंगा
अर्थात जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा भी एक कठौती (चमड़ा भिगोने के लिए पानी से भरे पात्र) में भी आ जाती हैं.
— Dainik Dastak —